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योगी सरकार के दीपोत्सव में लखनऊ में बैठे रहे दोनों डिप्टी CM, अयोध्या नहीं गए, कलह या कुछ और है वजह?

अयोध्या में दीपोत्सव कार्यक्रम के दौरान उत्तर प्रदेश के दोनों मुख्यमंत्रियों ब्रजेश पाठक और केशव मौर्य की अनुपस्थिति को लेकर चर्चा जोरों पर है. इस घटना के बाद एक बार फिर से योगी सरकार में कलह की अटकलें लगने लगी हैं.

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दीपोत्सव में योगी के दोनों उपमुख्यमंत्रियों के न होने पर सवाल खड़े हो रहे हैं (India Today)

उत्तर प्रदेश में भाजपा की योगी आदित्यनाथ सरकार बनने के बाद से हर साल अयोध्या में बड़े पैमाने पर दीपोत्सव का आयोजन होता है. दीपावली से पहले लाखों दीयों से सरयू का किनारा रोशन होता है और हर साल खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपने दोनों उपमुख्यमंत्रियों के साथ इस कार्यक्रम के गवाह बनते हैं. लेकिन इस बार कुछ अलग हुआ. हर साल की तरह इस बार भी 19 अक्टूबर 2025 को राम नगरी में भव्य दीपोत्सव का आयोजन हुआ. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इसमें आए भी लेकिन तमाम गणमान्य उपस्थितियों पर ‘दो अनुपस्थितियां’ भारी पड़ गईं. इसने पूरे प्रदेश का ध्यान अपनी ओर खींचा और एक बार फिर योगी सरकार के अंदरूनी हालात पर ‘खुसुर-फुसुर’ होने लगी.

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उत्तर प्रदेश की सरकार में दो डिप्टी सीएम हैं. केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक. दोनों ही 19 अक्टूबर को अपनी सरकार के इस महत्वाकांक्षी कार्यक्रम में नहीं आए थे. दोनों की ही फोटो दीपोत्सव का न्योता देने वाले स्थानीय अखबारों के पहले पेज पर छपे विज्ञापन में नहीं दिखी. इस फोटो में दिखे सिर्फ योगी. उनके साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. 

फोटो न सही विज्ञापन में नाम तो होता. वह भी नहीं था. ‘गरिमामयी उपस्थिति’ में योगी के साथ राज्यपाल आनंदीबेन पटेल थीं. पर्यटन मंत्री जयवीर सिंह का नाम था. कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही का भी नाम था लेकिन दोनों डिप्टी CM ही थे, विज्ञापन पर जिनका ‘नामोनिशान’ नहीं था. 

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अखबारों के विज्ञापन में नहीं दिखे डिप्टी सीएम 

निमंत्रण पर नाम नहीं था तो दोनों ही डिप्टी सीएम आए भी नहीं और सवाल उठने लगा कि क्या यूपी भाजपा में सब ठीक है?

इस पूरी घटना ने एक बार फिर से यूपी भाजपा में दरार, नौकरशाही और भाजपा विधायकों के बीच मतभेद की चर्चाओं को हवा दे दी. सवाल उठे कि जिस सूचना विभाग ने दीपोत्सव का निमंत्रण पत्र तैयार किया था, उसने दोनों उपमुख्यमंत्रियों का नाम किसके निर्देश पर शामिल नहीं किया. एक सवाल ये भी था कि अगर कार्यक्रम पर्यटन विभाग का था तो निमंत्रण सूचना विभाग ने क्यों छापा? और सबसे बड़ा सवाल ये कि ब्रजेश पाठक और केशव प्रसाद मौर्य इस कार्यक्रम में दिखे क्यों नहीं? जबकि केशव मौर्य तो बिहार चुनाव की व्यस्तता से समय निकालकर दीपावली से एक दिन पहले लखनऊ आए भी थे.

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दीपोत्सव में सबसे ज्यादा दीये जलाने के रिकॉर्ड का सर्टिफिकेट लिए सीएम योगी आदित्यनाथ

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, केशव मौर्य के करीबी लोगों ने बताया कि वह बिहार चुनाव में भाजपा के सह प्रभारी हैं. दीपोत्सव के कार्यक्रम के दौरान वह चुनाव के काम में बिजी थे. इसी वजह से दीपोत्सव में शामिल होने का उनका प्रोग्राम अंतिम समय में कैंसिल हो गया था.

