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नूह में रैली के लिए इजाजत की जरूरत नहीं? VHP को ये नियम-कानून जरूर जान लेने चाहिए

जब प्रशासन ने अनुमति नहीं दी तो यात्रा निकालने का दावा किस आधार पर किया जा रहा है?

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नूह में प्रशासन शांतिपूर्ण माहौल का दावा कर रहा है | फाइल फोटो- PTI

हरियाणा के नूह में बीते दिनों हुई हिंसा के बाद हिंदू संगठन एक बार फिर ‘शोभायात्रा’ निकालने पर अड़े हैं. नूह प्रशासन ने इसकी अनुमति नहीं दी. खुद मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कहा कि पिछले दिनों नूह में जो हुआ, उसके बाद कानून व्यवस्था को देखते हुए यात्रा की अनुमति नहीं दी गई है. हालांकि प्रशासन से परमिशन नहीं मिलने के बाद भी विश्व हिंदू परिषद (VHP) ने दावा किया कि ऐसे धार्मिक आयोजनों के लिए अनुमति लेने की जरूरत नहीं है. बहरहाल, नूह में भारी पुलिस बल को तैनात किया गया है. प्रशासन का दावा है कि माहौल शांतिपूर्ण है. इस बीच सवाल ये भी आया है कि जब प्रशासन ने अनुमति नहीं दी तो यात्रा निकालने का दावा किस आधार पर किया जा रहा है?

याद कीजिये, पिछले साल दिल्ली के जहांगीरपुरी इलाके में धार्मिक रैली निकली थी जहां हिंसा भड़की थी. इसके अलावा पिछले कई सालों में रामनवमी या दूसरे मौकों पर इस तरह के धार्मिक जुलूस निकाले गए, जहां हिंसा की घटनाएं देखी गईं. नूह में भी यात्रा निकालने के दौरान हिंसा हुई और कम से कम 6 लोग मारे गए. आखिर, इस तरह के धार्मिक जुलूसों की अनुमति किस आधार पर दी जाती है?

कैसे मिलती है अनुमति?

किसी भी धार्मिक जुलूस से पहले स्थानीय थाने में इसकी लिखित अनुमति मांगनी होती है. आयोजक को उस जुलूस के बारे में पूरी जानकारी देनी होती है. अधिकारियों ने हमें बताया कि रैली जहां से शुरू होगी और जिस प्वाइंट पर खत्म होगी, रैली किन रास्तों से गुजरेगी यानी रूट, ये पूरी जानकारी प्रशासन को देनी होती है. इसके अलावा जुलूस में शामिल होने वाले लोगों और गाड़ियों की संख्या भी बतानी पड़ती है. आयोजकों के आवेदन को जांचने-परखने के बाद ही डिप्टी कमिश्नर या जिलाधिकारी ये तय करते हैं कि जुलूस की अनुमति दी जाए या नहीं.

पिछले साल जब कई जगहों पर हिंसा भड़की, तब हमने इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) के पूर्व स्पेशल डायरेक्टर और पूर्व IPS अधिकारी यशोवर्धन आजाद से बात की थी. आजाद ने दी लल्लनटॉप को बताया था कि इस तरह के धार्मिक जुलूसों की अनुमति के लिए पुलिस अपनी तरफ से कुछ शर्तें भी लगाती हैं.

उन्होंने कहा था, 

"परमिशन देने पर कई बार शर्तें लगाई जाती हैं कि आप कुछ हथियार नहीं ले जा सकते या कोई खास काम नहीं कर सकते हैं. आयोजकों के साथ प्रशासन की मीटिंग होती है. अगर स्थिति संवेदनशील होती है प्रशासन अनुमति नहीं भी दे सकता है. ये सारा कुछ स्थानीय पुलिस पर निर्भर करता है."

उन्होंने आगे बताया कि जहां तक जुलूस निकालने के समय और लोगों की संख्या का सवाल है, तो ये भी पूरी तरह पुलिस के विवेक पर है. ये स्थानीय पुलिस पर ही है कि वो आयोजक की मांग पर अपना मूल्यांकन किस तरीके से करती है और कैसे प्रतिबंध लगाती है. आयोजकों को जुलूस या शोभा यात्रा के दौरान प्रशासन द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों को मानना होता है.

सुरक्षा के लिए कौन जिम्मेदार?

हमने रैलियों में सुरक्षा को लेकर उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह से भी बात की थी. उन्होंने दी लल्लनटॉप को बताया कि हर त्योहार से पहले पुलिस विभाग की ये जिम्मेदारी होती है कि वो राज्य और देश के इंटेलिजेंस की समीक्षा करे. धार्मिक जुलूस के नियमों को लेकर विक्रम सिंह ने बताया, 

"आयोजकों को थाने में आधार कार्ड और अपनी तस्वीर जमा करनी पड़ती है. लेकिन हथियार लहराने की अनुमति नहीं होती है. सरदारों (सिख) को चाकू या कृपाण लेकर चलने की अनुमति है, वो भी 12 इंच से कम हो. जो लाउडस्पीकर आप लगाएंगे, उसकी आवाज 50 डेसीबल से ज्यादा नहीं होनी चाहिए. किसी तरह का भड़काऊ भाषण और नारेबाजी नहीं कर सकते हैं. पुलिस को पूरे जुलूस की वीडियोग्राफी करनी होती है."

पूर्व डीजीपी ने ये भी कहा कि धार्मिक जुलूस के लिए पूरे रूट में महिला और पुरुष पुलिसकर्मी वर्दी के साथ और सादे कपड़े में भी तैनात किए जाने का नियम है. ऐसे जुलूसों में दूरबीन वगैरह से भी निगरानी करनी होती है. विक्रम सिंह ने साल 2022 में दिल्ली के जहांगीरपुरी में हुई हिंसा का उदाहरण देते हुए बताया, 

"दिल्ली में जो हुआ, उसमें पुलिस की भी गलती है. जब इजाजत ही नहीं दी गई थी, तो जुलूस कैसे निकल गया? इसके लिए जिन्होंने जुलूस निकाला और जिन्होंने निकलने दिया, दोनों पर कार्रवाई होगी. अगर कोई धार्मिक जुलूस है तो वो अपने धार्मिक स्थान के आसपास ही क्यों नहीं निकले?"

यशोवर्धन आजाद ने इस तरह की घटनाओं के पैटर्न पर बात करते हुए कहा कि पिछले 40 साल से ऐसा ही होता आ रहा है. आजाद के मुताबिक, 

"कोई धार्मिक जुलूस मस्जिद के सामने जाता है. तेज आवाज होती है. फिर पथराव होता है. जब अनुमति नहीं मिलने के बावजूद यात्रा निकलती है तो ऐसे संवेदनशील इलाके में पुलिस की छोटी टुकड़ी आप क्यों भेजते हैं."

दोनों पूर्व अधिकारियों ने इस तरह की हिंसा के लिए पुलिस को भी बहुत हद तक जिम्मेदार ठहराया. उनका मानना है कि पुलिस अगर चाहे तो ऐसी धार्मिक यात्राओं में हिंसा रोकी जा सकती है.

बहरहाल, नूह से ताजा अपडेट ये है कि पुलिस ने VHP के कुछ लोगों को जलाभिषेक की अनुमति दे दी है. हालांकि ये अब भी साफ नहीं है कि वे यात्रा निकालेंगे या नहीं. हालांकि, VHP का कहना है कि वो अपनी यात्रा को प्रतीकात्मक तौर पर पूरा करेंगे.

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