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जम्मू-कश्मीर राज्यसभा चुनाव में उमर अब्दुल्ला की पार्टी 3 सीटें जीती, BJP को भी एक सीट मिल गई

जम्मू-कश्मीर की 4 राज्यसभा सीटों पर हुए चुनाव के नतीजे आ गए हैं. तीन सीटों पर नेशनल कॉन्फ्रेंस के उम्मीदवार की जीत हुई है. वहीं चौथी सीट पर भाजपा के सत शर्मा जीत गए हैं.

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उमर अब्दुल्ला और फारुख अब्दुल्ला ने जीते हुए सांसदों को बधाई दी है (India Today)

जम्मू-कश्मीर में आर्टिकल 370 हटाए जाने के बाद पहली बार हुए राज्यसभा चुनाव के नतीजे शुक्रवार 24 अक्टूबर को घोषित कर दिए गए. इसमें सत्ताधारी नेशनल कॉन्फ्रेंस को तीन सीटों पर जीत मिली है. जबकि एक सीट पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का प्रत्याशी जीता है. इस चुनाव में तीन सीटों पर सत्ताधारी NC की जीत पहले ही तय मानी जा रही थी. जबकि चौथी सीट पर उसकी जीत को लेकर संशय था. इसी संशय पर भाजपा ने दांव लगाया था. हैरानी की बात ये है कि 29 सीटों की ताकत वाली भाजपा के जीते हुए उम्मीदवार को 32 वोट मिले. 

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केंद्र शासित प्रदेश में राज्यसभा की 4 सीटों पर चुनाव के लिए तीन अधिसूचनाएं जारी की गई थीं क्योंकि ये सीटें अलग-अलग समय पर खाली हुई थीं. दो अधिसूचनाएं पहली और दूसरी सीट के चुनाव के लिए थीं जबकि तीसरी अधिसूचना बाकी की दो सीटों के लिए जारी की गई थी. 

कौन-कौन जीता?

राज्यसभा चुनाव में नेशनल कॉन्फ्रेंस के उम्मीदवार चौधरी रमजान, सज्जाद अहमद किचलू और शमी ओबेरॉय को चुनाव में जीत मिली है. पार्टी ने जानकारी दी है कि चौधरी रमजान को 58 वोट मिले हैं. NC के राष्ट्रीय अध्यक्ष फारुख अब्दुल्ला और जेके सीएम उमर अब्दुल्ला ने जीते हुए उम्मीदवारों को बधाई दी है. 

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वहीं चौथी सीट पर भाजपा के सत शर्मा चुनाव जीते हैं. शर्मा भाजपा की जम्मू-कश्मीर ईकाई के अध्यक्ष भी हैं. भाजपा ने शर्मा के अलावा दो और सीटों पर अली मोहम्मद मीर और राकेश महाजन को भी मैदान में उतारा था. हालांकि, वो चुनाव हार गए.

राज्यसभा चुनाव कैसे होता है?

जम्मू-कश्मीर की 4 सीटों पर राज्यसभा चुनाव के लिए 3 अधिसूचनाओं से कैसे खेल बदल दिया और भाजपा को भी एक सीट हथियाने का मौका मिल गया, ये जानने के लिए पहले राज्यसभा चुनाव की प्रक्रिया को समझना होगा. 

भारत के संविधान के अनुच्‍छेद 80(4) के उपबंध के मुताबिक, एकल संक्रमणीय मत के जरिए अनुपातिक प्रतिनिधित्‍व प्रणाली के तहत राज्‍य विधानसभाओं के निर्वाचति सदस्‍य यानी विधायक राज्‍यसभा के सदस्‍यों को चुनते हैं. यानी इस चुनाव में जनता सीधे भागीदार नहीं होती बल्कि उसके चुने प्रतिनिधि राज्यसभा सदस्यों को चुनाव करते हैं. इसमें वोटर विधायक अपने पसंद के उम्मीदवारों की वरीयता क्रम में एक लिस्ट बनाते हैं. यह मतदान गोपनीय भी नहीं होता और वोटर अपनी पार्टी के अधिकृत एजेंट को अपना मतपत्र दिखाकर ही उसे मतपेटिका में डालते हैं. अगर कोई वोटर अपना मतपत्र दूसरी पार्टी के एजेंट को दिखाकर वोट डालता है तो उसे अमान्य करार दिया जाता है. 

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राज्यसभा चुनाव के मतदान के लिए एक खास फॉर्म्यूला इस्तेमाल होता है. इससे ही तय होता है कि जीतने के लिए किसी उम्मीदवार को कितने वोट चाहिए. इस फॉर्म्यूले के मुताबिक, सबसे पहले राज्य में कुल खाली सीटों में एक जोड़ा जाता है. फिर उसे कुल वोटों की संख्या जो कि उस राज्य में कुल विधायकों की संख्या होती है, से भाग दिया जाता है. जो मिलता है, उसमें एक जोड़ देते हैं. जो संख्या मिलती है, वही जीत के लिए जरूरी संख्या होती है.

