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प्लेन क्रैश वाले दिन इस कांग्रेस नेता को होना था संजय गांधी के साथ

कहानी राजेश पायलट की. दो हादसों की. एक जिसमें वह बचे, एक जिसमें वह मरे.

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राजेश पायलट से हाथ मिलाते अमिताभ बच्चन

स्थान - संजय गांधी का दफ्तर, विलिंगडन क्रीसेंट, नई दिल्ली

तारीख - 22 जून, 1980

संदर्भ - संजय गांधी, अपनी सबसे ताकतवर हैसियत में.

कुछ महीने पहले हुए चुनाव में मम्मी इंदिरा गांधी सत्ता में लौटी हैं. कांग्रेस आई (इंदिरा) को स्पष्ट बहुमत मिला है. संजय खुद भी पहली बार सांसद बने हैं. अमेठी लोकसभा से. फिर इंदिरा सरकार ने उन सभी राज्यों में विधानसभा चुनाव कराए, जहां जनता पार्टी सत्ता में थी. तमिलनाडु जैसे अपवाद छोड़ सब जगह कांग्रेस सत्ता में लौटी. और सब जगह संजय की पसंद के लोग सीएम बने. फिर चाहे राजस्थान में जगन्नाथ पहाड़िया हों या फिर यूपी में वीपी सिंह. संजय की फौज की हर जगह मौज थी. लोकसभा में उनसे टिकट पाए और जीते लोगों की संख्या सैकड़ा पार थी. जो इंदिरा के वफादार थे, वे भी संजय की गुड बुक्स में आना चाहते थे. और जो पहले से ही संजय के करीबी थे, वे हर हाल में बॉस के करीबी बने रहना चाहते थे.


ये वह दौर था, जब सरकार इंदिरा चलाती थीं और पार्टी संजय गांधी.
ये वह दौर था, जब सरकार इंदिरा चलाती थीं और पार्टी संजय गांधी.

ऐसे ही एक युवा सांसद. जो अभी एक बरस पहले तक भारतीय वायुसेना में अफसर थे. जिन्होंने 1971 में भारतीय वायुसेना का विमान उड़ाते हुए पूर्वी पाकिस्तान में बम बरसाए थे. अब वह सियासत की जंग जीतना चाहते थे. उनकी किस्मत चमकदार थी. जो कैप्टन रैल्फ उनके पहले इंस्ट्रक्टर थे, उन्हीं ने बाद में इंदिरा गांधी के अनुरोध पर उनके छोटे बेटे संजय गांधी को भी फ्लाइंग सिखाई थी. 1978 में जब हर कोई इंदिरा और संजय को डूबता जहाज मान रहा था, यह नौजवान अफसर उनके साथ खड़ा था. वह खुद तो सेना के अनुशासन में बंधा था, मगर उनकी पढ़ी-लिखी पत्नी यूथ कांग्रेस में सक्रिय थीं. इस कपल की अपनी राजनीतिक महात्वाकांक्षाएं थीं. और 1970-1980 के चुनाव से पहले उसे परवान चढ़ाने का वक्त आ गया. अफसर ने सेना से इस्तीफा दे दिया. उन दिनों वह दिल्ली में तैनात था. सफदरजंग से प्लेन उड़ाता था. पहाड़ी इलाकों के खेतों में दवाइयों के छिड़काव के लिए. उसकी ड्यूटी एग्रीकल्चर एविएशन विंग में थी.


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बात इन्हीं की हो रही है, जो मेज पर बैठे कान में रिसीवर लगाए हैं.

