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संदेशखाली वाले शाहजहां शेख की पूरी कहानी, जो बंगाल पुलिस को 55 दिनों तक चकमा देता रहा!

West Bengal के Sandeshkhali हिंसा का मुख्य आरोपी और TMC नेता Shahjahan Sheikh गिरफ्तार हो चुका है. वो लगभग दो महीनों तक पुलिस को चकमा देता रहा.

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TMC नेता शाहजहां शेख को बंगाल पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है ( फोटो: X)

संदेशखाली (Sandeshkhali) हिंसा का मुख्य आरोपी और TMC नेता शाहजहां शेख (Shahjahan Sheikh) पुलिस की गिरफ्त में आ चुका है. करीब दो महीनों तक पुलिस को चकमा देने के बाद. TMC नेता को 28-29 फरवरी की दरम्यानी रात मिनाखन इलाके से गिरफ्तार किया गया. शाहजहां को बशीरहाट में पुलिस लॉकअप में लाया गया. अब 29 फरवरी को ही उसे बशीरहाट कोर्ट में पेश किए जाने की खबर है.

मिनाखन के SDPO अमीनुल इस्लाम खान ने गिरफ्तारी की पुष्टि की. उन्होंने कहा कि बंगाल पुलिस ने TMC नेता शेख शाहजहां को नॉर्थ 24 परगना के मिनाखन इलाके से गिरफ्तार किया. दरअसल कुछ समय पहले संदेशखाली (Sandeshkhali) की बहुत सारी महिलाओं ने तीन स्थानीय नेताओं के खिलाफ यौन हिंसा की शिकायतें कीं. नेता कौन? शाहजहां शेख (Shahjahan Sheikh). शिबू हज़रा और उत्तम सरदार. तीनों राज्य की सत्ताधारी पार्टी तृणमूल कांग्रेस से जुड़े हुए हैं. शिबू हाज़रा और उत्तम सरदार को पुलिस ने काफी पहले ही हिरासत में लिया था. लेकिन शाहजहां शेख काफी दिनों तक फरार रहा. लगभग दो महीने तक.

5 जनवरी 2024 की तारीख को चलिए. इस दिन प्रवर्तन निदेशालय (ED) की एक टीम धामाखाली में मौजूद शाहजहां शेख के निवास पर छापा मारने पहुंची थी. ये धामाखाली कालिंदी नदी के एक किनारे मौजूद है. यहां से नाव पकड़कर आप अगर सामने मौजूद नदी के द्वीप पर जाते हैं. तो आप संदेशखाली पहुंचते हैं. जहां की महिलाओं के इल्ज़ामों के बारे में हमने आपको अभी बताया. अब ईडी की टीम जिस केस में छापा मारने गई. वह है राशन स्कीम में कथित घोटाले का.

ईडी की टीम जैसे ही 5 जनवरी के दिन शाहजहां के घर पहुंची तो स्थानीय लोगों ने हमला कर दिया. ईडी के अधिकारियों को दौड़ाकर मारा गया. ईडी के तीन अधिकारी घायल हो गए. इस पूरी कवायद का फायदा उठाकर शाहजहां धामाखाली से भाग गया.

कौन है शाहजहां शेख?

अब सवाल है कि TMC नेता शाहजहां शेख की कहानी एक मोलेस्टर. एक अपराधी तक कैसे पहुंची? स्थानीय सूत्रों ने बताया कि वह सालों पहले बांग्लादेश लांघकर भारत आया और यहां खेतों और ईंट भट्ठों पर काम करने लगा. इन कामों के अलावा उसने नाव और सवारी गाड़ी भी चलाई. ऐसे कुछ सालों तक चलता रहा. ये पश्चिम बंगाल की राजनीति में वह समय था. जब मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी शीर्ष पर थी. लोग बताते हैं कि साल 2002 में शेख ने ईंट भट्ठों के मजदूरों का यूनियन बनाया. उस यूनियन का नेता बना तो माकपा की नजर में आया.

