किताबी बातें में आज बात उस लेखक की, जिसे आत्मकथा लिखने के दो दिन बाद फांसी हो गई. दोस्त अशफ़ाक़ुल्ला ख़ान को याद करते हुए रामप्रसाद बिस्मिल किस्सा सुनाते हुए लिखते हैं. सबको अचरज था कि एक कट्टर आर्य समाजी और मुसलमान का मेल कैसा? आर्य समाज मंदिर में उनका निवास था. पर अशफाक को इस बात की रत्ती भर चिंता नहीं थी. बिस्मिल के कुछ साथी, अशफाक को मुसलमान होने की वजह से, घृणा की नजर से देखते थे. पर अशफाक का मन पक्का था. वो बिस्मिल के साथ ही आर्य समाज मंदिर में आते जाते थे. हिन्दू-मुस्लिम झगड़ा होने पर मुहल्ले के सब लोग अशफाक को खुल्लमखुल्ला गालियां देते थे. काफिर के नाम से पुकारते थे. पर अशफाक अपनी सोच में साफ़ थे. हमेशा हिन्दू-मुस्लिम एकता के पक्ष में रहे. बिस्मिल अपनी आत्मकथा में लिखते हैं कि अशफाक की जिंदगी में अगर कोई विचार था, तो यही कि मुसलमानों को खुदा अक्ल देता कि वो हिन्दुओं के साथ मिलकर हिंदुस्तान की भलाई करते. फांसी की सजा के दिनों को रामप्रसाद बिस्मिल ने काला पानी कि सजा क्यों बताया. जानने के लिए देखें वीडियो. देखिए वीडियो.