सात रंगों के ऊपर कितने ही गाने बने हैं. और इंद्रधनुष भी तो सात रंगों का होता है. बचपन में याद करते थे न इन सात रंगो को – विबग्योर या बैंनीआहपीनाला – बैंगनी, नीला, आसमानी, हरा, पीला, नारंगी. लाल. अंग्रेजीं में इन रंगो को लेकर 'वेवलेंथ' से लेकर 'इन्फ्रारेड' और 'अल्ट्रावायलट' तक अजीब अजीब तरह की बातें की जाती हैं. हाउ अन-रोमेंटिक! हम नहीं करेंगे, या कम से कम करेंगे. हम एक कहानी पढ़ेंगे और फिर खुद से पूछेंगे कि इस कहानी से हमें क्या शिक्षा मिलती है. अच्छा उससे पहले एक बात और - जिस रीजन की वजह से आसमां नीला है उसी वजह से खतरे का निशान लाल है और सूरज भी डूबते और उगते वक्त लाल होता है.# आसमां ये नीला क्यूं
'सजन मेरे सतरंगिया, रंगिया','मैंने तेरे लिए ही साथ रंग के सपने बुने','हम तो सात रंग हैं, ये जहां रंगी बनाएंगे','सतरंगी रे, मन रंगी रे, कोई नूर है तू क्यूं दूर है तू?'
तो कहानी है दो बंदों की. नाम है नीलेश्वर और रंगलाल. दोनों ने एक-एक किलो चावल खरीदे. अब नीलेश्वर की थैली में था छेद, तो उसका चावल गिरता गया, यानी दुकान से लेकर घर तक की सड़क में पूरा फैल गया और घर में पहुंचा एक किलो के बदले पाव-भर चावल. वहीं रंगलाल की थैली सही थी तो एक दो दाने गिरे होंगे तो गिरे होंगे अन्यथा लगभग पूरा ही चावल घर पहुंचा. उसके बाद शायद नीलेश्वर की मम्मी ने नीलेश्वर की कुटाई की होगी और रंगलाल की मम्मी ने रंगलाल को मिठाई दी होगी. क्या हुआ हम नहीं जानते - क्यूंकि हमने यहीं पर शिक्षा ले ली है.वो ये कि या तो इकट्ठा कर सकते हो या खर्च कर सकते हो, या जितना कम खर्च करोगे उतना ज़्यादा इकट्ठा कर पाओगे. तो नीलेश्वर है हमारा नीला रंग – जो चावल या रायते की तरह फैल जाता है, और रंगलाल है लाल रंग जो अपने को इकट्ठा करके रखता है इसलिए दूर तक चलता है, या दूर से दिखता है. इसलिए ही खतरे का रंग लाल होता है क्यूंकि वो दूर से दिखता है. और इसलिए ही गाड़ी के पीछे वाली लाईट होती है लाल क्यूंकि वो दूर से दिखती है.
तो अब भी उतना क्लियर नहीं है कि आकाश नीला क्यूं होता है?देखिए सूरज (चावल की दुकान) से सातों रंग निकलते हैं, बाकी रंग तो कम या ज़्यादा मात्रा में धरती पर(घर) पहुंचते हैं लेकिन नीला फैल जाता है आकाश(रास्ते) में ही इसलिए ही आकाश नीला है.
अब भी एक सवाल कि नीला फैलता क्यूं है और लाल क्यूं नहीं?देखिए फैलते सभी रंग हैं, कम या ज़्यादा ही सही, पर फैलते सब हैं. अन्यथा तो लाल रंग अनंत दूरी से भी दिखेगा और नीला आखों के सामने होते हुए भी नहीं दिखेगा. और ये रंग फैलते हैं क्यूंकि धरती और सूरज के बीच होते हैं ढेर सारे मोलिक्यूल्स. उनसे लड़ झगड़ के इनको धरती तक पहुंचना होता है. इस लड़ने झगड़ने का वैज्ञानिक नाम है – स्केटरिंग या हिंदी में कहें तो प्रकीर्णन और अपनी भाषा में कहें तो फैलना या बिखरना. रास्ते में नीली जर्सी वाले सैनिक खूब फना होते हैं क्यूंकि वो सबसे कमज़ोर सैनिक हैं इसलिए आसमान ‘ब्लीड ब्लू’ करता है. वहीं जब सूरज डूब रहा होता है, या उग रहा होता है तो वो धरती से और दूर हो जाता है, इसलिए ज़्यादा मोलिक्यूल्स रास्ते में पड़ते हैं और लाल रंग की सेना जो सबसे शक्तिशाली होती है वही धरती तक पहुंच पाती है. लेकिन तब भी वो पूरे आकाश को नहीं चमका रहा होता, केवल खुद एक लाल गोले की तरह दिखता. इसलिए ही तो गाड़ी के पीछे वाली लाइट लाल होती है और आगे वाली नीली (ऑलमोस्ट). क्यूंकि लाल दूर से चमकता है मगर किसी चीज़ को चमकाता नहीं, क्यूंकि फैलता नहीं. वहीं नीला दूर से बेशक नहीं दिखता/चमकता मगर अपने आस पास की चीज़ों को चमकाता है. अब अगर वैज्ञानिक भाषा में कहें तो नीले रंग की स्केटरिंग ज़्यादा होती है और लाल की सबसे कम.
