फर्ज कीजिए आप कहीं नौकरी करते हैं. हफ्ते में पांच दिन. 2 दिन की छुट्टी मिलती है तो सोचते होंगे कि घर, बैंक, शॉपिंग आदि जैसे जरूरी काम इन्हीं दो दिनों में निपटा लें. पर इसी बीच आपके बॉस का फोन आ गया कि 1 घंटे के अंदर फलां वाली एक्सेल शीट भर दो, या फलां फाइल को चेक कर लो. अब आपको गुस्सा तो आएगा कि कहां जा रहे थे बीवी के साथ सिनेमा देखने और बॉस ने फंसा दिया फाइल चेक करने में. तो फाइनली हुआ ऐसा कि बॉस का काम आपने सर्वोपरि समझा और बैठ गए फाइल जांचने. पर इस कारण आपकी पत्नी आपसे नाराज हो गईं. माने फाइनेंस मिनिस्ट्री यानी बॉस के लिए आपने होम मिनिस्ट्री को नाराज कर दिया. ये बातें मज़ाकिया भले लग सकती हैं पर वर्तमान समय में ये पूरी दुनिया में लगभग हर नौकरीपेशा व्यक्ति का दर्द है. और इन्हीं कारणों को ध्यान में रखते हुए ऑस्ट्रेलिया की संसद ने एक नए बिल को मंजूरी दे दी है. इस बिल का नाम है राइट टू डिस्कनेक्ट बिल.
अब बॉस का फ़ोन उठाना ज़रूरी नहीं, क्या है राइट टू डिस्कनेक्ट बिल?
जब वर्कर्स ऑफिस में नहीं होते तब भी बहुत सारा काम होता है. पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ का बैलेंस बुरी तरह प्रभावित होता है. इसी वर्क-लाइफ बैलेंस को मेंटेन करने के इरादे से लाया गया है ऑस्ट्रेलिया का राइट टू डिस्कनेक्ट बिल.(Right To Disconnect Bill)

इस बिल के पीछे की कहानी शुरू होती है आज वर्कप्लेस पर इस्तेमाल हो रही टेक्नोलॉजी से. दरअसल कोविड के दौरान वर्क फ्रॉम होम का कल्चर काफ़ी प्रचलित हुआ. निश्चित तौर पर कुछ कंपनियां आज भी इस कल्चर को फॉलो कर रही हैं. इससे ऑफिस आने-जाने का समय और ऑफिस स्पेस की भी बचत इसमें एक फैक्टर रहा है. पर इसका सबसे बड़ा इम्पैक्ट हुआ है वर्कर्स पर. इस कल्चर की वजह से कई लोगों के काम के घंटे या वर्किंग आवर्स अब फिक्स नहीं हैं. टेक्नोलॉजी इस तरह की है कि जब वर्कर्स ऑफिस में नहीं होते तब भी बहुत सारा काम होता है. खूब सारा कम्युनिकेशन भी होता है. लिहाजा पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ का बैलेंस इससे बुरी तरह प्रभावित होता है. इसी वर्क-लाइफ बैलेंस को मेंटेन करने के इरादे से लाया गया है ऑस्ट्रेलिया का राइट टू डिस्कनेक्ट बिल.(Right To Disconnect Bill)
पर वर्कर्स की बेहतर कंडीशन के लिए ये कोई पहला कदम नहीं है. इससे पहले 2023 में फेयर वर्क लेजिस्लेशन अमेंडमेंट (क्लोजिंग लूपहोल्स नंबर 2) बिल आया था. ये बिल दरअसल उसी बिल का संशोधन है. ये बिल कहता है कि
“कोई भी इम्प्लॉइ अपने वर्किंग आवर्स के बाहर इम्प्लॉयर से संपर्क करने, संदेश पढ़ने या संपर्क करने के प्रयास से इंकार कर सकता है, जब तक कि ये इंकार अनुचित न हो.”
