बिहार के गया इंटरनेशनल एयरपोर्ट (Gaya Airport Code) के लिए तीन अक्षर वाले कोड ‘GAY’ का इस्तेमाल किया जाता है. भारतीय जनता पार्टी (BJP) के एक सांसद ने इस पर आपत्ति जताई है. उनका कहना है कि ये कोड सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से ‘आपत्तिजनक’ है. सांसद की इस प्रतिक्रिया पर LGBTQIA+ कार्यकर्ताओं ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है. उन्होंने कहा है कि इस तरह की टिप्पणी, उनके समुदाय के खिलाफ पूर्वाग्रह को बढ़ावा देती है.
'एयरपोर्ट का GAY कोड नेम नहीं बदला, कोशिश की थी', सांसद को सरकार का जवाब, ये वजह बताई
भारतीय जनता पार्टी (BJP) के एक सांसद Bhim Singh ने एयरपोर्ट के GAY कोड नेम पर आपत्ति जताई है. उनका कहना है कि ये कोड सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से आपत्तिजनक है. LGBTQIA+ समुदाय ने Bhim Singh के बयान की निंदा की है. उन्होंने कहा है कि इस तरह की टिप्पणी उनके समुदाय के खिलाफ पूर्वाग्रह को बढ़ावा देती है. इस पर सरकार का जवाब भी आया है.

बिहार से राज्यसभा के सदस्य भीम सिंह ने संसद में एक लिखित सवाल पूछा. उन्होंने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय वायु परिवहन संघ (IATA) के इस कोड से लोग 'असहज' महसूस कर रहे हैं, ऐसे में इसका इस्तेमाल क्यों किया जा रहा है. उन्होंने पूछा,
क्या सरकार इसकी जगह सम्मानजनक और सांस्कृतिक रूप से उपयुक्त कोड का इस्तेमाल करने पर विचार करेगी?
नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने जानकारी दी कि पहले भी इस तरह की मांगें की जा चुकी हैं. नागरिक उड्डयन राज्य मंत्री मुरलीधर मोहोल ने बताया कि तीन अक्षर वाले कोड IATA द्वारा दिए जाते हैं. ये 300 एयरलाइनों का प्रतिनिधित्व करने वाला एक व्यापार संघ है. कोड इसलिए दिए जाते हैं, ताकि दुनिया भर के हवाई अड्डों की विशिष्ट पहचान की जा सके, आमतौर पर स्थान के नाम के पहले तीन अक्षरों का उपयोग किया जाता है. मोहोल ने आगे कहा,
इससे पहले एयर इंडिया ने IATA से इस कोड में बदलाव की मांग की थी. हालांकि, IATA ने बताया कि ये प्रस्ताव-763 के प्रावधानों के तहत किया जाता है. इसमें तीन अक्षरों वाले कोड स्थाई माने जाते हैं और इन्हें केवल असाधारण परिस्थितियों में ही बदला जाता है. आमतौर पर इनमें हवाई सुरक्षा संबंधी चिंताएं शामिल होती हैं.
मंत्रालय ने अपने जवाब में ये नहीं बताया कि एयर इंडिया ने ये अनुरोध कब किया था या ऐसी मांग करने वाली दूसरी संस्थाओं के नाम क्या हैं.
LGBTQIA+ कार्यकर्ताओं ने क्या कहा?
LGBTQIA+ समुदाय ने सांसद भीम सिंह के बयान की निंदा की है. LGBTQ कार्यकर्ता अरविंद नारायण ने सुप्रीम कोर्ट के 2018 के फैसले की ओर इशारा किया. इसमें समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया था और LGBTQ सम्मान के अधिकार को मान्यता दी गई थी. हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, उन्होंने कहा,
सांसद द्वारा हमें अनैतिक बताना हमारे समुदाय की गरिमा को ठेस पहुंचाना है. उन्हें समुदाय से माफी मांगनी चाहिए.
एक अन्य LGBTQIA+ कार्यकर्ता राजेश श्रीनिवास ने कहा कि इस मामले को लेकर किसी भी बदलाव की जरूरत नहीं है. उन्होंने कहा,
एयरपोर्ट कोड में बदलाव की जरूरत नहीं है क्योंकि इसमें सांस्कृतिक रूप से कुछ भी अनुचित नहीं है. पूर्वाग्रह के कारण इस शब्द को लेकर असहजता उपजी है.
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मनोवैज्ञानिकों का क्या कहना है?मानसिक स्वास्थ्य और सामाजिक क्षेत्रों में काम कर चुकीं मनोवैज्ञानिक शंमथी सेंथिल कुमार ने भीम सिंह के इस बयान को बेहद चिंताजनक बताया. मनोचिकित्सक विद्या दिनाकरन ने कहा कि जागरूकता की कमी के कारण इस तरह के बयान दिए जाते हैं.
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