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'नोटबंदी की प्रक्रिया ग़लत नहीं, सरकार का फैसला सही' - SC

कोर्ट ने कहा, "आर्थिक फैसलों को पलटा नहीं जा सकता"

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फोटो - 8 नवंबर 2016 को डिमॉनेटाइज़ेशन का एलान करते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और प्रतीकात्मक तस्वीर

सुप्रीम कोर्ट ने 2 जनवरी 2023 को नोटबंदी (Demonetisation) के केस में फ़ैसला सुनाया. कोर्ट ने कहा है कि नोटबंदी की प्रक्रिया ग़लत नहीं थी और पांच जजों की बेंच में से चार जजों ने सरकार के फ़ैसले को सही क़रार दिया है. ख़बरों के मुताबिक़, सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा है कि आर्थिक मामलों से जुड़े फैसलों को पलटा नहीं जा सकता है.

केवल एक जज ने मेजॉरिटी से अलग बात कही है. जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा कि जिस तरह से नोटबंदी की गई, वो ग़ैर-क़ानूनी है. कहा, 

“8 नवंबर, 2016 की अधिसूचना के तहत केंद्र सरकार द्वारा की गई नोटबंदी की कार्रवाई ग़ैर-क़ानूनी है. लेकिन फ़ैसले के छह साल बाद कुछ नहीं किया जा सकता था.”

नोटबंदी सही क़दम था या ग़लत?

अदालत में नोटबंदी के अलग-अलग पहलुओं को चुनौती देने वाली कुल 58 याचिकाएं दायर की गई थीं. सभी याचिकाओं की सुनवाई पिछले साल 12 अक्टूबर को शुरू हुई और जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर, बीआर गवई, एएस बोपन्ना, वी रामासुब्रमण्यन और बीवी नागरत्ना की संवैधानिक बेंच ने 7 दिसंबर, 2022 को ही अपना फ़ैसला सुरक्षित कर लिया था. 25 दिसंबर से कोर्ट बंद था और इसीलिए नए साल के दूसरे दिन यानी 2 जनवरी, 2023 को सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला आया है.

8 नवंबर, 2016 को 500 और 1000 रुपये के पुराने नोट बंद हुए और तभी से नरेंद्र मोदी सरकार के इस क़दम पर विवाद हो गया. नोटबंदी के पक्षधरों का तर्क था कि इससे भ्रष्टाचार और आतंकवाद की कमर टूट जाएगी. प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में भी यही कहा था. नोटबंदी के ख़िलाफ़ वालों का कहना था कि इस फ़ैसले को सही तरीक़े से लागू नहीं किया गया और इस वजह से जनता पर इसका 'बोझ' पड़ा. अर्थशास्त्रियों ने ये भी कहा कि खुदरा व्यापरियों और छोटे बिज़नेस चलाने वालों पर बुरा असर पड़ा है.

पेटिशन में क्या सवाल पूछे गए थे?

पहला तो यही कि इस क़दम का मक़सद तो पूरा हुआ ही नहीं. देश के पूर्व गृह मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पीवी चिदंबरम ने तर्क रखा कि सरकार ने नोटबंदी के जो उद्देश्य बताए थे, वो सब झूठे थे. न नोटबंदी से वो पूरे हुए, न पूरे हो सकते थे.

आरोप ये भी लगे कि सरकार ने RBI का उल्लंघन किया है. केंद्र सरकार ने दावा किया है कि वो RBI ऐक्ट की धारा 26 (2) के तहत मुद्रा को विमुद्रीकृत कर सकती है. लेकिन, चिदंबरम ने तर्क दिया कि प्रावधान केवल मुद्रा की एक ख़ास सीरीज़ को डिमॉनेटाइज़ करने की अनुमति देता है. जबकि सरकार ने तो सभी 500 रुपये और 1000 रुपये के नोटों बंद कर दिए. इसे संदर्भ में रखते हुए उन्होंने 1946 और 1978 की मिसाल दी. जब तत्कालीन वैध करेंसी नोटों की केवल एक सीरीज़ बंद की गई थी.

सरकार का तर्क क्या था?

जब मामला कोर्ट में गया और सरकार से जवाब मांगे गए, तो सरकार ने पेटिशन में कहा कि ये एक सोचा-समझा हुआ फ़ैसला था. और, नोटबंदी लागू करने से 9 महीने पहले फरवरी 2016 से ही इस बारे में RBI से मशवरा चल रहा था. RBI ने भी यही कहा कि उचित प्रक्रिया का पालन किया गया था और उन्होंने ही सरकार से नोटबंदी की सिफ़ारिश की थी. हालांकि, RBI और सरकार कुछ छिपा भी रही है. इंडियन एक्सप्रेस के उदित मिश्रा की रिपोर्ट के मुताबिक़, RBI ने नोटबंदी को लेकर कई असहमतियां जताई थीं. और, घोषणा के कुछ ही घंटे पहले इन्हें रिकॉर्ड में रखा गया था.

इसके अलावा, अटॉर्नी जनरल वेंकटरमणि ने नोटबंदी के पक्ष में कहा कि इससे डिजिटल इकोनॉमी में बढ़ोतरी हुई है. टैक्स कलेक्शन में बेहतरी हुई है. चिदंबरम के आरोप का जवाब देते हुए कहा कि किसी ख़ास सीरीज़ को बंद करते तो जनता कन्फ़्यूज़ हो जाती.

वीडियो: खर्चा पानी: नोटबंदी पर केन्द्र और RBI ने हलफनामे में सुप्रीम कोर्ट को नहीं बताई पूरी बात!