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वो नेता जिसने विधानसभा में अपनी ख़ून से सनी शर्ट लहरायी और चुनाव जीत गया

पिनारायी विजयन के पॉलिटिकल क़िस्से

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अब जब CPI (M) की जीत तय नज़र आ रही है और विजयन का दोबारा मुख्यमंत्री बनना भी, तो केरल विधानसभा के 64 साल के इतिहास में ये पहला मौका होगा, जब कोई मुख्यमंत्री या कोई गठबंधन लगातार दूसरा कार्यकाल लेगा. (फोटो- PTI)
“मैं एक ताड़ी उतारने वाले का बेटा हूं. कुछ लोग हमेशा मुझे मेरी जाति याद दिलाते रहते हैं. वो ये नहीं देख पा रहे कि ताड़ी उतारने वाले का बेटा कैसे मुख्यमंत्री बन गया!”
जनवरी 2019 की एक सभा में जब एक माध्यम क़दकाठी वाले नेता ने ये बात कही, तो राजनीतिक पंडितों ने अपना हिसाब बिठा लिया था. ये संदेश भारतीय जनता पार्टी के लिए था. और यही नहीं, भाजपा की पिच पर उतरकर बैटिंग करने जैसा था. कैसे? क्योंकि अपने अतीत को इस तरह से मंच पर उतारने का काम नरेंद्र मोदी बख़ूबी करते आए थे. लेकिन इस तरह की राजनीति करने वाला कोई छोटा नेता नहीं था. इस नेता का नाम है पिनारायी विजयन. केरल के मुख्यमंत्री. कहते हैं कि विजयन की लीडरशिप का यही स्टाइल रहा है. इतना ही ठेठ और साफ़. विजयन ने अब वे केरल की राजनीति की पांच दशक पुरानी प्रथा का अंत कर दिया है. लगातार दूसरी बार वाम को सत्ता के केंद्र में रखकर. लगातार दूसरा कार्यकाल लेकर.
21 मार्च 1944. केरल के कन्नूर जिले में पैदा हुए विजयन. उनके पिता नारियल के पेड़ पर चढ़कर ताड़ी उतारने का काम करते थे. वही ताड़ी जिससे देशी शराब भी तैयार की जाती है. लेकिन केरल के ग्रामीण क्षेत्रों में ताड़ी उतारना रोजगार का एक बड़ा साधन है. विजयन यहां के पिछड़े समुदाय एझवा से ताल्लुक़ रखते हैं.
Vijayan Modi मौके-बेमौके पी विजयन भी अपनी जाति और ताड़ी तोड़ने वाले के परिवार से होने की बात का ज़िक्र करने से नहीं चूकते. (फोटो- PTI)
26 की उम्र में विधायक कन्नूर से निकलकर विजयन ने केरल के ही थलासेरी पहुंचे. यहां से उन्होंने छात्र राजनीति में कदम रखा. 1964 में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (M) जॉइन की. यहां से उनका पॉलिटिकल ग्राफ बढ़ा. केरल स्टूडेंट फेडरेशन *(KSF) में जिला सचिव बने. बाद में KSF ही बदलकर स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया यानी SFI हो गया. विजयन केरल स्टेट को-ऑपरेटिव बैंक के प्रेज़िडेंट भी बने. फिर आया साल 1970. विधानसभा चुनाव होने थे. विजयन ने कुथुपरंब सीट से पर्चा भरा. चुनाव हुआ. विजयन विधायक बने. महज़ 26 साल की उम्र में. मर्डर केस में आया नाम विजयन का नाम प्रमुखता से एक संघ कार्यकर्ता की हत्या में जोड़ा जाता है. उनके घर कन्नूर में साल 1969 में जनसंघ के एक कार्यकर्ता वड़िक्कल रामकृष्णन की हत्या हो गयी थी. रामकृष्णन ने CPI के बीड़ी बनाने के प्रोजेक्ट 'दिनेश बीड़ी' के जवाब में 'गणेश बीड़ी' शुरू किया था. राजनीतिक विवाद थोड़ा और तल्ख़ होता गया. ख़बरें बताती हैं कि रामकृष्णन ने एक 16 साल के बच्चे पर हमला कर दिया. और जवाब में CPI के समर्थकों ने भी पलटकर हमला किया. रामकृष्णन पर कुल्हाड़ी से वार किया गया था. दो दिन बाद अस्पताल में इलाज