गुजरात के खेड़ा की वो घटना शायद आपको अभी भी याद होगी. वीडियो वायरल हुए थे. कुछ मुस्लिम युवकों को चौराहे पर बांधकर पुलिसवालों ने पीटा था. अब यानी 19 अक्टूबर (गुरुवार) को गुजरात हाईकोर्ट ने इस मामले में सजा सुनाई है. कोर्ट ने आरोपी चारों पुलिसकर्मियों को दोषी मानते हुए उन्हें 14 दिन की सजा सुनाई है और उन पर 2000 रुपये का आर्थिक दंड भी लगाया है. हाईकोर्ट ने सजा सुनाते हुए कहा कि पुलिसवालों की हरकत कोर्ट ऑफ लॉ का अपमान है. और पुलिस के इस तरह के व्यवहार से पीड़ितों को मानसिक प्रताड़ना हुई है. अदालत ने आगे कहा कि अगर आरोपी पुलिसवालों को माफ किया गया तो आने वाले दिनों में और भी ऐसे मामले देखने को मिलेंगे, फिर पुलिसकर्मी बीच चौराहे पर लोगों को सजा देने लगेंगे. हालांकि, अदालत ने एक दोषी के अनुरोध के बाद अपने आदेश पर तीन महीने के लिए रोक लगा दी, ताकि फैसले के खिलाफ ऊपरी अदालत में अपील की जा सके.
'माफी दी तो पुलिस चौराहे पर सजा देने लगेगी', गुजरात में मुस्लिमों को पीटा था, अब पुलिसवालों को सजा
गुजरात के खेड़ा में पुलिसवालों ने मुस्लिम लड़कों को चौराहे पर बांधकर पीटा था. गुजरात हाईकोर्ट ने कहा कि अगर इन पुलिसवालों को माफ किया गया तो आने वाले दिनों में और भी ऐसे मामले देखने को मिलेंगे, फिर हर जगह पुलिसकर्मी बीच चौराहे पर लोगों को सजा देते दिखाई देंगे. अदालत ने और क्या-क्या कहा?

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक गुजरात हाईकोर्ट के जस्टिस एएस सुपेहिया और गीता गोपी की पीठ ने मामले पर फैसला सुनाया है. उन्होंने पुलिस द्वारा सार्वजनिक रूप से की गई पिटाई के कृत्य को "अमानवीय" और "मानवता के खिलाफ किया गया कृत्य" करार दिया. उन्होंने कहा कि किसी को यातना देने या उसका अपमान करने से उस व्यक्ति को शारीरिक और भावनात्मक चोट पहुंच सकती है. अदालत के मुताबिक गिरफ्तार किए गए लोगों को भी जीवन का अधिकार है. और इस अधिकार में सम्मान के साथ जीवन जीने का अधिकार भी शामिल है. कोर्ट के अनुसार किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी के बाद उसके इस अधिकार को खत्म नहीं किया जा सकता है.
इस दौरान पीठ ने मदर टेरेसा के कहे कुछ शब्द भी बोले. कहा, “मानवाधिकार सरकार द्वारा दिया गया विशेषाधिकार नहीं है, वो मानवता के आधार पर हर इंसान का अधिकार है." अदालत के मुताबिक इस केस में आरोपी पुलिसकर्मियों ने शिकायतकर्ताओं के मानवाधिकारों और गरिमा को नुकसान पहुंचाया है. वीडियो देखकर ऐसा लग रहा है कि जैसे इन पुलिसवालों को ऐसा करने का विशेषाधिकार दिया गया हो. कोर्ट के मुताबिक पुलिस हिरासत में मौजूद व्यक्ति की गरिमा को खराब करने की अनुमति किसी को भी नहीं है.
इस दौरान अदालत का ये भी कहना था कि कानून और व्यवस्था के संरक्षकों को यानी पुलिस को किसी व्यक्ति की आजादी का हनन नहीं करना चाहिए, क्योंकि उनका कर्तव्य रक्षा करना है. अदालत ने जिन चार पुलिसकर्मियों को सजा सुनाई है. उनके नाम एवी परमार, डीबी कुमावत, कनक सिंह लक्ष्मण सिंह और रमेशभाई डाभी हैं.
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उंधेला में उस दिन हुआ क्या था?लोगों की पिटाई की घटना गुजरात के खेड़ा ज़िले के उंधेला गांव की है. 3 अक्टूबर, 2022 की रात को गांव में गरबा का आयोजन हुआ था. कार्यक्रम के पास तुलजा भवानी का मंदिर है. मंदिर के ठीक बग़ल में एक मदरसा है. आरोप है कि मदरसे के कुछ लोगों ने वहां गरबा खेलने से मना किया. इसके बावजूद गरबा जारी रहा. दोनों तरफ़ से काफ़ी देर तक बहस होती रही. फिर मदरसे के ऊपर से कुछ लोगों ने कथित तौर पर पत्थर फेंकने शुरू कर दिए. 6 लोग घायल हुए, जिनमें महिलाएं भी शामिल थीं. घटना के बाद गांव में तनाव का माहौल बन गया. मुस्लिम समुदाय के कुछ लोगों पर आरोप लगे कि पत्थरबाज़ी उन्होंने शुरू की थी.
विवाद के बाद गांव में पुलिस को तैनात किया गया. इस मामले में पुलिस ने नौ आरापियों को गिरफ़्तार किया. बताया जाता है कि इन सभी को पुलिस गांव में ले गई. खंभे से बांधकर उन्हें लाठी से पीटा गया. बारी-बारी से. इस बीच वहां मौजूद भीड़ नारे भी लगाती रही.
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पिटने वालों में मालेक परिवार के भी पांच लोग शामिल थे. इन लोगों ने गुजरात हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की. इसमें 13 पुलिसकर्मियों पर पिटाई का आरोप लगाया. आरोप ये भी कि इन्होंने ऐसा करके कोर्ट की अवमानना की. याचिका में कहा गया था कि इन पुलिस वालों ने डीके बासु बनाम बंगाल सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए दिशानिर्देशों का उल्लंघन किया है. उस केस में सुप्रीम कोर्ट की तरफ से कहा गया था कि किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करने से पहले उचित प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए.
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