अमेरिकी डॉनल्ड ट्रंप की टैरिफ को लेकर तूफानी धमकियों के बाद चीन और भारत की नई ‘दोस्ती’ को अभी कितने दिए हुए? पिछले महीने यानी सितंबर 2025 की ही तो बात है. अभी अक्टूबर खत्म भी नहीं हुआ कि भारत को परेशान करने वाली एक खबर पैंगोंग झील के पूर्वी हिस्से से आ गई. लद्दाख के पास चीनी इलाके में एक मिसाइल शेल्टर बनाने का काम तेजी से चल रहा है.
भारत की सीमा पर एयर डिफेंस साइट बना रहा है चीन, सेटेलाइट तस्वीरों में सब सामने आ गया
लद्दाख के पास चीन अपने इलाके में एक एयरबेस बनाने में लगा है. सेटेलाइट तस्वीरों से इसका खुलासा हुआ है. यह पूरा एयर डिफेंस कॉम्प्लेक्स है, जिसमें कमांड और कंट्रोल बिल्डिंग, बैरक, वाहनों के शेड, गोला-बारूद के गोदाम बन रहे हैं.
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सैटेलाइट तस्वीरों से पता चला है कि भारत की सीमा से लगे इलाके में चीन नया एयर डिफेंस कॉम्प्लेक्स बना रहा है. ये जगह उस इलाके से सिर्फ 110 किमी दूर है, जहां पर साल 2020 में भारत और चीन की सेना के बीच हिंसक झड़प हुई थी.
इंडिया टुडे से जुड़े अंकित कुमार की रिपोर्ट के अनुसार, इस नए एयर डिफेंस कॉम्प्लेक्स में कमांड और कंट्रोल बिल्डिंग, बैरक, वाहनों के शेड, गोला-बारूद के गोदाम और रडार पोजिशन शामिल हैं. लेकिन एक्सपर्ट कहते हैं कि इस एयर बेस की सबसे खास बातें ये नहीं हैं.
इसकी सबसे बड़ी खासियत हैं इसके ढके हुए मिसाइल लॉन्च पॉइंट, जो वक्त पर खुल भी जाती हैं. यानी जहां से मिसाइल लॉन्च की जाएगी, उसके ऊपर स्लाइडिंग छतें बनी हैं, जो जरूरत के हिसाब से खुल और बंद हो सकती हैं.

कहा जा रहा है कि ये लॉन्च पॉइंट ऐसे ट्रक-माउंटेड लॉन्चरों (Transporter Erector Launcher - TEL) के लिए बनाए गए लगते हैं, जो मिसाइलें ले जाने, खड़ी करने और दागने का काम करते हैं. इंटेलिजेंस एक्सपर्ट्स का मानना है कि ये मजबूत शेल्टर चीन की लंबी दूरी की HQ-9 Surface To Air यानी सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलों (SAM systems) को छिपाने और उन्हें बचाने के लिए बनाए गए हैं.
सवाल है कि चीन के इस निर्माण काम के बारे में पता कैसे चला?
रिपोर्ट के मुताबिक, एयरबेस के इस डिजाइन की पहचान सबसे पहले अमेरिकी जियो-इंटेलिजेंस फर्म ‘AllSource Analysis’ (ASA) के शोधकर्ताओं ने की थी. उन्होंने बताया कि ऐसा ही एक और कॉम्प्लेक्स चीन के तिब्बत ऑटोनॉमस रीजन के गार काउंटी में भी है, जो भारत के न्योमा एयरफील्ड से करीब 65 किलोमीटर दूर ठीक उसकी सीध में है.

इंडिया टुडे की ओपन-सोर्स इंटेलिजेंस टीम ने अमेरिकी स्पेस इंटेलिजेंस कंपनी Vantor से मिली Independent Satellite Imagery से इसकी पुष्टि की है. इन तस्वीरों में दिख रहा है कि लॉन्च बे के ऊपर स्लाइडिंग छतें हैं और हर एक छत के नीचे दो बड़े वाहन समा सकते हैं. Vantor की 29 सितंबर 2025 की सैटेलाइट तस्वीरों में गार काउंटी में कम से कम एक लॉन्च पॉइंट की छत खुली दिखी, जिसमें नीचे शायद लॉन्चर भी दिखाई दे रहे थे.
AllSource Analysis यानी ASA ने अपने बयान में कहा,
इन ढंके हुए लॉन्च पॉइंट्स की छतों में हैच लगे हैं. इसका फायदा ये है कि मिसाइल लॉन्चर अंदर छिपे रहते हुए भी वहीं से मिसाइल दाग सकते हैं. इस तरह की बनावट से इन लॉन्चरों की सटीक स्थिति या मौजूदगी का पता लगाना मुश्किल हो जाता है और वे हवाई हमलों से सुरक्षित रहते हैं.
हालांकि, भारत-तिब्बत सीमा के आसपास इस तरह की संरचना पहली बार देखी गई है, लेकिन इसी तरह के मिसाइल लॉन्च शेल्टर चीन पहले भी दक्षिण चीन सागर के विवादित द्वीपों पर बना चुका है.

रिपोर्ट में बताया गया कि पैंगोंग झील के पास वाले कॉम्प्लेक्स के शुरुआती कंस्ट्रक्शन को पहली बार जुलाई में जियोस्पेशियल रिसर्चर डेमियन साइमॉन ने नोट किया था. लेकिन उस वक्त ये पता नहीं चल पाया था कि वहां पर मिसाइल लॉन्च शेल्टर्स भी हैं. ASA के एनालिस्ट्स ने ये भी बताया है कि वहां तारों से जुड़ी डेटा नेटवर्क लाइनें भी बिछाई गई हैं, जो शायद HQ-9 एयर डिफेंस सिस्टम के अलग-अलग हिस्सों को उसके कमांड और कंट्रोल सेंटर से जोड़ने के लिए हैं.
पैंगोंग झील के पास वाला कुछ हिस्सा अभी भी निर्माणाधीन है.
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