The Lallantop

सबकी बढ़ गई, बस दिल्ली के विधायकों की सैलरी ही नहीं बढ़ी

सबको लगता है कि केजरीवाल ने अपने विधायकों की सैलरी 4 गुनी कर दी. विधायकों के दोस्तों को भी यही लगता है. लेकिन सच्चाई कुछ और है.

Advertisement
post-main-image
फोटो - thelallantop
घटिया अप्रेजल पर हम कितना शोर मचाते हैं. लेकिन उनके अप्रेजल का क्या जो हमारे चुने हुए प्रतिनिधि हैं?
'हम इरोम शर्मिला की तरह जान देने तक अनशन करें, तभी आदर्श नेता माने जाएंगे. उन्हें लगता है कि विधायक तो देश सेवा के लिए आया है. क्यों भाई? देश सेवा करने तो फौजी भी आया है. पुलिस वाला भी आया है. अफसर भी आया है. पर उन्हें परिवार भी तो चलाना है.'
ये सौरभ भारद्वाज हैं. दिल्ली के ग्रेटर कैलाश से 36 वर्षीय विधायक. राजनीति में आने से पहले आईटी सेक्टर में नौकरी करते थे. बहुत पूछने पर अपनी पुरानी सैलरी बताई, डेढ़ लाख रुपये महीना. अब विधायक बनकर वो 12 हजार रुपये बेसिक सैलरी पाते हैं. दिल्ली पर लौटेंगे, लेकिन उससे पहले यूपी के मंत्रियों को मुबारक! करीब तीन गुना सैलरी के बिल पर कैबिनेट ने मुहर लगा दी. बिल अब विधानसभा में पेश होगा, जहां पास होने के बाद मंत्रियों को बढ़ी हुई सैलरी मिलने लगेगी. इसी महीने महाराष्ट्र असेंबली में विधायकों की सैलरी में 166 फीसदी बढ़ाने का बिल पास हो चुका है.
यूपी और महाराष्ट्र में जनप्रतिनिधियों की सैलरी बढ़ जाएगी, क्योंकि वे पूर्ण राज्य हैं. 'अच्छी सैलरी' को तरस रहे हैं तो बस दिल्ली के विधायक, जहां सैलरी बढ़ाने के बिल पर सबसे ज्यादा सवाल किए गए थे. सबसे ज्यादा बवाल हुआ था.

कम लोग जानते हैं कि दिल्ली के विधायकों की सैलरी अभी नहीं बढ़ पाई है. सबको लगता है कि केजरीवाल सरकार ने विधायकों की तनख्वाह में जो 400 परसेंट का इजाफा किया था, वो लागू हो गया है. 3 AAP विधायक सौरभ भारद्वाज बताते हैं, 'दिल्ली और पूरे भारत के लोग समझते हैं कि हमारी सैलरी 400 परसेंट बढ़ चुकी है. मेरे कई दोस्तों को भी यही लगता है. लेकिन ऐसा नहीं है.'

फिर वही सेंटर का अड़ंगा!

दिल्ली के पास पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं है. इसलिए उसे बिल पास करने के बाद गृह मंत्रालय को भेजने को होते हैं. केंद्र की मुहर के बिना वे कानून में तब्दील नहीं होते.
राजनाथ सिंह के मंत्रालय ने हाल ही में दिल्ली सरकार के 14 बिल लौटाए थे. इनमें विधायकों की सैलरी बढ़ाने का बिल भी शामिल था.

गृह मंत्रालय ने एलजी नजीब जंग के जरिये ये बिल दिल्ली सरकार को वापस भेजकर स्पष्टीकरण मांगा है. अखबार 'इकोनॉमिक टाइम्स' ने 5 अगस्त 2016 को एक सरकारी अधिकारी के हवाले से छापा था कि सरकार ने बिल के बारे में कुछ 'क्यूरेबल' और 'नॉन क्यूरेबल' सवाल पूछे हैं. सरकार ने पूछा है कि बिल में विधायकों और स्पीकर की सैलरी कैलकुलेट करने के लिए कौन सा तरीका इस्तेमाल किया गया? 1
दिल्ली अपने हर बिल के लिए गृह मंत्रालय पर आश्रित हैं. लेकिन हाल के दिनों में हमने दिल्ली और केंद्र सरकार के बीच सबसे कुरूप अदावत देखी है.

