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मोदी जी अपने इस मंत्री को रोजगार देकर क्यों बकलोली को बढ़ावा दे रहे हैं?

दूसरे धर्मों के बारे में अनाप-शनाप बोलते हैं ये मंत्री. इनको क्या जाति का गुणगान करने के लिए मंत्रालय में रखा है?

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अनंत कुमार हेगड़े कई बार बेहद आपत्तिजनक और भड़काऊ बयान दे चुके हैं. मोदी सरकार को बहुत पहले ही ये नोटिस में लेना चाहिए था. कभी इस्लाम, कभी ईसाई, किसी भी धर्म की बेइज्जती कर देते हैं. जो मन करे, अनाप-शनाप बोल देते हैं. ऐसे शख्स को केंद्रीय मंत्री तो कतई नहीं होना चाहिए.
अनंत कुमार हेगड़े केंद्रीय रोजगार एवं कौशल विकास मंत्री हैं. इनको मंत्री पता नहीं क्या देखकर बनाया गया है. कायदे से तो इनको वापस स्कूल भेज देना चाहिए. इनको सेक्युलर जैसे शब्दों का बेसिक ही नहीं पता. न सेक्युलर पता है, न संविधान पता है. फिर भी मंत्री हैं. कर्नाटक के कोप्पल जिले में एक कार्यक्रम था. ब्राह्मण युवा परिषद वालों का. इसमें भाषण देते हुए हेगड़े साहब ने कहा:
धर्मनिरपेक्ष और प्रगतिशील होने का दावा वो करते हैं, जिनको अपने मां-बाप के खून का पता नहीं होता है. मुझे बड़ी खुशी होगी अगर कोई बड़े गर्व से खुद को मुस्लिम, ईसाई, लिंगायत, ब्राह्मण या हिंदू बताए. ऐसी पहचान बताकर लोगों में आत्मसम्मान जगता है. अगर कोई खुद को धर्मनिरपेक्ष बताए, तो उससे मुश्किलें खड़ी होती हैं.
न, न. इतने पर चुप नहीं हुए. आगे बड़े गर्व से बोले:
हम यहां संविधान बदलने आए हैं.
धार्मिक होना गलत नहीं है. गलत है बाकी धर्मों के बारे में फालतू बोलना. गलत है अपनी धार्मिक रुचि को खुद तक न रखना.
धार्मिक होना गलत नहीं है. गलत है बाकी धर्मों के बारे में फालतू बोलना. गलत है संवैधानिक पद पर बैठकर धर्मनिरपेक्षता जैसे संवैधानिक आदर्शों पर सवाल खड़े करना.

क्या मोदी सरकार में इतने 'हल्के' मंत्री हैं?  क्या इस 'जाति-धर्म' वाली बात को मोदी सरकार का आधिकारिक बयान माना जाए? आखिरकार केंद्रीय मंत्री ने कहा है. किसी ऐरे-गैरे ने तो कहा नहीं है. मंत्री जी के बयान से ये मान लें कि मोदी सरकार को 'धर्मनिरपेक्षता' से दिक्कत है. उसे लोगों का सेक्युलर होना पसंद नहीं? और अगर अनंत कुमार हेगड़े के इस बयान को उनकी 'व्यक्तिगत राय' माना जाए, तो सवाल उठता है कि मोदी सरकार में किसके बयान को आधिकारिक माना जाना चाहिए? मंत्रियों के बोले की वैल्यू करें या न करें. या ये मान लें कि मंत्री इतने हल्के हो गए हैं कि कुछ भी फालतू बोल जाते हैं. इनको नजरंदाज करना है और इनकी बात का एकदम लोड नहीं लेना है. कल को अगर अनंत कुमार हेगड़े अपने पद और मंत्रालय से जुड़ी कोई गंभीर बात कहें, तब भी क्यों न हम उन्हें नजरंदाज कर दें? अच्छे और बुरे बयान में अंतर करना लोगों की जिम्मेदारी नहीं होनी चाहिए. ये जिम्मेदारी तो मंत्री की है. कि वो अपनी गंभीरता बचाए रखें. संवैधानिक पद पर बैठकर संवैधानिक आदर्शों का माखौल न उड़ाएं.
इस ट्वीट की भाषा में धमकी है. ऐसे लिखा गया है कि मुसलमान या तो शांति चुनें या फिर...
इस ट्वीट की भाषा में धमकी है. ऐसे लिखा गया है कि मुसलमान या तो शांति चुनें या फिर...

RSS को काफी बुरा लगना चाहिए हेगड़े की बात का अनंत कुमार राजनीति में नए नहीं हैं. पांच बार बीजेपी सांसद रह चुके हैं. कर्नाटक के रहने वाले हैं. जिस संविधान के नाम की कसम खाकर मंत्री बने, उसी से दिक्कत है उनको. वो क्या 'सेक्युलर' शब्द को खुरचकर फेंकना चाहते हैं. फिर क्या करेंगे? अपनी कार के पीछे अपनी जाति लिखवाएंगे! जाति का दुपट्टा गले में डालेंगे! बाकी सारे मंत्री भी अपनी-अपनी जाति का गोदना गुदवाकर घूमेंगे! हेगड़े RSS से जुड़े रहे हैं. ABVP के सदस्य भी रहे. संघ के बारे में कहा जाता है कि वो अपनी शाखाओं में लोगों को सरनेम नहीं लगानी देती. जाति के आधार पर बंटवारे की मुखालफत करती है. जातीय पहचान के आधार पर होने वाली राजनीति का विरोध करती है. फिर तो हेगड़े के बयान से संघ को भी बहुत धक्का पहुंचना चाहिए. कोई केंद्रीय मंत्री इतने बदतमीज ट्वीट करे, तो क्या मिसाल पेश होगी?
कोई केंद्रीय मंत्री इतने बदतमीज ट्वीट करे, तो कैसी मिसाल पेश हो रही है?

