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34 साल पहले महिला से ली थी घूस, अब जाकर हुआ पुलिसवाले की गिरफ्तारी का आदेश

आरोपी हवलदार को थानेदार ने रंगे हाथों पकड़ लिया था. लेकिन अपनी कारस्तानी से वो बच निकला था.

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सांकेतिक तस्वीर. (Aaj Tak)

सुबह 9 बजे का समय था. प्लेटफॉर्म पर ड्यूटी पर थे हवलदार सुरेश प्रसाद सिंह. उन्होंने सब्जी बेचने आई सीता को रोक लिया. उसके कान के पास कुछ फुसफुसाया. सीता ने अपनी साड़ी के पल्लू में बनी गांठ खोली, 20 रुपये निकाले और हवलदार को थमा दिए. हवलदार ने भी बिना देखे रुपये जेब मे रख लिए. लेकिन हवलदार को ये नहीं पता था उसकी ये हरकत स्टेशन के थाना प्रभारी देख रहे हैं. थाना प्रभारी ने उसे रंगे हाथों पकड़ लिया. और उसके पास से रिश्वत के 20 रुपये बरामद हुए. ये खबर की मेन जानकारी नहीं है. वो ये है कि ये घटना 34 साल पुरानी है और आरोपी हवलदार सुरेश प्रसाद सिंह की गिरफ्तारी का आदेश अब जाकर हुआ है.

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ये घटना घटी 6 मई, 1990 को बिहार के सहरसा रेलवे स्टेशन पर. थाना प्रभारी ने हवलदार पर मुकदमा कर दिया. केस में हवलदार ने एक कारस्तानी कर दी. वो रहने वाला था मुंगेर जिले के बड़हिया (अब लखीसराय में पड़ता है) गांव का रहने वाला था. लेकिन उसने चालाकी दिखाते हुए अपना पता गलत लिखवा दिया. उसने अपना पता दर्ज करवाया सहरसा के महेशखूंट का.

अब वह निश्चिंत हो गया कि जब पता ही गलत लिखवा दिया तो कोई क्या करेगा उसका. उसे कोई ढूंढ ही नहीं पाएगा. जमानत मिलने के बाद वो दोबारा कोर्ट में पेश नहीं हुआ. उसके लगातार कोर्ट में नहीं पेश होने के चलते झुंझलाकर कोर्ट ने 1999 में उसका बेल बॉन्ड खारिज कर दिया. लेकिन हवलदार साहब को पता ही  नहीं चला. उसके खिलाफ गिरफ्तारी वॉरेन्ट जारी कर दिया गया. उसे पता ही नहीं चला. कोर्ट ने कुर्की का आदेश भी दे दिया. हवलदार को ये भी नहीं पता चला. कोई भी आदेश तामील नहीं हो पा रहा था.

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कोर्ट भी परेशान और जांच करने वाले भी. सुरेश प्रसाद ढूंढे जा रहे थे. लेकिन मिल कहीं नहीं रहे. सुरेश जी तो नहीं मिले, लेकिन जांच में उनकी सर्विस बुक मिल गई. सारा भांडा फूट गया. अब अदालत ने फरार चल रहे हवलदार सुरेश प्रसाद सिंह को गिरफ्तार कर उसे कोर्ट के सामने पेश करने का आदेश दे दिया. साथ ही इस मामले में बिहार पुलिस के DGP को भी पत्र जारी कर दिया.

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