अब यहाँ पर 'अनुचित' का मतलब क्या है, इस पर संशय था क्योंकि कंपनियां कोई न कोई जुगत लगा कर इम्प्लॉई का शोषण कर सकती हैं. इसका जवाब दिया ऑस्ट्रेलिया को Minister for Employment and Workplace Relations टोनी बर्के (Tony Burke) ने. उन्होंने कहा कि ये देखा गया है कि कभी-कभी जरूरी स्थिति में काम के घंटों के बाद भी इम्प्लॉयर को अपने स्टाफ से संपर्क करना पड़ता है. पर अगर आप किसी ऐसी कंपनी में काम कर रहे हैं जहां आपको उतने घंटे की ही पेमेंट मिलती है जितना आप काम करते हो और फिर भी आपको लगातार ईमेल-मैसेज चेक करते रहना होता है. ऐसे में उन्हें उन घंटों के पैसे नहीं मिलते जिसमें वो ऑफिस के काम के लिए ईमेल पर आँखें गड़ाए रहते हैं. और इन घंटों की उन्हें पेमेंट भी नहीं मिलती. यह पूरी तरह से अनुचित है. बिल के अनुसार कर्मचारी को ओवरटाइम काम के लिए किस हद तक मुआवजा दिया जाए, संपर्क का कारण, संपर्क का प्रयास और कर्मचारी को होने वाली डिस्टरबेंस. इन सभी फ़ैक्टर्स को ध्यान में रखकर ही कर्मचारी को वर्किंग आवर्स से ज्यादा काम करने की पेमेंट मिलेगी.
अब ये तो हुई मंत्री जी की बात. पर अगर कर्मचारी और कंपनी में इस तरह के मामलों को लेकर किसी तरह का विवाद होता है तो क्या होगा ? जवाब बड़ा सिंपल सा है, आपस में बातचीत करके मामले को सुलझाने का प्रयास किया जाए. पर फिर भी अगर बात नहीं बनी तो वो ऑस्ट्रेलिया के फेयर वर्क कमीशन(Fair Work Commission) में जा सकते हैं. ये ऑस्ट्रेलिया का औद्योगिक ट्रिब्यूनल है. फेयर वर्क कमीशन के आदेश का पालन करने से इंकार करने पर इम्प्लॉयर पर जुर्माना लगाया जा सकता है. पर जैसा कि हमेशा होता है, सरकार किसी भी मंशा से कोई बिल लाए, विरोध हो जाता है. तो जानते हैं इस बिल के विरोध में क्या तर्क दिए गए हैं ?
ऑस्ट्रेलिया के चैम्बर ऑफ कॉमर्स ने बिल की आलोचना करते हुए एक स्टेटमेंट जारी किया है. स्टेटमेंट में कहा गया कि
"हम औद्योगिक संबंधी कानूनों को इतना सख्त बनाने के पक्ष में नहीं हैं. कड़ी मेहनत करके देश के लिए धन कमाने वाले मालिकों को इसकी वजह से कमाना कठिन हो जाएगा. वो धन हमारे देश में नहीं आएगा जिसका एक राष्ट्र के रूप में हम सभी आनंद लेते हैं."
ऑस्ट्रेलियन चैम्बर ऑफ कॉमर्स के सीईओ Andrew McKellar ने The Guardian से बात करते हुए बताया कि इससे देश के कामकाजी सेक्टर में महिलाओं की संख्या घट सकती है.
वहीं ऑस्ट्रेलिया के ही विपक्ष के सांसद एडम बेंट ने भी कहा कि यह बिल समय की जरूरत है. फ़्रांस समेत दुनिया के 20 देशों में ये कानून है. कुल मिलाकर इस बिल से ये होगा कि बिना पैसे दिए कर्मचारी से ओवरटाइम नहीं कराया जा सकेगा. अब ये भी जान लें कि दुनिया के बाकी देशों में राइट टू डिस्कनेक्ट को लेकर क्या नियम हैं?
सबसे पहले उदाहरण लेते हैं फ़्रांस का. फ़्रांस पहला ऐसा देश था जहां 2017 में सबसे पहले राइट टू डिसकनेक्ट बिल लाया गया था. बात करें भारत की तो हमारे देश में पहली बार सांसद सुप्रिया सुले ने एक ऐसा ही बिल संसद में प्रस्तुत किया था. 'राइट टू डिस्कनेक्ट' एक प्राइवेट मेंबर बिल था जिसे 2018 में लाया गया था. हालांकि इस बिल पर कभी भी संसद में चर्चा नहीं हुई.