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क्या मुसलमानों के कारण देश की आबादी बढ़ रही? सच क्या है?

गिरिराज सिंह ने बयान दिया कि ये आबादी एक खास समुदाय की वजह से बढ़ रही है.

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जब भी आबादी से जुड़ा आंकड़ा आता है मुस्लिमों के खिलाफ बयान आने शुरू हो जाते हैं. (फोटो- पीटीआई)

गुरुवार, 19 अप्रैल को खबर आई कि भारत चीन को पीछे छोड़ सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन गया है. संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में बताया गया कि भारत की आबादी 142.86 करोड़ है. रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले एक साल में भारत की आबादी 2.2 करोड़ यानी 1.56 फीसदी बढ़ी. वहीं चीन की आबादी घटकर 142.57 करोड़ हो गई है. इस रिपोर्ट से पहले भी कई रिपोर्ट्स में भारत के आबादी में नंबर वन हो जाने का अनुमान लगाया गया. सरकार ने अब तक 2021 की जनगणना के आंकड़ों को जारी नहीं किया है. लेकिन इस रिपोर्ट के आते ही बढ़ती आबादी के लिए एक खास समुदाय को टारगेट किया जाने लगा. आम लोगों से लेकर नेता तक नाम लेकर या बिना नाम लिए मुस्लिम समुदाय को जिम्मेदार बताने लगे.

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क्या बोले लोग और नेता?

केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने बिना नाम लिए कहा कि ये बढ़ रही आबादी एक खास समुदाय की है. उन्होंने बयान देते हुए AIMIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी का नाम ले लिया. समाचार एजेंसी ANI से बात करते हुए गिरिराज ने कहा, 

"ओवैसी कहते हैं कि आबादी के नाम पर लोगों को धमकाते और डराते हैं. डरा नहीं रहा हूं. आज देश में करीब 150 जिले हैं, जहां प्रजनन दर बढ़ गई है. किनकी आबादी है? ये आबादी उन्हीं की है जो दर्जन बच्चे पैदा करते हैं. एक खास समुदाय की."

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गिरिराज सिंह इस तरह के बयान देने वालों में अकेले नहीं हैं. सोशल मीडिया पर कई लोग मुस्लिम समुदाय के लोगों की तस्वीर शेयर कर उन्हें जनसंख्या बढ़ाने के लिए जिम्मेदार बता रहे हैं.

ये पहली बार नहीं है जब जनसंख्या बढ़ने को लेकर खास समुदाय को टारगेट किया गया हो. लेकिन मुस्लिम समुदाय की बढ़ती आबादी का सच क्या है?

क्या सच में बढ़ रही मुस्लिमों की आबादी?

इसके लिए हमें सरकारी आंकड़ों का ही सहारा लेना पड़ेगा. पिछले साल केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने पांचवां राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे (NFHS) जारी किया था. इस सर्वे के मुताबिक पिछले कुछ सालों में हर समुदाय के महिलाओं की प्रजनन दर में कमी आई है. NFHS-5 के मुताबिक, साल 2019-21 के दौरान हिंदुओं में प्रजनन दर घटकर 1.94 पहुंच गई. यानी 10 हिंदू महिलाएं औसतन 19 बच्चे पैदा करती हैं. साल 2015-16 के दौरान हिंदू महिलाओं में प्रजनन दर 2.13 थी.

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वहीं मुस्लिम महिलाओं की बात करें, तो उनकी प्रजनन दर घटकर 2.36 पर पहुंच गई है. यानी 2019-21 के दौरान 10 मुस्लिम महिलाओं ने औसतन 23 बच्चे पैदा किए. साल 2015-16 में यह 2.62 थी.

प्रजनन दर को थोड़ा और समझते हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक, एक महिला अपने प्रजननकाल में औसतन कितने बच्चों को जन्म देगी, इसका एक अनुमान निकाला जाता है. इसके लिए 15 साल से 49 साल की उम्र को 5-5 साल के 7 आयु वर्गों में बांटा जाता है. जैसे 15-19 साल वाली महिलाओं का आयुवर्ग. फिर 20 से 24 साल वाला ग्रुप. इन ग्रुप्स में बांटकर महिलाओं और उनके बच्चों की संख्या गिनी जाती है. फिर औसत निकालकर प्रजनन दर तय होती है. प्रजनन दर मालूम चलता है आबादी किस रफ्तार से बढ़ रही है.

मुस्लिमों की आबादी बढ़ रही है या तेजी से घट रही है, इसे समझने के लिए थोड़ा और पीछे जाना होगा. 1992 में पहली बार नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे का आंकड़ा आया था. तब मुस्लिमों में 4.4 प्रजनन दर थी. यानी, तब हर 10 मुस्लिम महिलाएं 44 बच्चे पैदा करती थीं. 2019-21 आते-आते ये संख्या लगभग आधी हो गई जो हम पहले बता चुके हैं. इसी तरह, हर 10 हिंदू महिलाओं (1992 में) के 33 बच्चे होते थे जो अब औसतन 19 बच्चे पैदा करती हैं.

अगर पिछले साल के सर्वे की तुलना 1992 से करें तो मुस्लिम महिलाओं की प्रजनन दर में सबसे तेज गिरावट आई है. जो कि 46.5 फीसदी है. वहीं हिंदुओं में प्रजनन दर की तुलना अगर 1992 के सर्वे से करें तो इसमें 41.2 फीसदी की गिरावट आई है.

तो आबादी बढ़ाने में ना कोई आगे है, ना कोई पीछे है. हम सब एक हैं, बराबर हैं.

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