सफदरजंग से ही प्लेन उड़ाते थे संजय गांधी. यहीं हुई दोनों में जान-पहचान. फिर जब इस्तीफे के बाद सियासत की शुरुआत की बारी आई, तो पूर्व अफसर इंदिरा से मिलने गया. ख्वाहिश ज़ाहिर की. चुनाव लड़ने की. बागपत से. सीट का नाम सुन इंदिरा चौंकीं. ये निवर्तमान प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की सीट थी. ये जाटलैंड का मक्का था. और ये नया नवेला नेता गुज्जर था. इंदिरा ने कहा, 'डर नहीं लगता, वहां हिंसा हो सकती है, लाठी चल सकती है.' नेता का जवाब था- 'मैडम, जब पाकिस्तान के बमों और मिसाइलों से नहीं डरा, तो अब क्या डरूंगा.' इंदिरा मुस्कुरा दीं और उसे विदा कर दिया.

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नेता नहीं मुस्कुरा पाया. उसके सामने यूपी से चुनाव लड़ने वालों की अंतिम सूची थी. इसमें उसका कहीं नाम नहीं था. वह निराश हो गया. नौकरी अब थी नहीं. तो खेतों में जुट गया. फिर कहीं से कुछ सुराग मिला. कुछ उम्मीद मिली. एक रोज उसने पत्नी से कहा, 'हो सकता है इंदिरा जी चाहकर भी टिकट न दे पाई हों. उन्हें कई लोगों की सुननी पड़ती है. वह हमसे इतने प्यार से मिलती हैं. हमें उनसे संपर्क में रहना चाहिए.' तय हुआ कि अगली रोज सुबह-सवेरे दोनों एयरपोर्ट जाएंगे. एयरपोर्ट क्यों! क्योंकि इंदिरा गांधी 5:30 पर हैदराबाद के लिए उड़ान भरने वाली थीं. नेता और उसकी पत्नी स्कूटर पर सवार हुए और पहुंच गए एयरपोर्ट. वहां लंबी कतार थी. कांग्रेस अध्यक्ष को विदाई देने के वास्ते. अर्जुन सिंह और एनडी तिवारी जैसे कद्दावर नेता थे. सबसे आखिरी में नेता और उसकी पत्नी खड़े हो गए. इंदिरा सबसे मिलती हुई आखिर में उन तक पहुंचीं. नमस्कार कह मुस्कुरा दीं. फिर 'हूं' कहा और प्लेन की तरफ बढ़ चलीं.

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अगले रोज नेता को संजय गांधी के दफ्तर से फोन आ गया. मिलने पहुंचे, तो संजय ने पर्ची थमा की. कहा, 'जाइए और राजस्थान के भरतपुर से चुनाव लड़िए.' नेता जी गए. किसी तरह संसाधन जुटाए और भरतपुर जीता. जीतकर नई दिल्ली आए, तो इंदिरा से मिले. इंदिरा तब तक वापस प्रधानमंत्री डेजिगनेट हो चुकी थीं. अफसरशाही फिर उनकी खातिर में खड़ी थी. उन्होंने नेता से पूछा, 'रहने के लिए कोई व्यवस्था हुई?' नहीं में जवाब पाकर कहा, '3 सफदरजंग रोड का बंगला खाली है, उसे देखो जाकर.'


नेता ने देखा और फिर रहे. बंगले की दीवार प्रधानमंत्री आवास से लगती थी. संकेत साफ था. पीएम और उनके बेटे संजय इस नेता को अपने करीब रखना चाहते थे.

राजेश पायलट.
राजेश पायलट.

नेता जिसका नाम था राजेश पायलट. नहीं, नाम तो उसका राजेश्वर प्रसाद सिंह बिधूड़ी था. मगर संजय गांधी ने नया नामकरण कर दिया था. राजेश पायलट. क्योंकि वह भारतीय वायुसेना में पायलट थे. भरतपुर से पर्चा दाखिल करने के कुछ ही घंटे पहले राजेश्वर बिधूड़ी ने नोटरी में जाकर अपना नाम बदलवाया था. फिर यही पायलट नाम, उनकी, उनके परिवार की पहचान बन गया. अभी भी है. पर वो बाद की बात है. अभी तो संजय गांधी के दफ्तर लौटते हैं, जहां से ये किस्सा शुरू हुआ था.


एक रैली में राजेश.
एक रैली में राजेश.