साल 2004 में शाहजहां ने माकपा की सदस्यता ले ली. इसमें उसकी मदद की उसके मामा मुस्लिम शेख ने की. जो खुद माकपा के स्थानीय नेता थे. आरोप हैं कि सत्ता का संरक्षण मिलते ही शाहजहां लगभग बेहाथ हो गया. उसने यहां के लोगों के खेतों और ज़मीनों पर कब्जा करना शुरू कर दिया. वह यहां के लोगों से उनके उपजाऊ खेत लीज पर लेता. उनमें पानी भरकर मछली और झींगा पालने के लिए भेड़ी (तालाब) बना देता. असली शामत उन किसानों की आती. जो उसे खेत देने से मना कर देते. ऐसे मौकों पर शाहजहां अपना असल हथियार इस्तेमाल में लाता-खारा पानी. इस इलाके का पानी समुद्र के नजदीक होने की वजह से खारा होता है. अगर खेतों में पड़ जाए तो जमीन की उपज मर जाती है. लेकिन इस पानी की एक खासियत भी थी कि इसमें पाली जाने वाली मछलियां और झींगे अच्छी क्वालिटी के होते और बेहतर पैसा देते थे. वहां पर कहावत भी प्रचलित है-नून जले. सोना फले. यानी खारे पानी में सोना उगता है. शाहजहां शेख खारे पानी के इसी गुण का इस्तेमाल करता.

खेत लीज पर देने से मना करने वाले किसानों के खेत रातों रात खोद दिए जाते और उनमें पम्प से इलाके का खारा पानी भर दिया जाता. खेत की उपज खत्म हो जाती और फिर किसान को हारकर उस तालाब को शाहजहां को देना पड़ता. किसान की सोच होती कि ऐसे तो कुछ होगा नहीं. लेकिन अगर उसमें मछली और झींगा पालन का ही काम हो जाएगा तो किसान को थोड़ा ही पैसा मिल जाएगा. कुछ नहीं से कुछ सही.

किसानों को जमीन के एवज में हर महीने कुछ पैसे का वादा किया जाता. साल-दो साल तक सब सही चलता. लेकिन इसके बाद शाहजहां पैसा देना बंद कर देता. किसान ये देखते रह जाते कि एक सत्तापोषित भूमाफिया उनकी जमीन पर कुंडली मारकर बैठ गया है. वह उनकी जमीन पर बनी भेड़ी बनाकर उसमें मछली पाल रहा है. झींगा और केकड़ा पाल रहा है और सारे पैसे अंदर कर ले रहा है. लोग इल्जाम लगाते हैं कि इस मछली पालन और तमाम कामों से होने वाली कमाई सत्ताधारी पार्टी से भी शेयर की जाती थी.

ये सब लेफ्ट के शासन काल में हो रहा था. लेकिन इस समय बंगाल की राजनीति एक करवट ले रही थी. साल 2006 से लेकर 2008 तक ममता बनर्जी की सरपरस्ती में दो बड़े प्रोटेस्ट हुए. नंदीग्राम में लेफ्ट सरकार खेती योग्य उपजाऊ जमीन पर एक केमिकल हब बनाना चाह रही थी. वहीं सिंगूर में टाटा समूह को किसानों की जमीन एक लाख रुपये की नैनो कार बनाने के लिए दी गई थी. तृणमूल ने इन दो मुद्दों पर जमकर प्रोटेस्ट किये. ऑप्टिक्स ममता बनर्जी को किसानों और मजदूरों के साथ खड़ा दिखा रही थी और लेफ्ट को विरोध में. बंगाल में वामपंथी राजनीति का अवसान शुरू हो चुका था.

लोग बताते हैं कि साल 2010 आते-आते शाहजहां ने ये निर्णय कर लिया था कि वह माकपा से दूरी बनाएगा. टीएमसी के करीब जाना तय हुआ. साल 2011 में ममता बनर्जी ने वामपंथ की 34 साल की सत्ता को खत्म करके बंगाल में सरकार बनाई. शाहजहां ने भी हवा के साथ बहना जरूरी समझा और साल 2012 में टीएमसी से जुड़ गया.

अब तक जो काम वह लेफ्ट की सरकार के अधीन कर रहा था. अब वही काम वह तृणमूल की सरकार के अधीन करने लगा. लोग बताते हैं कि उसे सीधे तौर पर तृणमूल के दो नेताओं का साथ मिला हुआ था. पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव मुकुल रॉय और उत्तर 24 परगना के जिलाध्यक्ष ज्योतिप्रिय मलिक. एक पत्रकार ने नाम न छापने की शर्त पर हमें बताया कि इन शाहजहां इन दो नेताओं के जरिए पैसे ऊपर तक पहुंचाता.