बेरोजगारी कम करने का काम है और ये सब कर रहे हैं जिन विभागों को सबसे ज्यादा काम करना चाहिए, उनमें से एक ये मंत्रालय भी है. इतनी बेरोजगारी है देश में. बीटेक और एमबीए पढ़े लोग चपरासी की नौकरी के लिए मारामारी कर रहे हैं. इधर अनंत कुमार हेगड़े जाति-धर्म में गर्व खोज रहे हैं, उधर बेरोजगारी का क्या हाल है, सो देखिए. जनवरी 2017 में संयुक्त राष्ट्र (UN) की एक रिपोर्ट आई थी. इसके मुताबिक 2017-18 में भारत के अंदर बेरोजगारी बढ़ेगी. रिपोर्ट में ये भी बताया गया कि किस तरह नौकरी की जरूरत बढ़ती जा रही है, मगर आर्थिक तरक्की उतनी नौकरियां पैदा नहीं कर पा रही. नतीजा ये कि बेरोजगार लोगों की तादाद बढ़ेगी और समाज में अमीर-गरीब का फर्क बढ़ेगा. देश में बेरोजगारों की कुल तादाद बढ़कर 1 करोड़ 80 लाख के करीब हो जाएगी. ये संख्या असली बेरोजगारी की संख्या से बहुत कम है. पढ़े-लिखे लोग अगर ठेला-रिक्शा चलाएं, तो बेरोजगार में नहीं गिने जाएंगे. मगर हैं तो वो भी बेरोजगार ही. करोड़ों ऐसे हैं जिनके पास साल के कुछ ही महीने काम रहता है. विवाद पैदा करने में बहुत दिलचस्पी रखते हैं नरेंद्र मोदी सरकार एक करोड़ नई नौकरियां पैदा करने का वादा करके सत्ता में आई थी. सुगबुगाहट तो ये भी है कि सरकार देश की पहली राष्ट्रीय रोजगार पॉलिसी (NEP) लाने की तैयारी कर रही है. 2018 के बजट में शायद इसका ब्योरा भी आ जाएगा. इस सबके लिए तो बड़ी तैयारी चाहिए होगी. लेकिन नहीं, अनंत कुमार हेगड़े की फालतू बयानबाजी से तो ऐसा लगता नहीं. विवाद पैदा करने में खासी दिलचस्पी लेते हैं. इनकी ट्विटर टाइमलाइन पर काफी भड़काऊ चीजें मिलेंगी आपको. दो-चार कंट्रोवर्सी नीचे पॉइंटर्स में जान लीजिए:
1. 2014 के लोकसभा चुनाव में उनके ऊपर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करके चुनाव जीतने के आरोप लगे. उन्होंने अपने विरोधी कांग्रेस उम्मीदवार के बारे में कहा कि उन्होंने भटकल में इंडियन मुजाहिदीन के आतंकियों को शरण दी. 2. राम मंदिर मुद्दे पर बेहद भड़काऊ बातें बोलते हैं. एक ट्वीट में उन्होंने लिखा कि भारत के मुसलमान शांति और अपनी मुगलिया जड़ों के बीच में से एक को चुन लें. 3. उनके ऊपर अपने शहर सिरसी में एक निजी अस्पताल के कुछ डॉक्टरों के साथ बदसलूकी करने का इल्जाम लगा. इसके बाद उनके दिल्ली आने पर छह महीने की पाबंदी लग गई. आरोप था कि डॉक्टर और अस्पताल काफी डर गए थे. सो पुलिस को खुद से ही शिकायत दर्ज करनी पड़ी.
अनंत कुमार हेगड़े का कॉन्सेप्ट क्लियर नहीं है. ऐसे लोगों को ही इस्लामोफोबिक कहते हैं. वैसे इस ट्वीट में PM मोदी का जिस तरह जिक्र आया है, उससे खुद प्रधानमंत्री को असहज हो जाना चाहिए था.
अनंत कुमार हेगड़े का कॉन्सेप्ट क्लियर नहीं है. ऐसे लोगों को ही इस्लामोफोबिक कहते हैं. वैसे इस ट्वीट में PM मोदी का जिस तरह जिक्र आया है, उससे खुद प्रधानमंत्री को असहज हो जाना चाहिए था.

4. एक बार प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान उन्होंने कहा था- जब तक दुनिया में इस्लाम है, तब तक आतंकवाद भी रहेगा. शांति और इस्लाम एक-दूसरे से बिल्कुल अलग शब्द हैं. 5. उन्होंने कहा था, 'चर्च और कुछ नहीं, धर्म परिवर्तन करवाने का हथियार हैं. इज्जत करने के लायक ही नहीं हैं चर्च.'


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