दिल्ली सरकार इसे जान-बूझकर अड़ंगा डालना कह रही है. हालांकि बाकी प्रदेशों में सैलरी बढ़ाए जाने पर AAP विधायक सौरभ भारद्वाज ने खुशी जाहिर की और उसे पॉजिटिव बदलाव बताया.

दिल्ली सरकार ने जो बिल पास किया, क्या था उसमें?

1. पहले दिल्ली के विधायकों को बेसिक सैलरी 12 हजार रुपये मिलती थी. टोटल पैकेज करीब 88 हजार रुपये का. नए बिल में बेसिक सैलरी को बढ़ाकर 50 हजार और टोटल मासिक पैकेज 2.1 लाख रुपये किया गया. 3. टोटल पैकेज में वे भत्ते शामिल हैं, जिनका इस्तेमाल विधायक सरकारी काम-काज के लिए करते हैं. मसलन अपने ऑफिस स्टाफ को दी जाने वाली सैलरी, विधानसभा भत्ता, कम्युनिकेशन भत्ता (मोबाइल फोन/इंटरनेट), डीजल-पेट्रोल का खर्च वगैरह वगैरह. 4. बिल में ये इंतजाम भी था कि हर 12 महीने बाद विधायकों की बेसिक सैलरी में 10 परसेंट इजाफा हो. यानी सैलरी अगर 50 हजार हो गई होती तो अगले साल बढ़कर 55 हजार हो जाती.

लेकिन इनमें से कुछ भी लागू नहीं हुआ है

सौरभ के मुताबिक, 'मूल बात ये है कि विधायकों को अच्छी सैलरी मिले, इसे स्वीकारने के लिए हमारा समाज तैयार नहीं है. क्योंकि अतीत में करप्शन की वजह से ये परसेप्शन बन चुका है कि विधायक लोग बहुत पैसा बनाते हैं. उन्हें किस बात की कमी होगी? लेकिन ईमानदार विधायकों को अपना परिवार भी चलाना होता है.' 2 आम आदमी पार्टी का उदय जिन हालात में हुआ, उसमें कई सामान्य आर्थिक बैकग्राउंड के लोगों को मौका मिला और वे विधायक बने. हालात उनके लिए ज्यादा खराब हैं. सौरभ बताते हैं कि उनके कई विधायक किराए के घरों में रहते हैं. सरिता सिंह, प्रवीण देशमुख, अखिलेश पति त्रिपाठी, संजीव कुमार झा वगैरह. उन्हें भी 12 हजार रुपये बेसिक सैलरी मिलती है. सौरभ के मुताबिक, भत्ते का बाकी पैसा भी स्टाफ की सैलरी, डीजल-पेट्रोल वगैरह में खर्च हो जाता है. बात सिर्फ दिल्ली की नहीं है. विधायक एक महत्वपूर्ण पब्लिक सर्वेंट है. उसका काम 8 या 9 घंटे की शिफ्ट में बंटा नहीं होता. लोग कभी भी अपनी समस्याएं लेकर पूरे हक के साथ पहुंच सकते हैं. रोज बीसियों लोग मिलने आते हैं. उन्हें चाय पिलाने का महीने का खर्च भी कम नहीं होता. अपनी विधानसभा के चक्कर लगाने हों तो उसमें भी डीजल/पेट्रोल खर्च होता है.
फिर क्या बुरा हो अगर हर प्रदेश के विधायक को सरकारी अफसरों जैसी, या उनसे भी अच्छे तनख्वाह मिले. खराब सैलरी और करप्शन का सीधा रिश्ता है. संसदीय बहसों और पान के खोमचों, ये सत्य दोनों जगह स्वीकारा जा चुका है.

Advertisement
Advertisement
Advertisement
Advertisement