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बांग्लादेश में सत्यजीत रे के घर को तोड़ा जाना है, भारत ने कहा- म्यूजियम बनाइए, हम मदद करेंगे

1947 में विभाजन के बाद, Stayajit Ray के पूर्वज का ये घर पूर्वी पाकिस्तान का हिस्सा बन गया. स्थानीय अधिकारियों ने इस घर को अपने कब्जे में ले लिया. 1989 में, इसे मयमनसिंह शिशु अकादमी बना दिया गया लेकिन पिछले कई सालों से ये वीरान पड़ा हुआ था.

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सत्यजीत रे के पैतृक घर को गिराया जा रहा है. (फाइल फोटो: VladAdiReturns/X)

महान फिल्ममेकर सत्यजीत रे (Satyajit Ray) के बांग्लादेश (Bangladesh) स्थित पैतृक घर को तोड़ा जा रहा है. भारत सरकार ने इस पर कड़ी आपत्ति दर्ज कराई है. विदेश मंत्रालय ने कहा है कि बांग्लादेश सरकार को इस फैसले पर फिर से सोचना चाहिए. उन्होंने इस घर की मरम्मत के लिए सहयोग करने की इच्छा जताई है. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी इस मामले पर अपनी प्रतिक्रिया दी है.

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बांग्लादेशी न्यूज वेबसाइट डेली स्टार की रिपोर्ट के मुताबिक, सत्यजीत रे का ये घर मैमनसिंह शहर में है. सौ साल पुरानी ये इमारत, रे के एक अन्य पूर्वज होरिकिशोर रे चौधरी के नाम पर बनी सड़क पर स्थित है. इसका इस्तेमाल पहले मयमनसिंह शिशु अकादमी के रूप में किया जाता था. इसके तोड़े जाने की खबर पर प्रतिक्रिया देते हुए भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा,

हमें अत्यंत खेद है कि बांग्लादेश के मैमनसिंह में प्रसिद्ध फिल्म निर्माता और साहित्यकार सत्यजीत रे की पैतृक संपत्ति को ध्वस्त किया जा रहा है. ये उनके दादा और प्रख्यात साहित्यकार उपेंद्र किशोर रे चौधरी की थी. 

इमारत के ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए इस पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए. साहित्य संग्रहालय के साथ साथ भारत और बांग्लादेश की साझा संस्कृति के प्रतीक के रूप में इसकी मरम्मत और पुननिर्माण के बारे में सोचना बेहतर विकल्प होगा.

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भारत सरकार ने कहा है कि वो इस मामले को लेकर स्थानीय अधिकारियों की मदद करना चाहते हैं.

ममता बनर्जी की भी प्रतिक्रिया आई

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी इस घटना को बेहद दुखद बताया है. उन्होंने एक्स पर बांग्ला में लिखा है,

खबरों से पता चलता है कि बांग्लादेश के मैमनसिंह शहर में, सत्यजीत रे के पूर्वज और प्रसिद्ध लेखक-संपादक उपेंद्रकिशोर रे चौधरी के पैतृक घर को कथित तौर पर ध्वस्त किया जा रहा है. बताया जा रहा है कि विध्वंस का काम पहले ही शुरू हो चुका है.

ये परिवार बंगाली संस्कृति के अग्रणी वाहकों में से एक हैं. उपेंद्र किशोर बंगाल के पुनर्जागरण के एक स्तंभ हैं. इसलिए, मेरा मानना है कि ये घर बंगाल के सांस्कृतिक इतिहास से गहराई से जुड़ा हुआ है.

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क्यों तोड़ा जा रहा है?

डेली स्टार की रिपोर्ट के मुताबिक, स्थानीय अधिकारियों ने इस घर की सालों से उपेक्षा की है. इसके कारण इमारत को काफी नुकसान पहुंचा है. जिला बाल मामलों के अधिकारी मोहम्मद जमान के हवाले से रिपोर्ट में कहा गया है,

ये घर 10 सालों से वीरान पड़ा है. शिशु अकादमी की गतिविधियां किराए की जगह से संचालित हो रही हैं. 

उन्होंने कहा कि अब शैक्षणिक गतिविधियों के लिए उस स्थान पर एक अर्ध-निर्मित संरचना बनाई जाएगी. स्थानीय कवि शमीम अशरफ ने बताया, 

ये घर वर्षों से दयनीय स्थिति में था. इसकी छत में दरारें पड़ गई थीं, लेकिन संबंधित अधिकारियों ने कभी भी पुरानी इमारतों के पीछे छिपे समृद्ध इतिहास की परवाह नहीं की.

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स्थानीय लोगों ने क्या कहा?

1947 में विभाजन के बाद, जब ये क्षेत्र पूर्वी पाकिस्तान का हिस्सा बन गया, तो स्थानीय अधिकारियों ने इस घर को अपने कब्जे में ले लिया. 1989 में, इसे मयमनसिंह शिशु अकादमी के रूप में पुनर्निर्मित किया गया. 

स्थानीय निवासियों ने भी इस विध्वंस का विरोध करते हुए तर्क दिया है कि इससे शहर की सांस्कृतिक और साहित्यिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा नष्ट हो जाएगा.

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