संजय गांधी- राजेश, हम कल सुबह उड़ेंगे. एक नई मशीन आई है पिट्स एस2 ए. बहुत हल्की है. रंग भी चमकदार लाल. सुबह मिलते हैं सफदरदंग (एयरस्ट्रिप) पर.

राजेश पायलट- बॉस कल सुबह तो मेरठ से कुछ किसान मिलने आ रहे हैं. उन्होंने बहुत पहले से टाइम ले रखा था. मुश्किल होगी.

संजय गांधी- वो सब मैं नहीं जानता. तुम्हें सुबह मिलना है. मेक इट हैपन.

राजेश पायलट- नो प्रॉब्लम (ये राजेश का तकिया कलाम था) बॉस.

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स्थान - 3 सफदरजंग रोड, नई दिल्ली

तारीख - 23 जून, 1980

राजेश पायलट किसानों से मुलाकात निपटा चुके हैं. उन्होंने सहायक से कहा, 'ड्राइवर को बुलाओ.' मगर ड्राइवर मौके से नदारद है. अमूमन साहब को जब सुबह-सवेरे निकलना होता है, तो वह बाहर का ही दौरा होता है. ऐसे में ड्राइवर को पहले से बताया जाता है. मगर टूर का तो किसी ने बोला नहीं था. तो वह भी आलस कर गया. झल्लाए राजेश पायलट अपने स्कूटर की तरफ बढ़े. ये लंबे समय से खड़ा था. उन्होंने कई किक मारीं. स्कूटर स्टार्ट नहीं हुआ. अब उन्हें बॉस की नाराज़गी की चिंता सताते लगी. वह बंगले के दरवाजे की तरफ गए. उम्मीद थी कि सड़क पर कोई टैक्सी नज़र आ जाएगी. कुछ देर इंतजार किया. नहीं मिली. वापस घर की तरफ लौटे. तभी करीब से तेज धमाके की आवाज आई. राजेश को लगा कि कोई एक्सिडेंट हुआ होगा सड़क पर. उनका ध्यान अपने बिगड़ते शेड्यूल पर था. उन्होंने सोचा, लेट हो रहा हूं, तो फोन पर तो खबर कर दूं. कि समय लग रहा है सर जी.

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लेकिन तब तक उनके फोन की घंटी बज उठी. दूसरी तरफ संजय गांधी के बारे में सूचना थी. उनका प्लेन कुछ ही मिनट पहले क्रैश हो चुका था. वो धमाका पिट्स के नीचे गिरने और पेड़ पर फंसने का था. संजय गांधी और दिल्ली फ्लाइंग क्लब के चीफ इंस्ट्रक्टर सुभाष सक्सेना इस हादसे में मारे गए थे.

अगर राजेश पायलट समय से निकलते, तो सुभाष की जगह वह इस प्लेन पर सवार होते. नियति ने उन्हें इस हादसे से बचा लिया.

और फिर नियति. वह एक हादसे में ही मरे. ठीक 20 साल बाद.

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इन 20 सालों में राजेश पायलट छह बार लोकसभा का चुनाव जीते. पहला भरतपुर से, उसके बाद के सारे दौसा से. सिर्फ 1989 में हारे. राजीव गांधी और नरसिम्हा राव की सरकार में मंत्री रहे. चुनिंदा नेता, जो संजय-राजीव और राव, तीनों के करीबी रहे. 1999 के चुनाव में जीत के बाद कांग्रेस नए सिरे से सोनिया गांधी के नेतृत्व में खुद को संभालने में लगी थी. और राजेश पायलट इसमें अपनी भूमिका तलाश रहे थे. राव के बाद वह सोनिया के भी करीबी हो गए थे. अरे हां, करीबी से याद आया. राजेश के सबसे ज्यादा करीब थे उनके संसदीय इलाके दौसा के लोग. जो उन्हें हर लहर में जिताकर भेजते. उन्होंने ही न्योता भेजा था. एक बड़े हवन में शामिल होने का. और राजेश खराब तबीयत के बाद भी उसके लिए गए.

