पहले दिन यानी 2 अक्टूबर को सदन में गांधी ज़िंदाबाद के नारे लग रहे थे. कांग्रेस के साथ-साथ भाजपा वाले मिल-मिलाकर गांधी ज़िंदाबाद के नारे लगा रहे थे. फिर सभी विधायक.
फिर कांग्रेस विधायकों के खेमे से एक नया नारा आया. "गोडसे मुर्दाबाद". वही नाथूराम गोडसे, जिसने गांधी को गोली मार दी थी. जैसे ही ये नारा लगा, सभी भाजपाई चुप्प.

छत्तीसगढ़ मुख्यमंत्री भूपेश बघेल
कांग्रेसियों ने उकसाने के लिए एकबार और नारा लगाया. फिर भी भाजपाई चुप. अखबार टाइम्स ऑफ़ इंडिया के मुताबिक़, इस समय सीएम भूपेश बघेल ने बयान दिया,
"अगर कोई गांधी और उनकी विचारधारा को सच में अपनाना चाहता है, उन्हें हर हाल में नाथूराम गोडसे की निंदा करनी ही होगी. आज देश में जिस तरह की राष्ट्रवादी विचारधारा को बढ़ावा दिया जा रहा है, उससे गांधी की विचारधारा को कमतर साबित किया जा रहा है, और ये राष्ट्रवाद गांधी के राष्ट्रवाद से बिलकुल अलग है."फिर सीएम बघेल ने कहा,
"जब हम गांधी को याद करते हैं, तो गोडसे के बारे में भी बात होती है. जब गांधी की जयजयकार होती है, तो गोडसे की निंदा मुर्दाबाद कहकर की जानी चाहिए."इस बात से सदन में और भी बवाल हो गया. विपक्ष के नेता और राज्य भाजपा के पूर्व अध्यक्ष धरमलाल कौशिक ने मोर्चा खोला. कहा कि गोडसे मुर्दाबाद कहने से लगता है कि हम गोडसे को गाली दे रहे हैं. उन्होंने बात सम्हालते हुए कहा,
"गांधी हमेशा अहिंसा के पथ पर चले. उन्होंने इस तरह से आलोचना करने का कभी समर्थन नहीं किया. ऐसी सलाह देकर राज्य सरकार गलत दिशा में ले जा रही है."सारी बातचीत के बाद भाजपा विधायकों ने "गोडसे मुर्दाबाद" के रेटोरिक पर कांग्रेस का साथ देने से मना कर दिया. छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा नेता रमन सिंह ने कहा,
"विधानसभा को मुर्दाबाद के नारे लगाने की जगह बनाना चाहते हैं, भूपेश बघेल की यही मानसिकता है. उन्हें इससे ही संतुष्टि मिलती है."
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