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आसमान 'लाल' हुआ तो लोगों को 'कयामत' याद आ गई

बुल्गारिया में 'औरोरा बोरेलिस' की तस्वीरें वायरल हुईं. लोग बोले, कयामत नजदीक है. विज्ञान को समझते, तो ऐसा कभी न करते.

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ऑरोरा बोरेलिस के चलते लाल हुआ आसमान (फोटो- मीटियो बालकन्स/ इंडिया टुडे).

‘रॉक ऑन’ में फरहान अख्तर ने सवाल किया था,

आसमां है नीला क्यों, पानी गीला-गीला क्यों?

विज्ञान के पास इन दोनों सवालों के जवाब हैं. आसमान नीला है क्योंकि प्रकाश जिन रंगों से बना है, वो छोटू-छोटू कणों से टकराकर बिखर जाते हैं. नीला सबसे ज़्यादा बिखरता है. इसीलिए आसमान नीला है. सिंपल. लेकिन रात में तो प्रकाश होता ही नहीं. इसीलिए आसमान काला हो जाता है. लेकिन 5 नवंबर की रात बुल्गारिया नाम के देश में आसमान नीला नहीं, काला नहीं, लाल नज़र आया. वो भी रात में. 

कुछ ने नज़ारे को खूबसूरत कहा और कुछ ने प्रलय आ गया टाइप बातें कीं. और विज्ञान ने क्या किया? जवाब दिया कि जो हुआ, वो कैसे हुआ.

आसमान हरा, लाल कहां-कहां? 

बुल्गारिया के आसमान में दिखे इन दुर्लभ नजारे को 'ऑरोरा बोरेलिस' कहा जाता है. इसी को 'नॉर्दर्न लाइट्स' भी कहा जाता है. इंडिया टुडे ने मीटियो बालकन्स की रिपोर्ट के हवाले से लिखा कि रात के आसमान में लाल रोशनी पहली बार बुल्गारिया के उत्तर पूर्वी इलाके में दिखाई दी. इसके बाद ये बाल्कन रीजन के बाकी देशों जैसे रोमानिया के साथ-साथ हंगरी, चेक रिपब्लिक और यूक्रेन तक में देखा गया.  

पोलैंड और स्लोवाकिया में भी ऐसा हुआ. लेकिन लाल नहीं, चमकीला हरा. ब्रिटेन के कुछ हिस्सों में लाल रोशनी दिखी थी, लेकिन 4 नवंबर को. साल 2023 की शुरुआत में भारत के लद्दाख में भी नॉर्दर्न लाइट्स का दुर्लभ नजारा देखने को मिला था. 

आसमान में लाल रोशनी प्रलय के चलते नहीं होती. इसके पीछे विज्ञान है. Photo- Meteo Balkans/India Today

सारा खेल आकर्षण का है

ऑरोरा बोरेलिस, एक ऐसी घटना है जिसने सदियों से मानव जाति को आकर्षित किया है. और इस घटना के केंद्र में भी आकर्षण ही है. दरअसल हमारी धरती भी एक चुम्बक की तरह है. जब भी चुम्बकीय क्षेत्र (magnetic field) में गड़बड़ी होती है, तब सबसे उच्च और निम्न अक्षांश (high and low latitudes) माने उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों के करीब इस तरह की रोशनी कुछ घंटों तक दिखाई देती है.

सूरज से लगातार चार्ज वाले कण निकल रहे हैं, जिनसे बनती है सोलर विंड. चार्ज (पॉज़िटिव नेगेटिव वाला) के इस तूफान के कण, पृथ्वी पर पहुंचने के लिए लाखों किलोमीटर की यात्रा करते हैं. जब ये कण पृथ्वी के करीब आ जाते हैं तो पृथ्वी का चुम्बकीय क्षेत्र इन कणों को ध्रुवीय क्षेत्रों, माने पोलर रीजन की ओर भेजता है. इन्हीं के चलते आसमान में लाल-हरी रोशनी नज़र आती है. 

ऑरोरा का रंग उस गैस पर निर्भर करता है जिससे चार्ज वाले कणों का सामना होता है. ऑक्सीजन उत्सर्जन से जहां हरे रंग की रोशनी दिखती है वहीं अगर यही रिएक्शन नाइट्रोजन के साथ होता है तो रोशनी लाल रंग की दिखाई देती है.

अगर आपने पहले ऐसा नज़ारा नहीं देखा, तो आपको ये अविश्वसनीय ही लगेगा. इसलिए लोग इसे 'प्रलय' की आहट बताने लगते हैं. नॉर्दर्न लाइट्स सबसे अधिक पृथ्वी के उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों के पास देखी जाती है. यहां इन्हें ऑरोरा ऑस्ट्रेलिस कहा जाता है. ये रोशनी कभी-कभी शीतोष्ण कटिबंधों में भी नज़र आती है. माने temperate region, जो आर्कटिक सर्कल से लेकर कर्क रेखा और मकर रेखा से अंटार्कटिक सर्कल के बीच पड़ते हैं. भारत का लद्दाख इसी उत्तर शीतोष्ण कटिबंध में पड़ता है.