भारत दुनियाभर के आठ प्रतिशत जीव-जंतुओं का घर है. इन आठ प्रतिशत जीव जंतुओं में करीब 92 हजार अलग तरह की प्रजातियां हैं. इन जीव जंतुओं में से कई ऐसे भी हैं, जो सिर्फ भारत में ही पाए जाते हैं. और कई ऐसे भी, जो विलुप्ति की कगार पर हैं. इस आर्टिकल में ऐसे ही कुछ जंतुओं के बारे में जानेंगे.
ये पांच जानवर केवल भारत में पाए जाते हैं, कुछ के बारे में तो शायद सुना भी ना हो
इनमें से कुछ विलुप्ति की कगार पर हैं.


वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर इंडिया(WWF) की वेबसाइट पर मौजूद जानकारी के मुताबिक, संगाई हिरण को साल 1950 तक लगभग विलुप्त मान लिया गया था. लेकिन साल 1953 में मणिपुर के जंगल में कुछ लोगों ने इसे फिर से देखा. आज संगाई हिरणों की संख्या 200 से 250 के करीब है. संगाई हिरण, मणिपुर का राजकीय पशु है. ये मुख्यतः मणिपुर में ही पाए जाते हैं. इनका इलाका लोकटक झील से केइबुल लामजाओ आर्द्रभूमि तक सीमित है. लोग इन्हें नाचने वाले हिरण भी कहते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि जब ये हिरण फुमड़ी(घास के मैदान जो पानी पर तैरते हैं) पर चलता है, तो इसके पैर स्पंजी जमीन में धंस जाते हैं. जब वो घास से पैर निकालता है तो दूर से देखने पर ऐसा लगता है कि वो नाच रहा है.
#नीलगिरि तहर
इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर की वेबसाइट के मुताबिक, नीलगिरि तहर भारत के तमिलनाडु और केरल में मौजूद नीलगिरि पर्वत और पश्चिमी घाट के दक्षिणी इलाकों में पाया जाता है. इसके सबसे करीबी संबंधी बकरी और भेड़ हैं. स्थानीय भाषा में इसे नीलगिरि साकिन भी कहते हैं. इसके शरीर के बाल छोटे और रूखे होते हैं. नर नीलगिरि तहर साइज में मादा से बड़ा होता है. बड़े होने के साथ इसका रंग गाढ़ा होता जाता है. वयस्क होने तक इनका वजन 100 किलो तक पहुंच जाता है और लंबाई 100 सेंटीमीटर तक होती है.
इनके सिर में सींग भी होते हैं. जिनकी लंबाई 50 सेंटीमीटर तक होती है.ये दक्षिणी पश्चिमी घाट की पहाड़ियों पर मौजूद वर्षा वनों में चरने (घास खाने) जाते हैं. इनके चारागाह (खाने की जगह) ज्यादातर खुले होते हैं और घने जंगलों से घिरे होते हैं. 19वीं सदी से पहले तक इन घास के मैदानों में ये बड़े-बड़े झुंडों में चरने आते थे. लेकिन फिर बेलगाम शिकार के चलते इनकी आबादी घटती गई. बीसवीं सदी के शुरुआत में इनकी संख्या 100 रह गई थी. हालांकि, अब इनकी संख्या करीब 2000 हो गई है.
# गोडावण
सन 1981 में गोडावण को राजस्थान का राजकीय पक्षी घोषित किया गया था. इसे ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, सोन चिरैया और हुकना पक्षी भी कहते हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, साल 2019 में इनकी संख्या महज 150 ही रह गई थी. जिसके बाद जैसलमेर जिले के में एक हैचरी में इनके अंडों को सहेज कर रखा गया था. फिर इन पक्षियों की संख्या बढ़ी है. इनकी लंबाई एक मीटर से अधिक होती है. और उड़ने वाले पक्षियों में ये सबसे ज्यादा वजनी पक्षी होता है. इस पक्षी का मुख्य आहार है टिड्डा, सांप, छिपकली और छोटे कीड़े मकोड़े.
#एशियाटिक लायन
विलुप्ति की कगार पर शेर की ये प्रजाति भारत के गुजरात राज्य के गिर वन में पाई जाती है. आज भारत में करीब 600 एशियाई शेर बचे हैं. गिर वन इनका आखिरी घर है. एशियाई शेरों का वजन 180 से 230 किलोग्राम तक होता है. इनकी औसत लंबाई 2.70 मीटर होती है. इनका रंग गाढ़े भूरे, लाल या कुछ कुछ पीले रंग का भी होता है. ये शेर 40 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से दौड़ सकते हैं. इन शेरों की दुम लंबी होती है. गुजरात में लोग इसे ऊंटिया बाघ या सावज के नाम से भी जानते हैं.

लायन टेल्ड मकाक बंदर के मुंह की बनावट कुछ कुछ शेर की तरह होती है. इनकी गर्दन पर शेर की तरह बड़े बड़े बाल होते हैं. अपनी लंबी पूंछ की वजह से ये शेर जैसे दिखाई देते हैं. इनकी औसत उम्र 30 साल की होती है. ये बंदर कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु में पश्चिमी घाट के छोटे-छोटे वर्षावनों में पाए जाते हैं. इनके शरीर की लंबाई 45 सेंटीमीटर से 61 सेंटीमीटर तक होती है. और इनका वजन 5 से 10 किलो तक होता है. इनका मुख्य आहार फल, बीज, टहनियों का रस, फूल और देवदार का फल होता है. इनकी प्रजाति के करीब 3000 से 3500 बंदर बचे हैं.
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