जीतने के लिए जरूरी वोट = [{कुल वैध वोट}/ (खाली सीटों की संख्या+1)]+1 

जम्मू-कश्मीर राज्यसभा चुनाव का गणित

केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर की विधानसभा में 90 सदस्य होते हैं. फिलहाल, विधानसभा में 88 विधायक हैं क्योंकि बडगाम और नगरोटा की दो सीटें खाली हैं. बडगाम और गांदरबल की दो सीटों से चुनाव जीतने वाले उमर अब्दुल्ला ने बडगाम सीट छोड़ दी थी. वहीं नगरोटा से चुनाव जीतने वाले भाजपा के देवेंद्र सिंह राणा की तबियत बिगड़ने के बाद 31 अक्टूबर 2024 को मौत हो गई थी. इससे भाजपा की सीटों की संख्या 29 से 28 रह गई. 

दो और वोट इस चुनाव में वैध नहीं थे. एक तो उमर अब्दुल्ला के विरोधी सज्जाद लोन ने चुनाव से दूरी बना ली. दूसरे डोडा से आम आदमी पार्टी के इकलौते विधायक मेहराज मलिक पब्लिक सिक्योरिटी एक्ट (पीएसए) के तहत जेल में बंद हैं और लोक प्रतिनिधित्‍व अधिनियम-1951 की धारा 62(5) के प्रावधानों में कहा गया है कि कोई भी ऐसा व्‍यक्ति किसी भी निर्वाचन में मतदान नहीं करेगा जो कारावास में बंद है. 

इस तरह से जम्मू-कश्मीर में राज्यसभा चुनाव के लिए कुल वैध वोटों की संख्या 86 होती है. अब इसके हिसाब से ही जीतने के लिए जरूरी वोटों का निर्धारण होना है.

चूंकि चुनाव के लिए तीन अधिसूचना जारी की गई थी. ऐसे में तीनों अधिसूचनाओं को तीन अलग-अलग चुनाव माना जाएगा. इसके लिए विजेता के वोटों की संख्या भी अलग-अलग होगी.

जैसे पहली अधिसूचना के लिए कुल वोटो की संख्या 86 है. खाली सीट एक है. इस पर फॉर्म्यूला लगाएं तो जीतने के लिए उम्मीदवार को 44 वोट चाहिए. 

दूसरी अधिसूचना भी एक ही सीट के लिए थी. इसलिए, इसके लिए भी जीतने के लिए जरूरी वोटों की संख्या 44 ही होगी. 

लेकिन तीसरी अधिसूचना दो सीटों के लिए थी. यहां गणित थोड़ा बदलेगा. फॉर्म्यूला लगाने पर यहां जीतने के लिए जरूरी वोटों की संख्या 29 होगी.

भाजपा को एक सीट कैसे मिल गई?

नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस गठबंधन के पास सबसे ज्यादा विधायक हैं. एनसी के 41 और कांग्रेस के 6 मिलाकर 47 होते हैं. महबूबा मुफ्ती की पीडीपी ने भी एनसी को समर्थन दिया था. उसके तीन विधायक और जोड़ लें तो ये संख्या 50 हो जाती है. अवामी इत्तेहाद पार्टी के विधायक शेख खुर्शीद ने भाजपा को हराने के लिए नेशनल कॉन्फ्रेंस को वोट देने का ऐलान किया था और निर्दलीय विधायकों ने भी एनसी को समर्थन देने की घोषणा की थी. ऐसे में एनसी उम्मीदवारों के पास कुल 58 वोट थे. उनके पहले दो उम्मीदवारों को 58-58 वोट मिले भी लेकिन तीसरे चुनाव में ‘खेल’ हो गया. 

भाजपा के पास 28 विधायक थे. तीसरे चुनाव में दो सीटों पर लड़ाई थी. जीत के लिए हर एक को 29 वोट चाहिए थे. ऐसे में नेशनल कॉन्फ्रेंस के एक उम्मीदवार को जीतने में कोई तकलीफ नहीं हुई लेकिन दूसरे उम्मीदवार को 28 विधायकों वाली भाजपा ने झटका दे दिया. उसने कुल 32 वोटों का इंतजाम कर लिया. इस चुनाव में एनसी के उम्मीदवार शम्मी ओबेरॉय तो जीत गए लेकिन इमरान नबी डार हार गए और भाजपा के उम्मीदवार सत शर्मा ने आखिरी और चौथी सीट हथिया ली.

अगर एक नोटिफिकेशन पर होता चुनाव

अगर चुनाव के लिए सिर्फ एक नोटिफिकेशन जारी किया जाता तो गणित कुछ और होता. फॉर्म्यूला लगाते तो एक उम्मीदवार को जीत के लिए 18 वोट चाहिए होते और तब एनसी के चारों उम्मीदवार आसानी से चुनाव जीत सकते थे.   

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