
कोणार्क मंदिर
ओडिशा में इतने खूबसूरत और चकित करने वाले मंदिर हैं, जो कि शोध करने लायक हैं. पर उत्तर भारत में मुगलों की इमारतों और दक्षिण भारत के राजाओं के बनाए मंदिरों के आगे इनकी बात नहीं होती. वर्तमान में भी ओडिशा एक दर्शनीय जगह है. बेहद खूबसूरत. हरा-भरा. पर उसके आस-पास के राज्य इसकी चमक फीकी करते रहते हैं. यही नहीं लोग उड़िया लोगों को बंगाली ही समझते हैं. बताने पर भी कह देते हैं कि ठीक है, एक ही बात है.
देश की ख़ूबसूरती
सबसे बुरी बात है कि अशोक के कलिंग पर हमले को उड़िया लोगों के खिलाफ अपमान की तरह इस्तेमाल किया जाता है. वहीं ओडिशा में भी इस हमले को अच्छी नजर से नहीं देखा जाता. ये मेरा अपना अनुभव है. एकदम बाबर वाले हमले की तरह रिएक्शन मिलते हैं वहां. भारत की विविधता की यही खूबसूरती है.अमित शाह ने पकड़ी नब्ज़
वर्तमान भारत में किसी राज्य की महत्ता काफी हद तक अंग्रेजों के खिलाफ लड़े गए स्वतंत्रता संग्राम से तय होती है. क्योंकि राजनीति और आधुनिक उद्योगों का विकास लगभग उसी हिसाब से हुआ. इस मामले में भी ओडिशा पीछे हो गया. सुभाष चंद्र बोस ओडिशा के कटक से थे, पर नाम गया बंगाल का. इसी तरह 1857 के गदर से काफी पहले उड़िया लोगों ने गदर काटा था, पर इसको भी भुला दिया गया. पर भाजपा नहीं भुला रही है. भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को लोग बहुत कम कर के आंक रहे हैं. जब बाकी लोग बाकी मुद्दों में व्यस्त थे, अमित शाह ने उड़िया लोगों की भावनाओं को छू लिया है.
200 साल पहले हुए इस विद्रोह की याद में इस बार भाजपा बड़ा प्रोग्राम करने जा रही है. वहां के अखबारों की मानें तो 600 करोड़ रुपये खर्च करने का प्लान है. उड़िया लोगों को इससे अच्छा गिफ्ट हाल फिलहाल में नहीं मिल सकता. क्योंकि जो पाइक विद्रोह किताबों से ही गायब है, उसको भाजपा सेलिब्रेट करने जा रही है. ये उड़िया इतिहास को स्वीकार करने की दिशा में एक पहल है.
ओडिशा में कैसे घुसे अंग्रेज़?
1757 में प्लासी की लड़ाई हुई. 1764 में बक्सर की. इसके बाद अंग्रेजों का कब्जा भारत के एक बड़े हिस्से पर हो गया. इसके बाद अगर सीधे शब्दों में कहें तो, अंग्रेजों ने भारत को लूट-लूटकर सारा माल अपने यहां भेजना शुरू कर दिया. किसानी ही ज्यादा होती थी यहां, तो उन लोगों ने टैक्स और बढ़ा दिया. देशवासियों को समझ ही नहीं आ रहा था कि हो क्या रहा है. कोई बताने वाला भी नहीं था. भारत के लोगों के बारे में कहा जाता था कि कोई नृप होउ, हमें का हानी. पर यहां हानि ही हानि ही हो रही थी.
पाइका विद्रोह. (फोटो: ओडिशा बाइट्स)
1803 में अंग्रेजों ने मराठा सेना को हराकर ओडिशा पर कब्ज़ा कर लिया. ओडिशा में पैसे का सबसे बड़ा केंद्र पुरी का जगन्नाथ मंदिर था, जो तत्कालीन राजा मुकुंददेव द्वितीय के अधिकार में था. अंग्रेजों ने सबसे पहले यही छीना. मुकुंददेव की उम्र भी कम थी. इनके संरक्षक थे राजगुरु. वो भड़क गए. तो अंग्रेजों ने उनको बीच चौराहे पर फांसी दे दी. ब्रिटिश शासन का यही मानना था कि तलवार के दम पर भारत को हजार साल तक भी गुलाम रखा जा सकता है. बीच चौराहे पर फांसी से खेतिहर जनता डर जाएगी. इस खेतिहर जनता को ही पाइका कहा जाता था.
