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20 साल में बना ब्रह्मांड का सबसे बड़ा 3D मैप, देखकर रोंगटे खड़े हो जाएंगे!

इससे ब्रह्मांड में लाखों प्रकाशवर्ष दूर की आकाशगंगाओं को देखा जा सकता है.

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एक्सरे टेलिस्कोप से कुछ ऐसा दिखता है ब्रह्मांड. (फोटो-eSASS)
सोच कर देखिए. कोई 20 साल से चला जा रहा है. उस ब्रह्मांड में जहां न वक्त का कोई हिसाब है न विस्तार की सीमा. वह हर कदम पर तस्वीरें उतारता है और उन्हें सेव करता जाता है. इस अनंत की यात्रा करने वाला खुद नहीं जानता कि उसे क्या मिलने वाला है. लेकिन उसे उम्मीद है कि जो मिलेगा वह ब्रह्मांड के कई गहरे राज खोलेगा. इस यात्रा पर निकली वैज्ञानिकों की एक टोली ने वह कर दिखाया है जो अब तक नहीं हो सका. ब्रह्मांड का एक ऐसा 3डी नक्शा तैयार कर लिया गया है जो अब तक कभी नहीं बना. इस नक्शे को बनाने में रेडशिफ्ट नाम का एक खास प्रोसेस बहुत काम आया है. इस प्रोसेस में पुरानी दूर-दराज की गैलेक्सी से आने वाली रोशनी को पढ़कर दूरी का पता लगाया जाता है. आखिर कैसे तैयार हुआ यह विहंगम नक्शा. जानते हैंः

कहानी मैप बनने की

इंसान हमेशा से ऊपर की तरफ जिज्ञासा से देखता रहा है. कभी उसे दिन में दिखने वाला सूरज हैरान करता है तो कभी उसे हैरान करती है सितारों से जड़ी रात की चादर. दिन रात की इस पहेली को सुलझाने की उधेड़बुन में इंसान बरसों से लगा है. ऐसे ही कुछ इंसान आज से 20 साल पहले जमा हुए. उन्होंने सोचा कि चलो एक ऐसा नक्शा बनाते हैं जो ब्रह्मांड के हर कोने को उलट-पुलट कर देखेगा. इस खयाल के साथ The Sloan Digital Sky Survey (SDSS) की शुरुआत हुई. यहां दुनिया के सैकड़ों इंस्टिट्यूट्स से हजारों वैज्ञानिक साथ आए. और जुट गए एक स्पेस मैप तैयार करने में.

लेकिन जरूरत किस चीज की थी?

इस मैप को बनाने के लिए एक हाहाकरी मशीन की जरूरत थी. मतलब एक ऐसी दूरबीन जो इंसानी कल्पना की दूरी तक झांक कर देख ले. यह काम किया अपाचे पॉइंट ऑब्जरवेटरी ने. अब लगे हाथ इसकी कहानी भी सुन लीजिए. यह ऑब्जरवेटरी अमेरिका के न्यू मैक्सिको के सैक्रेमेंटो की ऊंची पहाड़ी पर है. यहां पर दुनिया की सबसे बड़ी दूरबीनों में से एक मौजूद है. इस दूरबीन का आपर्चर 140 इंच का है. अपर्चर मतलब वह जगह जिस लेंस से रोशनी टेलिस्कोप में आती है, उसका व्यास या उसकी चौड़ाई. इसे आप ऐसे समझें कि आमतौर पर मिलने वाली साइंटिफिक दूरबीन का अपर्चर 12 इंच लेंस वाला होता है और उससे भी अमूमन 2 अरब लाइट ईयर तक देख सकते हैं. अपाचे ऑब्जरवेटरी की 140 इंच लेंस की दूरबीन ने 11 अरब लाइट ईयर तक की 20 लाख गैलेक्सी की तस्वीरें खींची. लाइट ईयर मतलब एक साल में प्रकाश की किरण जितनी दूरी तय करे. आपको बता दें कि प्रकाश यानी लाइट की स्पीड 1 सेकेंड में 3 लाख किलोमीटर से भी ज्यादा होती है. इस हिसाब से एक लाइट ईयर 9,500,000,000,000 किलोमीटर होगा. ऐसे में बड़े फासलों का हिसाब लाइट ईयर में रखते हैं. ऐसा नहीं है कि दूरबीन बस तस्वीरें खींचती गई और हमने कंप्यूटर की स्क्रीन पर देख लीं. इन तस्वीरों को एक कंप्यूटर ने सहेजा और उन्हें करीने से लगाया. इस काम में ही कई बरस लगे हैं. उसके बाद जाकर एक मुकम्मल 3D तस्वीर सामने आई है. इस महा मैप को कुछ ऐसे समझें

इस मैप का क्या फायदा होगा?

