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दीपक तैनगुरिया

Producer cum Researcher

संपादक के बाद (और इतर) यही हैं किताबवाले. किताब पढ़ने का पइसा मिलता है और जितना मिलता है, चाय पर लुटा देते हैं. सस्ती शायरी और महंगी संवेदनाओं के प्रशंसक हैं. प्रेम के इंतजार में कीबोर्ड पीटते फिरते हैं. और जो अपनी भाषा का कोई मिल जाए, तो तुरंत फ़ीस माफ़ करवाने में लग जाते हैं.

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