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स्थान - 10 अकबर रोड, नई दिल्ली

तारीख - 11 जून 2000

राजस्थान की हिंडौली सीट से कांग्रेस की विधायक और राजेश की पत्नी रमा पायलट एक रोज पहले ही नई दिल्ली लौटी थीं. बेटा सचिन अमेरिका से छुट्टियों में आया था. वो वॉर्टन में बिजनेस मैनेजमेंट की पढ़ाई कर रहा था. 10 जून को सचिन मुंबई चला गया. अपनी बहन सारिका और जीजा विशाल से मिलने. राजेश घर पर ही थे. उनकी तबीयत कुछ ढीली थी. शाम तक आराम किया. फिर होटल ताज के जिम में जाकर कसरत की. रात में जल्दी सो गए. सुबह-सवेरे दौसा निकलना था. शाम तक लौटना था. फिर मुंबई जाना था. पत्नी के साथ. बच्चों के पास.


राजेश पायलट के नाम पर जारी डाक टिकट के विमोचन के दौरान रमा पायलट सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह के साथ. (बीच में)
राजेश पायलट के नाम पर जारी डाक टिकट के विमोचन के दौरान रमा पायलट सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह के साथ. (बीच में)

11 जून को रमा अपने काम निपटा आराम कर रही थीं. तभी फोन की घंटी बजी. दूसरी तरफ बेटी सारिका की सहेली. उसके पिता राजस्थान पुलिस में अफसर थे. उसने रमा आंटी को बताया. राजेश अंकल के एक्सिडेंट के बारे में. साथ में ये भी कहा कि वह ठीक हैं, ज्यादा चिंता की बात नहीं. फिर एक पूर्व मंत्री का राजस्थान से फोन आया. वह भी ऐहतियातन चीज़ें पूछकर फोन डिस्कनेक्ट कर गया. अब रमा का माथा ठनका. और तभी उनके घर के दरवाज़े पर दस्तक हुई. खोला तो सामने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को पाया. रमा चौंकीं. फिर मैडम को भीतर आने को कहा.

सोनिया ने अंदर आते ही कहा- रमा तुम ईश्वर में विश्वास करती हो. रमा ने जवाब दिया, 'हां, मगर मुझसे ज़्यादा तो राजेश करते हैं. ये देखिए उनका पूजा का कमरा.' कुछ मिनट और बातचीत चली. फिर सोनिया ने कहा, 'राजेश ठीक हैं. ईश्वर उन्हें ठीक रखेगा. हमें जयपुर चलना चाहिए.' दोनों एयरपोर्ट रवाना हुए. वहां मीडिया की भीड़ थी. रमा का सब्र अब छलकने को था. सोनिया उन्हें लगातार हौसला दे रही थीं. जयपुर एयरपोर्ट पर उन्हें सचिन, सारिका और विशाल भी मिल गए. एयरपोर्ट से अस्पताल तक समर्थकों और पुलिस दस्ते की कतार थी. अब रमा का दिल डूबने लगा था.


लोगों के बीच राजेश
लोगों के बीच राजेश

अस्पताल के गेट पर उन्हें कांग्रेस के बुजुर्ग नेता नवल किशोर शर्मा मिले. रमा और बच्चों को अंदर एक कमरे में ले गए. वहां एक बेड पर राजेश पायलट लेटे थे. माथे पर पट्टी. सीने पर पट्टी. रमा पास जाकर खड़ी हो गईं. उन्हें कुछ सूझ नहीं रहा था. सारिका उन्हें वहां से खींचने लगी. और तब रमा को एहसास हुआ.

राजेश पायलट नहीं रहे.

('राजेश पायलट - ए बायोग्राफी' पर आधारित आर्टिकल. इस किताब को लिखा है रमा पायलट ने. प्रकाशित किया है रोली बुक्स ने)

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