के दौरान रामकृष्णन की मौत हो गयी. इसे केरल की पहली राजनीतिक हत्या कहा गया. आरोपियों में CPI के कई नेताओं का नाम आया. ख़बरें बताती हैं कि विजयन का नाम इनमें से एक था. हालांकि लेफ़्ट नेताओं द्वारा संघ की राजनीतिक साज़िश भी क़रार दिया जाता है. और कहा जाता है कि चूंकि मामला कन्नूर का था, इसलिए विजयन का नाम घसीटा जाता है. विधानसभा में लहराई खून से सनी शर्ट इंदिरा गांधी के कार्यकाल के समय देश में जब इमरजेंसी लगायी गयी. तो विपक्ष में देश में बहुत सारे नेता उभरे. इन्हीं में एक नाम विजयन का भी गिना जा सकता है. इस समय तमाम पार्टियां चोरी-छिपे अपनी गतिविधियां कर रही थीं. विजयन की पार्टी CPI(M) भी इनमें से एक थी. गतिविधियां पकड़ में आईं तो तमाम नेताओं के साथ विजयन भी जेल गए. करीब डेढ़ साल जेल में रहे. कहा जाता है कि जेल में विजयन समेत तमाम नेताओं के साथ जेल में हिंसा हुई. उन्हें थर्ड डिग्री टॉर्चर दिया गया था, ऐसा कहा गया. इमरजेंसी हटी, विजयन जेल से निकले. वापस आने के बाद विधानसभा में थर्राता हुआ भाषण दिया. और भाषण के साथ ही विजयन ने अपनी शर्ट विधानसभा से लहरा दी. वो शर्ट ख़ून से सनी हुई थी. कहा गया कि ये शर्ट विजयन ने तब पहनी थी, जब इमरजेंसी के दौरान पुलिस उन्हें जेल ले गयी थी. ख़ून से सनी शर्ट का विधानसभा में लहराया जाना बड़ी घटना थी. विजयन की लोकप्रियता जबरदस्त तरीके से बढ़ी. इमरजेंसी के बाद जब विधानसभा चुनाव हुए, तो विजयन फिर से कुथुपरंब से जीते.
Vijayan पी विजयन लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट के गठबंधन की अगुवाई करते हैं. (फोटो- PTI)
मंत्री बने और निकाल दिए गए पोलित ब्यूरो से 1991 और 1996 में भी विजयन जीतकर विधानसभा पहुंचे. 96 में मंत्री बने. अस्सी के दशक से ही वीएस अच्युतानंद केरल CPI(M)N के वरिष्ठ नेता रहे. 2006 में राज्य के मुख्यमंत्री भी बने. इस बीच नब्बे के दशक में जब विजयन की राजनीति का उदय हुआ तो उसकी वजह ये भी थी कि विजयन को अच्युतानंद का भरोसा प्राप्त था. ये सिलसिला चलता रहा, विजयन और अच्युतानंद साथ-साथ केरल की राजनीति मे बढ़ते रहे. लेकिन 96 में नयनर की सरकार में विजयन मंत्री बने और इसके बाद से उनकी अच्युतानंद से खटकी. आलम से आ गया कि दोनों ही सार्वजनिक मंचों से एक दूसरे के खिलाफ़ टिप्पणी देते देखे-सुने गए. बात बढ़ती गयी. पार्टी की बदनामी हो रही थी. टूट के क़यास लगाए जाने लगे थे. फिर पार्टी ने ख़ुद ही मोर्चा सम्हाला. 26 मई 2007. पार्टी ने अनुशासनात्मक कार्रवाई की. विजयन और अच्युतानंद दोनों को ही पार्टी के पोलित ब्यूरो से निष्कासित कर दिया. पोलित ब्यूरो यानी पार्टी की एक एग्ज़क्यूटिव कमेटी थी. जिसका सदस्य बनना सभी कम्युनिस्टों के लिए गर्व की बात होती थी. विजयन को उस सम्मानित जगह से निकाल दिया गया था.
2006 के चुनाव में अच्युतानंद जीते, लेकिन एंटी-इन्कंबेंसी के ट्रेड में 2011 में सत्ता गंवा दी. लेकिन 2016 में पार्टी ने एक बार फिर जोरदार जीत हासिल की और इस बार ताजपोशी हुई पी विजयन की.
विजयन ने अपना कार्यकाल पूरा किया, बल्कि केरल में सरकारों को लगा पुराना अभिशाप भी ख़त्म किया. अभिशाप, एंटी-इन्कंबेंसी का. और अब CPI (M) की जीत तय है और विजयन का दोबारा मुख्यमंत्री बनना भी.