और सातों रंग की स्केटरिंग का क्रम ऐसे है - बैंगनी, नीला, आसमानी, हरा, पीला, नारंगी, लाल. वही इन्द्रधनुष वाला - विबग्योर या बैंनीआहपीनाला. तो याद करना भी आसान. (जहां बैंगनी में स्केटरिंग सबसे ज़्यादा होती है वहीं लाल में सबसे कम.)मगर अब आप पूछोगे कि आसमां बैंगनी क्यूं नहीं है फिर? हम कहेंगे अच्छा सवाल! तो इसके उत्तर के लिए हमें एक दूसरे की आंखों में झांककर देखना होगा. ‘कम कहे को ज़्यादा समझना’ की तर्ज़ पर सिंपल भाषा में कहें तो – हमारी आंखें ‘पक्षपाती’ हैं – तीन रंगो के लिए – लाल, हरा और नीला. इसलिए ही जब नीले और बैंगनी में से एक को चुनना हो तो वो नीला चुनती हैं, और बैंगनी नीले की ‘स्केटरिंग’ में है भी तो केवल उन्नीस-बीस का ही फर्क.
दरअसल पानी गीला है ही नहीं, पानी को लेकर हमें जो अनुभव होते हैं हम उसे गीलापन कह देते हैं. और इस गीलेपन के चलते ही पानी गीला है. यानि बेशक हमें ये पता हो न हो कि अंडा पहले आया या मुर्गी, मगर ये पता ज़रूर है कि गीलापन पहले आया और गीला बाद में. और यूं, पानी गीला क्यूं है का उत्तर सबसे सही यही है कि उसमें गीलापन है. बाकी गीला-पन क्या होता है – एक विशेष तरह का सेंसेशन, विशेष तरह की फीलिंग जो हमें पानी को छूने पर होती है. वैसे तो हमें अलग-अलग तरह के पदार्थों को छूने पर अलग अलग तरह की सेंसेशन्स होती हैं लेकिन पानी और प्रेम बहुतायत में पाया जाता है इसलिए इन सेन्सेश्न्स को नाम भी दे दिया गया है.# पानी गीला गीला क्यूं
बाकी सूखा पानी भी बन चुका है मित्रों – इमल्शन या पायस के द्वारा – इमल्शन बोले तो उन दो या दो से अधिक उन पदार्थों को मिलाना जो एक दूसरे में नहीं घुलते हैं.तो ये सवाल कि पानी गीला है इस 'इमल्शन' वाली तरह से भी गलत है.
पृथ्वी ही नहीं दरअसल हर ग्रह गोल होता है. क्यूं? बस दो बहुत ही आसान मगर भारी बातों के चलते.# गोल क्यूं है ज़मीं
# पहली बात - ग्रेविटी बड़ी मज़ेदार शै है वो सब चीज़ों को अपनी तरफ खींचती है. # दूसरी बात - यदि एक चौकौर डब्बे और एक गोल डब्बे में बराबर चीज़ें आ रही हैं तो गोल डब्बा चौकोर डब्बे की तुलना में कम जगह घेरेगा. दरअसल वो गोल डब्बा किसी भी आकार के डब्बे से कम जगह घेरेगा. जब हमें ठंड लगती है तो हम बिस्तर के अंदर सिकुड़ कर गोल-गोल हो जाते हैं. क्यूट-पपी भी तो ठडं में ऐसा ही करते हैं. क्यूं, क्यूंकि गोल होकर वो कम जगह घेरते हैं और इसलिए अपनी सतह से कम एनर्जी छोड़ते हैं इसलिए अपेक्षाकृत ज़्यादा गर्म रहते हैं.तो जब कोई पदार्थ पहली बात (ग्रेविटी) के कारण सिकुड़ना शुरू करता है तो वो कम से कम जगह घेरने लगता है, मतलब उसका ‘स्टफ’, ‘मटेरियल’ तो उतना ही होता है लेकिन उसको कम से कम जगह में रखा जाना होता है, इसलिए दूसरी बात (यानी ‘गोलाई’) 'अप्लाई' होती है. बस इत्ती सी बात.
अब अंत में सुनिए गीत. चित्रपट का नाम है रॉक ऑन. गीत के बोल हैं जावेद अख्तर के. आवाज़ दी है – फरहान अख्तर ने और इसे संगीत से सजाया है – शंकर-एहसान-लॉय ने:
दी लल्लनटॉप में और ज्ञान की बातें सुनिए:
'वंस इन अ ब्लू मून' जैसे इन 4 मुहावरों के पीछे का विज्ञान बड़ा इंट्रेस्टिंग है