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भारी बारिश-तूफान से तबाही झेल रहा दुबई अपनी ही करनी तो नहीं भुगत रहा?

UAE एक सूखा प्रायद्वीप देश है. ऐसी बारिश सामान्य नहीं. गर्मियों में तापमान 50 डिग्री के पार जाता है. बारिश कभी-कभी सर्दियों के महीनों के दौरान हो जाती है. इस असामान्य घटना के पीछे कथित तौर पर देश की सरकार की ही एक चूक है.

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सड़कों पर गाड़ी चलाना मुहाल है. (फ़ोटो - गेटी)

संयुक्त अरब अमीरात (UAE) और ओमान में भयानक बरसात और तूफ़ान से हालात गंभीर हैं. एक दिन में इतनी बारिश हुई, जितनी डेढ़ साल में होती है. सड़कों पर पानी भर गया है, घरों में पानी घुस गया है. यातायात जाम है और लोग अपने ही घरों में फंस गए हैं. फ़्लाइट्स डायवर्ट कर दी गई हैं. स्कूल बंद हैं. ऑफ़िस जाने वाले घर से काम कर रहे हैं. यहां तक कि दुबई ठप हो गया है. ओमान में बाढ़ से कम से कम बीस लोगों की मौत की ख़बर है. UAE में भी मौत की ख़बरें हैं. संख्या अभी पुष्ट नहीं है.

उनकी सरकारी समाचार एजेंसी के मुताबिक़, जब से डेटा इकट्ठा करना शुरू किया गया है - 1949 से - इस बार के बारिश-तूफ़ान अब तक दर्ज की गई किसी भी मौसमी घटना से कहीं ज़्यादा एक्सट्रीम है. जबकि UAE एक सूखा प्रायद्वीप देश है. यहां ऐसी बारिश सामान्य नहीं है. गर्मियों में तो रेगिस्तान-सा रूखापन रहता है, तापमान 50 डिग्री के पार जाता है. बारिश कभी-कभी सर्दियों के महीनों के दौरान हो जाती है. इस असामान्य घटना के पीछे कथित तौर पर देश की सरकार की ही एक चूक है.

अपना ‘बोया’ काट रहे हैं?

चूंकि मौसम रूखा-सूखा ही रहता है और देश भूजल स्रोतों पर बहुत अधिक निर्भर है, इसलिए जल का संकट रहता है. इसके लिए UAE की सरकार ने कई जुगाड़ निकाल रखे हैं. जैसे, देश में अक्सर 'क्लाउड सीडिंग' की जाती है.

क्लाउड सीडिंग माने क्या? बरसात बढ़ाने का एक इंसानी जुगाड़. इसमें एक एयरक्राफ़्ट से सिल्वर-आयोडाइड और कुछ दूसरे केमिकल्स के मिश्रण को बादलों के ऊपर छिड़का जाता है. इससे बनते हैं ‘ड्राई आइस’ (dry ice) के क्रिस्‍टल्स. ठोस कार्बन-डाइऑक्साइड (CO2) को ड्राई आइस कहते हैं. क्योंकि ये बर्फ़ पिघलकर पानी नहीं बनती. सीधे गैस बन कर छू हो जाती है. बादल की नमी इन्हीं क्रिस्टल्स पर चिपकती है और बादल भारी हो जाने पर बारिश होती है. इस प्रक्रिया से हर साल लगभग 10% से 30% की बढ़ोतरी हो सकती है. इस प्रोसेस के बारे में विस्तार से पढ़ने के लिए यहां क्लिक करिए.

एक तरफ़ क्लाउड सीडिंग से बरसात तो बढ़ जाती है, मगर दूसरी तरफ पर्यावरण के भी कुछ जोख़िम बढ़ सकते हैं. कम या अत्याधिक बारिश, बाढ़ और इकोसिस्टम पर दीर्घकालिक असर हो सकता है – ऐसी चिंताएं उठाई गई हैं. हाल में घटी ऐसी एक्सट्रीम घटनाओं में इंसानी ख़ुराफ़ात का ही हाथ माना जाता है.

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वैसे तो UAE की मौसम एजेंसी ने अंतरराष्ट्रीय न्यूज़ एजेंसी रॉयटर्स को बताया है कि हाल में उन्होंने क्लाउड सीडिंग नहीं करवाई. हालांकि, ओमान ने अपनी सीमा में ये काम करवाया है.

हाल के ऑपरेशन से बहुत मतलब नहीं, क्योंकि जब भी आर्टिफ़िशियल बारिश के ख़तरों का ज़िक्र आता है, तो दीर्घकालिक ख़तरों की ओर इशारा किया जाता है.

और क्या कारण हो सकते हैं?

क्लाइमेट साइंटिस्ट कॉलिन मैक्कार्थी ने द इकोनॉमिक टाइम्स को बताया कि दुबई में बीते दिनों में जितनी बारिश हुई है, उतनी सामान्यतः डेढ़-दो साल में होती है. उनके मुताबिक़, फ़ारस की खाड़ी में जो कई दौर के तीव्र तूफ़ान आए, वही इस क्षेत्र में भारी बारिश के लिए ज़िम्मेदार हैं.

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जलवायु विज्ञानी फ्राइडेरिक ऑटो का कहना कि UAE और आस-पास क्षेत्रों के मौसम बिगाड़ में ग्लोबल वॉर्मिंग की भूमिका हो सकती है. अलग-अलग अध्ययनों से पता चला है कि औसत तापमान में एक डिग्री बढ़ जाने से वातावरण में लगभग 7% अधिक नमी बढ़ जाती है. वैश्विक तापमान लगातार बढ़ रहा है और इससे न केवल ज़मीन से, बल्कि महासागरों और बाक़ी जल बॉडीज़ से भी पानी भाप बन कर बादलों को भारी कर रहा है.

हालांकि, ये इतना सीधा नहीं है कि किसी भी विशेष मौसमी घटना का ज़िम्मेदार जलवायु परिवर्तन को ठहरा दिया जाता है. कई कारक हैं. जैसे, एक और कारण हो सकता है. संयुक्त अरब अमीरात और ओमान में भारी बारिश से निपटने के लिए जल निकासी प्रणालियों की कमी है.

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