बता दें कि इमरान खान को सत्ता से बेदखल करने की विपक्ष की कोशिश नाकामयाब होने के बाद पाकिस्तान में सरकार बनने के लिए दोबारा चुनाव होना तय है. 90 दिनों में ये चुनाव कराए जाने हैं, लेकिन अभी पाकिस्तान के इलेक्शन कमीशन ने कोई तारीख़ नहीं दी है. और जब तक विधिवत चुनाव नहीं होते तब तक के लिए पाकिस्तान में एक कार्यवाहक सरकार का गठन करना होगा.
सोमवार को पाकिस्तान के राष्ट्रपति आरिफ़ अल्वी ने एक नोटिफ़िकेशन जारी किया था. इसमें प्रधानमंत्री और असेंबली में नेता विपक्ष से कार्यकारी प्रधानमंत्री की नियुक्ति के लिए उपयुक्त लोगों के नाम भेजने को कहा गया था. इसके बाद इमरान की पार्टी तहरीक-ए-इंसाफ़ (PTI) ने अपने सुझाव की घोषणा की. ट्वीट करके बताया गया,
'पार्टी की कोर कमिटी में हुई चर्चा और संस्तुति के बाद इमरान खान ने पाकिस्तान के पूर्व मुख्य न्यायाधीश गुलज़ार अहमद को कार्यवाहक प्रधानमंत्री नामित किया है.'

पाकिस्तानी संविधान के आर्टिकल 224(1A) के तहत कार्यवाहक प्रधानमंत्री की नियुक्ति की जा सकती है (फोटो साभार- Twitter/PTI)
कौन हैं गुलज़ार अहमद?
गुलज़ार अहमद की पैदाइश साल 1957 में कराची की है. उन्होंने यहीं के गुलिस्तां स्कूल से शुरुआती पढ़ाई और गवर्नमेंट नेशनल कॉलेज से बीए किया है. और फिर सिंध मुस्लिम लॉ कॉलेज से कानूनी पढ़ाई की. गुलज़ार साल 2001 में सिंध हाई कोर्ट और साल 2011 में पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट के जज बने. इसके बाद साल 2019 में आरिफ़ सईद खोसा के रिटायर होने के बाद गुलज़ार को पाकिस्तान का मुख्य न्यायाधीश बना दिया गया. गुलज़ार अहमद ने 21 दिसंबर 2021 को पाकिस्तान के 27वें चीफ़ जस्टिस के बतौर शपथ ली थी. और इसी साल फरवरी में पदमुक्त हुए थे.गुलज़ार अहमद ने पाकिस्तानी अधिकारियों और नेताओं के खिलाफ़ कई बड़े फैसले दिए हैं. मसलन गुलज़ार पांच जजों की उस बेंच का हिस्सा थे, जिसने पनामा पेपर्स के मामले में पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ को दोषी करार दिया था. इस फैसले के बाद नवाज़ शरीफ औपचारिक रूप से पाकिस्तान की राजनीति से पूरी तरह बाहर हो गए थे. उन्हें इस्तीफ़ा देना पड़ा था. साथ ही नवाज़ शरीफ़ और उनकी बेटी मरियम शरीफ़ के चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी गई थी. अहम फैसले उत्तरी पाकिस्तान में उग्र भीड़ द्वारा एक मंदिर तोड़ दिए जाने के मामले में गुलज़ार अहमद का फैसला सुर्ख़ियों में रहा था. सुनवाई करते हुए जस्टिस अहमद ने प्रशासन को मंदिर का पुनर्निर्माण करवाने का आदेश दिया था. ये भी कहा था कि इस मंदिर को फिर से बनाने में जो भी खर्चा आएगा उसे उन्हीं हमलावरों से वसूला जाए जिन्होंने अपनी करतूत से पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शर्मिंदा किया है.
और इस साल 11 फरवरी को गुलज़ार अहमद का नाम तब बड़ी चर्चा में रहा था, जब उन्होंने पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट के जज काजी फैज़ ईसा के खिलाफ़ एक ऑर्डर दिया था. इस ऑर्डर में कहा गया था कि जस्टिस ईसा, PM इमरान के खिलाफ़ कोई सुनवाई नहीं कर कर सकते हैं. क्योंकि वो इमरान खान के खिलाफ़ एक मामले में पहले याचिका डाल चुके हैं.
पाकिस्तानी बार काउंसिल ने गुलज़ार के इस आदेश का विरोध किया था. और साल 1989 के उस फैसले का हवाला दिया था, जिसमें कहा गया था कि सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच किसी दूसरी बेंच या किसी जज को किसी केस की सुनवाई से रोकने के निर्देश नहीं दे सकती है.
पाकिस्तानी अखबार डॉन के मुताबिक़, 1989 में ये फैसला देने वाली 12 जजों की बेंच में शामिल रहे अब्दुल कादिर कहते हैं,
‘किसी जज को इस आधार पर किसी केस की सुनवाई से नहीं जोड़ा जा सकता है कि उसका उस केस को लेकर अपना बायस है, कुछ व्यक्तिगत रुचि या रुझान है या फिर दूसरी कोई भी वजह है.’बहरहाल, कार्यवाहक प्रधानमंत्री के लिए इमरान खान का गुलज़ार अहमद के नाम पर मोहर लगाना इसलिए भी चौंकाने वाला है क्योंकि गुलज़ार इमरान को इससे पहले एक मामले में समन भेज चुके हैं.
पाकिस्तानी संविधान के अनुच्छेद 224 के मुताबिक़ कार्यवाहक प्रधानमंत्री की सरकार का गठन करना होता है. हालांकि पाकिस्तान की नेशनल असेंबली भंग हो गई है. लेकिन फ़िलहाल इमरान खान प्रधानमंत्री हैं और शहबाज़ शरीफ़ सदन में विपक्ष के नेता हैं. गुलज़ार अहमद को कार्यवाहक प्रधानमंत्री बनाने के लिए जरूरी है कि PM इमरान और शहबाज़ शरीफ़ दोनों गुलज़ार के नाम पर सहमत हों.
उधर शहबाज़ शरीफ़ ने कार्यवाहक पीएम चुनने की प्रक्रिया में शामिल होने से इंकार कर दिया है. कहा है कि अविश्वास प्रस्ताव को असंवैधानिक तरीके से खारिज किया गया और संसद को भंग किया गया है, इसलिए वो अब इस प्रक्रिया में शामिल नहीं होंगे. ऐसी स्थिति में ये मामला एक पार्लियामेंट्री कमिटी के पास जाने की संभावना है जिसमें 8 सदस्य होंगे. ये सदस्य संसद के उच्च सदन से हो सकते हैं. हालांकि इस सबके लिए चंद दिनों का ही समय होता है. इस दौरान इमरान अंतरिम प्रधानमंत्री बने रहेंगे.