ब्रिटेन में एक कांसे की मूर्ति लगी है, जिसके बारे में कहा जाता है कि ब्रिटेन में लगी ये मूर्ति किसी मुस्लिम या एशियाई महिला की पहली मूर्ति है. मूर्ति है नूर इनायत खान की. द्वितीय विश्वयुद्ध के दौर की सबसे बहादुर औरतों में से एक. टीपू सुल्तान की खानदानी शहज़ादी. नूर को हिटलर के खिलाफ जासूसी करने के लिए जाना जाता है.
नूर : हिटलर की जासूसी करने वाली टीपू सुल्तान की शहज़ादी
नूर ने कप के नीचे अपना नाम खोद कर ब्रिटेन तक संदेश भेज दिया कि वो अभी ज़िंदा हैं.

फोटो - thelallantop
नूर की मां अमीना बेगम, टीपू सुल्तान के खानदान से थीं और वालिद हज़रत इनायत खां यूरोप में सूफी संगीतकार थे. 1914 में पैदा हुई नूर 6 साल की उम्र में परिवार के साथ पेरिस में रहने चली गईं. नूर की फ्रेंच लैंग्वेज बहुत अच्छी थी. 1939 में नूर की जातक कथाओं की किताब लंदन में छपी. 1940 में फ्रांस में जर्मनी की हुकूमत चलने लगी तो खानदान लंदन में रहने चला गया.
1943 में नूर को SEO (स्पेशल ऑपरेशन एक्ज़िक्यूटिव) के फ्रेंच सेक्शन के लिए नर्स के तौर पर जासूसी करने के लिए चुना गया. नाम मिला नोरा बेकर. उनकी ट्रेनिंग पूरी होने से पहले ही ब्रिटिशर्स के पास जासूसों की कमी हो गई. नूर की ट्रेनिंग अधूरी थी, मगर उनकी फ्रेंच पर पकड़ और वायरलेस चलाने की महारत दो ऐसी चीज़ें थी जिसकी वजह से नूर बाकी जासूसों से ज़्यादा काम की थीं. नूर अधूरी ट्रेनिंग के साथ ही पेरिस गईं.

नूर का पासपोर्ट
पेरिस पहुंचने के अगले महीने ही जर्मन्स ने वायरलेस ऑपरेटर्स के पूरे नेटवर्क को पकड़ लिया और नूर नाज़ी शासन वाले फ्रांस में अकेली वायरलेस ऑपरेटर रह गईं. ब्रिटेन ने उनसे वापस आने को कहा मगर नूर ने मना कर दिया. एक-एक करके ब्रिटेन का पूरा जासूसी नेटवर्क गिरफ्तार हो गया. नूर का हुलिया भी जर्मन्स के पास पहुंच गया. मगर नूर अकेली ही मैसेज भेजती रहीं. एक जगह से अगर 20 मिनट तक ट्रांसमिशन होता तो भेजनेवाले की लोकेशन पता चल जाती. नूर पार्क और ट्राम जैसी जगहों से लोकेशन बदल-बदल कर संदेश भेजती रहतीं.
अक्टूबर 1943 में नूर को पकड़ लिया गया. गिल्बर्ट कोडनेम वाले एक डबल एजेंट ने नूर की मुखबिरी की. इसके पीछे कुछ कहानियां रिश्वत को वजह बताती हैं तो कुछ का इशारा प्रेम त्रिकोण की तरफ भी होता है. नूर को गिरफ्तार करने के बाद एक महीने तक पूछताछ होती रही. इस दौरान उन्हें टॉर्चर करने के कोई सबूत नहीं मिलते हैं. नूर ने कोई जानकारी नहीं दी मगर उनकी डायरी जर्मन्स के हाथ लग गई. इसके चलते तीन और एजेंट पकड़े गए. साथ ही नूर के कोड संदेशों की नकल करके फर्जी संदेश लंदन भेजे जाने लगे. कुछ दिन तक ऊहापोह की स्थिति रही फिर ब्रिटेन ने मान लिया कि नूर की हत्या हो चुकी है.

अलग-अलग भेस में नूर
रिकॉर्ड कहते हैं कि नूर बेहद ज़िद्दी थीं. 25 नवंबर को अपने साथ दो और एजेंट्स को लेकर भाग निकलीं मगर पकड़ी गईं. साथ ही साफ कर दिया कि मौका मिलने पर दुबारा भागेंगी. नूर को जर्मनी भेज दिया गया. वहां बेहद खतरनाक कैदी करार देते हुए 10 महीनों तक हथकड़ी और बेड़ी लगाकर सबसे अलग एक कोठरी में रखा गया. जंग खत्म होने के बाद जेलर ने बताया कि नूर सबसे परेशान करने वाले कैदियों में से एक थी. पूरे दिन खामोश रहती, कोई भी इन्फॉर्मेशन कभी नहीं दी बस रात में रोती. तमाम बंदिशों के बाद भी नूर ने कप के नीचे अपना नाम खोद कर ब्रिटेन तक संदेश भेज दिया कि वो अभी ज़िंदा हैं.

