The Lallantop

पॉलिटिकल स्ट्रैटेजिस्ट प्रशांत किशोर के साथ ऐसा क्या हुआ कि वो खुद राजनीति में आ गए

और वाकया बिहार नहीं, पंजाब में हुआ था.

Advertisement
post-main-image
पॉलिटिकल स्ट्रैटजिस्ट प्रशांत किशोर अब खुद एक नेता हैं. उन्होंने लल्लनटॉप को दिए इंटरव्यू में स्ट्रैटजिस्ट से नेता बनने की कहानी सुनाई है.
2014 और उसके बाद जितने भी चुनाव हुए हैं, उसमें नेताओं के साथ ही उनकी चुनावी रणनीति पर बात ज़रूर हुई है. और ऐसी रणनीतियों के उस्ताद माने जाते हैं प्रशांत किशोर. दुनिया उन्हें पॉलिटिकल स्ट्रैटेजिस्ट कहती थी. थी इसलिए कि अब वो स्ट्रैटिजिस्ट से आगे बढ़ गए हैं और खुद नेता बन गए हैं. लेकिन बैकरूम ऑपरेशन के मास्टर आदमी के साथ ऐसा क्या हुआ कि उसने फ्रंट पर आने की ठानी. इसका जवाब दिया है खुद प्रशांत किशोर ने. प्रशांत किशोर ने दी लल्लनटॉप के संपादक सौरभ द्विवेदी के साथ लंबी बातचीत की है, जिसमें उन्होंने इस सवाल का भी जवाब दिया है.
प्रशांत किशोर जेडीयू के उपाध्यक्ष हैं.
प्रशांत किशोर जेडीयू के उपाध्यक्ष हैं.

प्रशांत बताते हैं कि कई बार आप खुद को लाचार महसूस करते हैं. वो इसलिए कि आप जो करना चाह रहे हैं, नहीं कर पा रहे हैं. जीतकर भी नहीं कर पा रहे हैं. ऐसी ही एक घटना पंजाब में हुई, जिसने मेरे फैसले को बदल दिया. बकौल प्रशांत जब मैं पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह के लिए चुनावी कैंपेन डिजाइन किया था, तो मैंने पंजाब में संविदा कर्मचारियों को लेकर एक प्रामिस किया था. जैसे बिहार में सात निश्चय हैं, वैसे ही पंजाब में मैंने 9 वादे किए थे मुख्यमंत्री के स्तर पर. उसमें एक संविदा कर्मचारियों को लेकर प्रामिस किया गया था. बाद में मुझे पता चला कि संविदा कर्मचारी धरने पर बैठे थे, वो मुख्यमंत्री से मिलना चाहते थे और बताना चाहते थे कि आपने प्रामिस किया था अब कीजिए. जब वो मुख्यमंत्री से नहीं मिल पाए, तो उन्होंने अखबार में एक विज्ञापन निकाला कि जो हमारी मुलाकात चीफ मिनिस्टर अमरिंदर सिंह से करा देगा, उसको एक लाख रुपये इनाम दिया जाएगा.
पीके अब रणनीतिकार नहीं, बल्कि नेता प्रशांत किशोर हैं. जेडीयू में उनकी हैसियत नंबर 2 की है.
पीके अब रणनीतिकार नहीं, बल्कि नेता प्रशांत किशोर हैं. जेडीयू में उनकी हैसियत नंबर 2 की है.

पंजाब में विपक्ष के नेता हैं अमन अरोड़ा, जो आप के विधायक हैं. उन्होंने इस ऐड को ट्वीट किया और कहा कि देश में सबसे बड़ा फ्रॉड प्रशांत किशोर है, क्योंकि चुनाव से पहले हर घर कैप्टन, घर-घर कैप्टन, कॉफी विथ कैप्टन और चुनाव के बाद नो वेयर कैप्टन. तो इस आदमी को बुलाओ और इसको खड़ा करो जनता के सामने. मैंने राहुल गांधी को वो मैसेज भेजा कि चीफ मिनिस्टर आपका, पार्टी आपकी, फायदे आपके. हम यहां आंध्र प्रदेश में झक मार रहे हैं और लोग गाली मुझे दे रहे हैं, फ्रॉड मुझे कह रहे हैं. उसी वक्त ये समझ आया कि प्रामिस करने वाले से ज्यादा करवाने वाले को ढूंढ लेते हैं. अगर नेता काम कर रहा है, तब तो फायदा है. अगर नहीं कर रहा है, तो गाली भी बहुत पड़ती है. इसलिए मुझे लगा कि अब समय आ गया है कि इसको छोड़िए, क्योंकि दूसरा गलती करता है और फिर लंबे समय तक लोग आपको फ्रॉड मानते हैं. ये मेरे लिए आंखे खोलने वाला था कि जो वहां है, उसे छोड़कर लोग मुझे गाली दे रहे हैं. और कोई सामान्य आदमी नहीं दे रहा है, लीडर ऑफ अपोजिशन दे रहा है. बाकी बेबसी भी है, मजबूरी भी है, आगे का रास्ता कैसे खुले ये भी देखने की बात है. आखिर ये काम कब तक करते रहेंगे कि आज उसको जिताया, कल उसको जिताया. कोई अंत तो होना चाहिए. कोई बड़ा गोल तो होना चाहिए लाइफ में.
दी लल्लनटॉप के संपादक सौरभ द्विवेदी के साथ प्रशांत किशोर.
दी लल्लनटॉप के संपादक सौरभ द्विवेदी (बाएं) के साथ प्रशांत किशोर.

और वो गोल बिहार आने को लेकर दिखा. मेरा ये कमिटमेंट है और मैं समझता हूं कि अगले 10 साल में बिहार को टॉप 10 में आने की जुगत लगानी चाहिए. बिहार में 14 साल में नीतीश के राज में बहुत डेवलपमेंट हुआ है लेकिन ये भी सच्चाई है कि बिहार विकास के ज्यादातर मानकों पर बॉटम पांच में ही है. इसकी एक वजह ये है कि खाई जो है पिछले 40-50 साल से गहरी हो गई है कि उसे इतनी जल्दी पाटा नहीं जा सकता है. दूसरी वजह है कि आप बढ़ रहे हैं तो दूसरे राज्य तो बैठे नहीं है. तो जो गैप है वो पूरा नहीं हो पाता है. इसलिए बिहार को ये कोशिश करनी चाहिए कि विकास के ज्यादातर मानकों में हम टॉप 10 में कैसे आएं और उस एजेंडे को पूरा करनें में नीतीश जी की या उनकी सरकार की जो मदद आने वाले समय में मैं कर पाउं, उसके लिए लौटकर यहां आया हूं. कि बिहार में अगर वो होगा तभी स्थिति बदलेगी.

पंजाब जाकर प्रशांत किशोर से कौन सी गलती हो गई?

Advertisement

Advertisement
Advertisement
Advertisement