शाहजहां शेख का रसूख बढ़ गया था. पैसे भी बहुत थे. एक खबर बताती है कि उसने पंचायत चुनाव में 'बिज़नेस' को अपनी कमाई का ज़रिया बताया था और कहा था कि उसकी कमाई 20 लाख रुपये सालाना है.

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संपत्ति को लेकर उठे सवाल

लेकिन इस कमाई के सापेक्ष उसकी संपत्ति कई सवाल खड़े करती थी. एक खबर के मुताबिक. उसके पास 17 कारें. 43 बीघा ज़मीन. 2 करोड़ के आसपास गहने और लगभग 2 करोड़ का बैंक बैलेंस है. स्थानीय लोग बताते हैं कि ये भी कम है. इससे बहुत ज्यादा पैसा उसके पास मौजूद है.

इस कमाई में दो लोगों ने उसकी बेइंतहा मदद की. शिबू हज़रा और उत्तम सरदार. ये लोग उसके स्थानीय गुर्गे की तरह काम करते. एक समय तक गांव-गांव जाने वाला शाहजहां अब चिंतामुक्त था. हज़रा और सरदार घूम-घूमकर खेतों पर कब्जा करते और भेड़ी बनाकर पैसा उगाही करते और शाहजहां की तर्ज पर ही स्थानीय किसानों और उनके घरवालों को प्रताड़ित करते.

संदेशखाली के रहने वाले कुछ लोग बताते हैं कि इन लोगों ने संदेशखाली की स्थानीय औरतों को पार्टी ऑफिस बुलाना शुरू किया. कभी कुछ खाना बनवाना हो. या कभी कोई काम करवाना हो तो औरतों को पार्टी ऑफिस बुलाया जाता. औरतों के पास मना करने का कोई विकल्प नहीं होता क्योंकि उनके पति के ज़मीनों की भेड़ी पर इन लोगों का कब्जा होता. औरतों के पास विकल्प इसलिए भी नहीं था क्योंकि वह मना करतीं तो ये लोग उनके घर चले आते और मारना पीटना करते. हमें ऐसे भी इल्जाम सुनने को मिले कि कई बार स्थानीय लोगों को बिठाकर उनके सामने गांववालों को मारा जाता. ऐसा बस इसलिए ताकि गांव में भय बना रह सके और इसी क्रम में लड़कियों का यौन शोषण शुरू हुआ. बाकायदा सुंदर लड़कियों की शिनाख्त की जाती और उन्हें पार्टी ऑफिस बुलाकर उनसे "मनोरंजन" करने के लिए कहा जाता. फिर शुरू होता बलात्कार.

लेकिन पुलिस चुप रहने की हिदायत से मामला बंद करती जाती. ऐसे इल्जाम भी लगते गए. कई पत्रकार बताते हैं कि शाहजहां शेख जो आज कर रहा है. उसके पहले ये काम लेफ्ट से जुड़े गुंडे और गिरोहबाज ईसा लश्कर और मजीद मास्टर करते थे. शाहजहां शेख इस कड़ी में बस एक और नाम है और इस तरह की गुंडागर्दी सुंदरवन के इलाके में आम है.

अगर आप सुंदरवन के इलाके में आगे बढ़ेंगे तो आपको ऐसे कई शाहजहां शेख देखने को मिलेंगे. ये सब 90 के दशक में शुरू हुआ. जब राज्य सरकार ने झींगा पालन को बढ़ावा देना शुरू किया. ये इस इलाके के लिए वरदान की तरह था क्योंकि फैक्ट्री-ऑफिस की अनुपस्थिति वाले इलाके को झींगे में ज्यादा कमाई दिखाई थी. यहां के खारे पानी की वजह से झींगा पालना ज्यादा आसान था. इसलिए किसान उस ओर घूमे. लेकिन शाहजहां शेख जैसे लोग बीच में अपना हिस्सा काटने के लिए बैठे थे. उन्होंने किसानों की जमीन पर कब्जा करना शुरू किया. इसके खिलाफ आवाज उठाने वाले किसानों को प्रताड़ित किया गया. उनके घरों की महिलाओं को प्रताड़ित किया गया. प्रताड़ना की ये कहानी बलात्कार तक गई. 

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