नूर की लंदन में लगी मूर्ति
सितंबर 1944 में नूर को डाउशे कसंट्रेशन कैंप में ले जाया गया, जहां 13 तारीख को उन्हें गोली मार दी गई. मारने से पहले नूर को बुरी तरह पीटा गया. नूर के मुंह से निकला आखिरी लफ्ज़ था लिबरेटे जिसका फ्रेंच में मतलब होता है आज़ादी.
नूर को मरणोपरांत जॉर्ज क्रॉस मिला जो गैर सैनिकों के लिए बहादुरी का सबसे बड़ा सम्मान होता है. बाद में नूर पर कई किताबें लिखी गईं, डॉक्युमेंट्री बनीं, स्टैम्प जारी किया गया. नूर पर बायोपिक भी बनी है उसका ट्रेलर देखिए.
https://www.youtube.com/watch?v=X2nM12xbAUM
1943 में नूर को SEO (स्पेशल ऑपरेशन एक्ज़िक्यूटिव) के फ्रेंच सेक्शन के लिए नर्स के तौर पर जासूसी करने के लिए चुना गया. नाम मिला नोरा बेकर. उनकी ट्रेनिंग पूरी होने से पहले ही ब्रिटिशर्स के पास जासूसों की कमी हो गई. नूर की ट्रेनिंग अधूरी थी, मगर उनकी फ्रेंच पर पकड़ और वायरलेस चलाने की महारत दो ऐसी चीज़ें थी जिसकी वजह से नूर बाकी जासूसों से ज़्यादा काम की थीं. नूर अधूरी ट्रेनिंग के साथ ही पेरिस गईं.

नूर का पासपोर्ट
पेरिस पहुंचने के अगले महीने ही जर्मन्स ने वायरलेस ऑपरेटर्स के पूरे नेटवर्क को पकड़ लिया और नूर नाज़ी शासन वाले फ्रांस में अकेली वायरलेस ऑपरेटर रह गईं. ब्रिटेन ने उनसे वापस आने को कहा मगर नूर ने मना कर दिया. एक-एक करके ब्रिटेन का पूरा जासूसी नेटवर्क गिरफ्तार हो गया. नूर का हुलिया भी जर्मन्स के पास पहुंच गया. मगर नूर अकेली ही मैसेज भेजती रहीं. एक जगह से अगर 20 मिनट तक ट्रांसमिशन होता तो भेजनेवाले की लोकेशन पता चल जाती. नूर पार्क और ट्राम जैसी जगहों से लोकेशन बदल-बदल कर संदेश भेजती रहतीं.
अक्टूबर 1943 में नूर को पकड़ लिया गया. गिल्बर्ट कोडनेम वाले एक डबल एजेंट ने नूर की मुखबिरी की. इसके पीछे कुछ कहानियां रिश्वत को वजह बताती हैं तो कुछ का इशारा प्रेम त्रिकोण की तरफ भी होता है. नूर को गिरफ्तार करने के बाद एक महीने तक पूछताछ होती रही. इस दौरान उन्हें टॉर्चर करने के कोई सबूत नहीं मिलते हैं. नूर ने कोई जानकारी नहीं दी मगर उनकी डायरी जर्मन्स के हाथ लग गई. इसके चलते तीन और एजेंट पकड़े गए. साथ ही नूर के कोड संदेशों की नकल करके फर्जी संदेश लंदन भेजे जाने लगे. कुछ दिन तक ऊहापोह की स्थिति रही फिर ब्रिटेन ने मान लिया कि नूर की हत्या हो चुकी है.

अलग-अलग भेस में नूर
रिकॉर्ड कहते हैं कि नूर बेहद ज़िद्दी थीं. 25 नवंबर को अपने साथ दो और एजेंट्स को लेकर भाग निकलीं मगर पकड़ी गईं. साथ ही साफ कर दिया कि मौका मिलने पर दुबारा भागेंगी. नूर को जर्मनी भेज दिया गया. वहां बेहद खतरनाक कैदी करार देते हुए 10 महीनों तक हथकड़ी और बेड़ी लगाकर सबसे अलग एक कोठरी में रखा गया. जंग खत्म होने के बाद जेलर ने बताया कि नूर सबसे परेशान करने वाले कैदियों में से एक थी. पूरे दिन खामोश रहती, कोई भी इन्फॉर्मेशन कभी नहीं दी बस रात में रोती. तमाम बंदिशों के बाद भी नूर ने कप के नीचे अपना नाम खोद कर ब्रिटेन तक संदेश भेज दिया कि वो अभी ज़िंदा हैं.

नूर की लंदन में लगी मूर्ति
सितंबर 1944 में नूर को डाउशे कसंट्रेशन कैंप में ले जाया गया, जहां 13 तारीख को उन्हें गोली मार दी गई. मारने से पहले नूर को बुरी तरह पीटा गया. नूर के मुंह से निकला आखिरी लफ्ज़ था लिबरेटे जिसका फ्रेंच में मतलब होता है आज़ादी.
नूर को मरणोपरांत जॉर्ज क्रॉस मिला जो गैर सैनिकों के लिए बहादुरी का सबसे बड़ा सम्मान होता है. बाद में नूर पर कई किताबें लिखी गईं, डॉक्युमेंट्री बनीं, स्टैम्प जारी किया गया. नूर पर बायोपिक भी बनी है उसका ट्रेलर देखिए.
https://www.youtube.com/watch?v=X2nM12xbAUM