यह मैप बताएगा अपनी धरती और सूरज के पैदा होने की कहानी. कहते हैं कि लाखों साल पहले एक बड़ा धमाका (बिग बैंग) हुआ और तब से ही ब्रह्मांड एक गुब्बारे की तरह फैलता जा रहा है. इस गुब्बारे पर एक छोटे बिंदु की जितनी हैसियत रखने वाली हमारी मिल्की-वे गैलेक्सी भी फैलती जा रही है (मिल्की-वे गैलेक्सी में हमारी पृथ्वी की औकात बिंदु से भी छोटी है). यह डिटेल मैप हमारी गैलेक्सी मिल्की के विस्तार के वक्त पैदा हुई उस पहेली के अनजान टुकड़ों को जोड़ने में मदद करेगा जिन्हें 'द गैप' कहा जाता है. इस विडियो से समझिए कि हम ब्रह्मांड के मुकाबले कितने तुच्क्ष हैं - यूनिवर्सिटी ऑफ ऊटा के लीड रिसर्चर और इस प्रोजेक्ट से जुड़े वैज्ञानिक कायल डॉसन का कहना है
हम अपने ब्रह्मांड के प्राचीन इतिहास और लगातार विस्तार करते ब्रह्मांड की आधुनिक परिघटना को तो बखूबी जानते हैं लेकिन इनके बीच का बहुत कुछ है जो हमें नहीं पता. इस गैप का वक्त तकरीबन 11000000000 यानी 11 अरब साल का है. हमने 5 साल का वक्त 11 अरब साल के ब्रह्मांड के इस गैप को समझने में लगाए हैं.
ये मैप बताएगा कि आखिर हमारी पृथ्वी पैदा कैसे हुई. इस मैप में सिर्फ उजली गैलेक्सी ही नहीं बल्कि ढेर सारा अंधेरा भी है. इसे वैज्ञानिक डार्क मैटर कहते हैं. डार्क मैटर क्या है यह फिलहाल कोई भी अच्छी तरह से नहीं जानता है. वैज्ञानिक मानते हैं कि इस डार्क मैटर में कई ऐसे राज छुपे हैं जो भौतिक विज्ञान की पूरी समझ को बदलने की ताकत रखते हैं.

वह जुनूनी इंजीनियर जो साइंस का अफलातून था

इस मैप के बारे में जानने से पहले यह जानना भी जरूरी है कि आखिर कौन 'सिरफिरा' है जो ऐसे मैप को तैयार करने का खयाल पाल सकता है. 1934 में बनी स्लोन डिजिटल स्काई सर्वे नाम की जिस ऑर्गेनाइजेशन की हम बात कर रहे हैं उसे एक जुनूनी इंजीनियर अल्फ्रेड पी स्लोन (1887-1966) ने बनाया था. अल्फ्रेड पी स्लोन भी अजब अफलातून इंसान थे. वह 1920 से 1950 तक दुनिया की सबसे बड़े ऑटोमोबाइल कंपनी जनरल मोटर्स के सीईओ रहे. इस दौरान उन्हें हमेशा इस बात का अहसास होता रहा कि इंसान जितना सोचने की कुव्वत रखता है उससे ज्यादा कर सकता है. उन्होंने अपने संस्मरण My Years with General Motors में इस पर तफ्सील से बात की. एक जगह वह लिखते हैं
आप यह जान कर चौंक जाएंगे कि अपनी अपार ऊर्जा, महात्वाकांक्षा और ढेर सारे अज्ञान के साथ आप कितना कुछ कर सकते हैं.
इस अज्ञान और अनजाने की खोज को परवान चढ़ाने के लिए ही उन्होंने अल्फ्रेड पी स्लोन फाउंडेशन की शुरुआत की. इसे बनाने के पीछे कारण था साइंस में दूर की कौड़ी पर काम करना. जो सिर्फ अभी सोचा जा सकता है, उसे जमीन पर उतार कर लाना. स्लोन साइंस की हर झूठी-सच्ची कहानी को सुनने को तैयार रहते थे. आप जानकर हैरान होंगे कि साइंस पर बनने वाली फिल्मों के लिए भी स्लोन फाउंडेशन पैसे देता है. हाल ही में रिलीज हुई मार्शियन, फर्स्ट मैन, हिडने फिगर्स और ऐसी की साइंस की पृष्ठभूमि पर बनी कई फिल्मों को फाउंडेशन ने पैसा दिया है. जैसा कि अक्सर होता है अफलातून तो चला जाता है, लेकिन अपना काम और उसे आगे बढ़ाने वाले पीछे छोड़ जाता है. तो अब अल्फ्रेड पी स्लोन फाउंडेशन के तहत ही स्लोन डिजिटल स्काई सर्वे का पूरा काम चल रहा है और इसके लिए करोड़ों रुपए का खर्च फाउंडेशन उठा रहा है.

कहां देखें यह मैप

ज्यादा भटकने की जरूरत नहीं है आप यहां पर जाकर खुद इस मैप को देख सकते हैं.यहां पर आप इस मैप को बनाने की पूरी तकनीक और इससे मिलने वाले रिजल्ट भी देख सकते हैं. फाउंडेशन साइंस में दिलचस्पी रखने वाले और रिसर्च की फील्ड में आगे जाने वाले लोगों को खुद से जोड़ना भी चाहती है. इसकी पूरी जानकारी भी आपको इस वेबसाइट पर मिल जाएगी.
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