कबड्डी-कबड्डी-कबड्डी, दलित जीतने लगे तो तोड़ दी हड्डी
गुड़गांव में कबड्डी के लिए जातियों वाली टीमें बनीं.
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गुड़गांव में जातियों में भेदभाव दूर करके एकता को बढ़ावा देने के लिए खेल का सहारा लिया गया. अपना देसी खेल, कबड्डी. टीमें बंट गईं. एक तरफ यादव. दूसरी तरफ दलित. टीमें बनने के बाद खेल शुरू हुआ. दलित जीतने लगे, तो खेल खतम हो गया. ऐसे ही नहीं, मारपीट पर. कट्टे से फायर भी होने लगे. इतनी मार मची कि दो लोग वहीं के उमा संजीवनी हॉस्पिटल पहुंच गए. अब डीटेल में बताते हैं. द इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक गुड़गांव के चक्करपुर गांव में सोमवार को कबड्डी का फ्रेंडली मैच हुआ. सरकारी स्कूल है एक, उसी में. ये टूर्नामेंट तो पहले से चल रहा था. जिसमें आस-पास के गांवों से लेकर दिल्ली NCR तक की 30 टीमें खेल रही थीं. टीमें जाति के आधार पर बनी थीं. लेकिन सोमवार वाला मैच वायलेंट हो गया. क्योंकि बाजी दलितों के हाथ जाने वाली थी. दलित टीम के बिट्टो सिंह बताते हैं, "यादवों की टीम दरअसल सिकंदरपुर से थी. उसमें हमारे गांव के यादव थे. जब उनको लगा कि हम जीतने वाले हैं, तब हमारे गांव के यादव ही गुस्सा गए. उनके साथ बाकी लोग भी आ गए. मारपीट करने लगे. सिर्फ पीटा ही नहीं. जाति से जुड़ी गालियां दीं, फायर भी किए." जैसे ही गोलियों की आवाज सुनी, खोमचे लगाने वाले दुकानदार और खेल देखने वाले दौड़े आए. 32 साल के विजेंदर की खोपड़ी में चोट लगी थी. योगेंद्र के हाथ में फ्रैक्चर हुआ. उनको हॉस्पिटल पहुंचाया गया. पुलिस को फोन किया गया. सेक्टर 29 की पुलिस आई. लड़ाई फांदने वालों के खिलाफ दंगा और मारपीट की धाराओं में केस दर्ज कर लिया. गुड़गांव के म्युनिसिपल कॉरपोरेशन के काउंसलर हैं सुनील यादव. ये कह रहे हैं, "खेल में तो ये सब होता रहता है. छोटी-मोटी लड़ाई भी होती है. गांव वालों ने खेल ऑर्गनाइज किया. उसमें हुई लड़ाई को जाति का रंग देना ठीक नहीं है." तो भैया पहली बात तो ये है कि जाति के नाम टीमें बनाना ही गलत है. अगर इससे सामाजिक और जातीय समरसता होती, तो कब का सब शांत हो गया होता. जाति का कीड़ा खेल खेल में नहीं निकलने वाला.
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