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अखबार को एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने बताया कि पिछले 9 सालों में यह पहला दीपोत्सव है, जिसमें डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक नहीं आए. इस पर आधिकारिक तौर पर तो कोई कुछ नहीं कर रहा है लेकिन इसकी प्रशासनिक जांच होनी चाहिए. ये गलतफहमी क्यों हुई कि समारोह के विज्ञापन में दोनों उपमुख्यमंत्रियों का कोई जिक्र नहीं था. सिर्फ इतना ही नहीं, प्रोग्राम के प्रोटोकॉल में भी साफ नहीं था कि दोनों डिप्टी सीएम किस कार्यक्रम में भाग लेंगें और कहां बैठेंगे. सिर्फ इनके ही साथ नहीं, राज्यपाल आनंदीबेन पटेल के साथ भी यही स्थिति थी. उनका नाम भी स्थानीय निमंत्रण पत्र में नहीं था. भाजपा नेता का कहना है कि इस मामले में जिम्मेदारी तय करनी पड़ेगी कि ये सब किसकी वजह से हुआ?

भाजपा के अंदरुनी सूत्रों के मुताबिक, दोनों उपमुख्यमंत्रियों ने अंतिम समय में अपना नाम वापस लिया था. क्योंकि विज्ञापन में उनका नाम ही नहीं था. उन्होंने समारोह की डिटेल भी नहीं दी गई थी. यह भी नहीं बताया गया था कि वे कहां बैठेंगे? किसके साथ बैठेंगे?

केशव मौर्य तो बिहार चुनाव की अपनी व्यस्तता से समय निकालकर 19 अक्टूबर की देर रात लखनऊ आए थे. कहा गया कि उन्हें अगले ही दिन बिहार वापस लौटना था, इसलिए वो दीपोत्सव कार्यक्रम में नहीं आ पाए. हालांकि, वो 19 और 20 अक्टूबर को लखनऊ में पार्टी के कार्यकर्ताओं से मिलते रहे. इसकी पोस्ट भी वह एक्स पर डालते रहे.

ब्रजेश पाठक भी 19 अक्टूबर को लखनऊ में ही थे. इस दिन वह रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के साथ पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी की प्रतिमा के अनावरण और सामुदायिक केंद्र, पुस्तकालय के लोकार्पण कार्यक्रम में भाग ले रहे थे. 

कुल मिलाकर बात इतनी सीधी-सरल नहीं है. 

यूपी भाजपा में ऐसी कलह कोई नई बात भी नहीं है. योगी आदित्यनाथ और केशव मौर्य के रिश्तों में खटास की कहानी पुरानी है. 5 साल साथ सरकार चलाने के बाद भी लंबे विवादों के बीच 2022 के चुनाव से ठीक पहले योगी पहली बार केशव मौर्य के घर गए थे. तब लोगों को लगा था कि योगी और केशव के बीच जो भी मतभेद या मनभेद थे वो खत्म हो गए होंगे. लेकिन, पिछले साल के लोकसभा चुनाव के दौरान दोनों के रिश्तों के बीच तनाव एक बार फिर उभरकर सामने आ गया.

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योगी आदित्यनाथ (बायें) अपने दोनों उपमुख्यमंत्रियों केशव मौर्य (बीच में) और ब्रजेश पाठक (दायें) के साथ

लोकसभा चुनाव में पार्टी के खराब प्रदर्शन के बाद अटकलें लगीं कि भाजपा की राज्य ईकाई में क्लेश चल रहा है. इसके तत्काल बाद यूपी की 10 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनावों की कमान खुद योगी आदित्यनाथ ने संभाल ली. इसी बीच 14 जुलाई 2024 को केशव मौर्य का एक बयान खूब वायरल हुआ. वह संगठन के किसी कार्यक्रम में बहुत जोर देकर बोल रहे थे कि ‘संगठन सरकार से बड़ा है. बड़ा था और बड़ा रहेगा.’ इसे योगी आदित्यनाथ को उनकी 'हिदायत' बताई गई, जिन पर बार-बार आरोप लग रहे थे कि वह पार्टी के कार्यकर्ताओं की अनदेखी कर रहे हैं और अफसरों के बल पर सरकार चला रहे हैं.

अब इन्हीं अफसरों की वजह से एक बार फिर योगी अपने दोनों डिप्टी के बनाम खड़े दिखाई दे रहे हैं क्योंकि दीपोत्सव निमंत्रण पत्र विवाद को लेकर नोडल विभाग, पर्यटन विभाग और सूचना विभाग के अधिकारियों को ही दोषी ठहराया जा रहा है. कहा जा रहा है कि विज्ञापन उनकी जिम्मेदारी थी और उसमें डिप्टी सीएम का नाम न होने के मामले में उनकी भूमिका की जांच होनी चाहिए.

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