ऐसा नहीं हुआ. भारत को भारत वाले नहीं समझ सकते तो, वो लोग क्या समझेंगे.
कौन हैं पाइका?
भुवनेश्वर के पास ही खुर्दा है. वहां के खेतिहर सैनिक थे. जो लड़ाई होने पर लड़ते थे और बाकी टाइम में खेती करते, कानून व्यवस्था में मदद करते. राजा भी उनकी मदद करते रहते. पर ब्रिटिश शासन ने ये मदद का सिस्टम ही खत्म कर दिया. इसके साथ ही किसानों पर लगान भी बढ़ा दिया. ओडिशा तटीय राज्य है. तो लोग नमक खुद ही बना लेते थे. इसे भी बंद कर दिया गया. कहा गया कि खरीद के खाइए. नहीं तो मत खाइए.
इस पूरे प्रपंच में सब्र का बांध तब टूटा जब पाइकों के सरदार बख्शी जगबंधु की जागीर छीन ली गई और उनको रोड पर ला दिया गया. जगबंधु राजा के सेनापति भी थे. इनके नेतृत्व में किसानों ने जंग छेड़ दी. इस लड़ाई में खुर्दा के सैनिकों के अलावा पुरी, कटक और क्योंझर के भी सैनिक शामिल हो गए.
तब लंका लग गई थी अंग्रेज़ों की
1817 में खुर्दा की लड़ाई में अंग्रेजों की बड़ी हार हुई. भागना पड़ा. सैकड़ों अंग्रेज मारे गए. उनका खजाना लूटा गया. उनके सरकारी भवन पर कब्ज़ा कर लिया गया, हालांकि पता नहीं था कि उस भवन को हथियाने के बाद क्या करेंगे. टेबल कुर्सी पर कौन बैठेगा और क्यों. पर गुस्सा था, तो था. इस लड़ाई में आदिवासी कंध संप्रदाय के लोग भी शामिल थे.
पर बाद में ब्रिटिश सेना बढ़-चढ़ के आ गई. ये काम ब्रिटिश हमेशा करते थे. पहले दस लोगों को ले के जाएंगे. लड़ेंगे, हारेंगे. फिर हजारों को ले के आ जाएंगे. यार हार गये, तो हार गये. जाओ. लेकिन नहीं. आए और इस बार भयानक लड़ाई हुई. ब्रिटिश हथियारों के सामने खेतिहर सैनिक नहीं टिक पाए. सैकड़ों लोगों को मारा गया. फांसी दी गई. राज्य से ही भगा दिया गया. बख्शी जगबंधु को कटक में जेल हुई. वहीं उनकी मौत भी हो गई. ये लड़ाई छिटपुट रूप में दस साल तक चलती रही. पर अंत में अंग्रेज जीत गए.

प्रधानमंत्री मोदी पाइका विद्रोहियों के वंशजों से मिले थे.
अब क्या हो रहा है?
ओडिशा के लोग इस लड़ाई को भारत का पहला गदर मनवाने के लिए बड़ी कोशिश करते हैं. पर इतिहासकारों में इसको लेकर बड़ा मतभेद है. कहते हैं कि ऐसी लड़ाइयां कई राज्यों में हुई थीं. पर प्रधानमंत्री मोदी इतिहासकारों की बात को ज्यादा गंभीरता से नहीं लेते. लेना भी नहीं चाहिए. लोग लड़े तो थे ही, पहला दूसरा क्या होता है. किताब लिखने के लिए थोड़ी लड़े थे. 2016 में प्रधानमंत्री पाइका विद्रोहियों के वंशजों से मिले भी थे. कहा कि शहीदों के घरवालों से मिल के सम्मानित महसूस कर रहा हूं. ये सम्मान आने वाले चुनाव में भी दिखेगा. भाजपा बहुत तेजी से ओडिशा में बढ़ रही है. वहीं के धर्मेंद्र प्रधान पीएम की कैबिनेट में भी हैं. बड़े नेता है. तो आने वाला वक्त बड़ा ही रोचक होने वाला है.ये लेख ऋषभ ने 'दी लल्लनटॉप' के लिए लिखा है.
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