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क्या है 'पिंक स्लिप' जो नीरव मोदी बांट रहे हैं, और जिनको मिल रही है वो दुखी हैं

यदि आप कहीं जॉब करते हैं तो भविष्य में आपको भी मिल सकती है.

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नीरव मोदी ने भारत के अपने कर्मचारियों से कहा है कि – ‘चूंकि हम ऑलमोस्ट बर्बाद हो चुके हैं और चूंकि भविष्य अनिश्चित है इसलिए हम आपको सैलरी नहीं दे पाएंगे, आप लोग अपने लिए विकल्प तलाशना (यानी जॉब ढूंढना) बंद कर दें.’
इस तरह का कोई ‘इंटरनल ई मेल’* कभी किसी आर्गेनाइजेशन के बाहर नहीं जाता. और चले भी जाए तो किसी कोई कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि ‘फलां’ कंपनी किसको जॉब में रख रही है किसको निकाल रही है.
लेकिन जब ‘फलां’ कंपनी ने करोड़ों अरबों का घोटाला किया हो, या फलां कंपनी एक साथ कई एम्प्लाइज को एक साथ निकाल रही हो तो खबर बनना तय है.
बहरहाल जिस दौरान ये खबर बन रही थी, तब हमने सोचा कि आपको जॉब से निकाले जाने वक्त की एक प्रक्रिया के बारे में समझाया जाए – पिंक स्लिप.
*इंटरनल ईमेल – किसी कंपनी के कर्मचारियों के बीच के कम्युनिकेशन को इंटरनल कम्युनिकेशन कहते हैं. और यदि ये कम्युनिकेशन ईमेल के माध्यम से हो तो उसे इंटरनल ईमेल कहते हैं.


# पिंक स्लिप
पिंक स्लिप की डेफिनेशन सिंपल है. ये दरअसल एक कंपनी द्वारा एक कर्मचारी को दिया गया बर्खास्तगी का नोटिस होता है. या यूं कहें कि बर्खास्तगी के नोटिस को अन-ऑफिसियली ‘पिंक स्लिप’ भी कहा जाता है.
होने को ‘पिंक स्लिप’ कोई ऑफिसियल शब्द नहीं है, लेकिन अख़बारों से लेकर आम बातचीत में भी ये बहुत यूज़ किया जाता है.
अमेरिका में बड़ा फेमस(कुख्यात) है पिंक स्लिप. एक मीम जिसमें प्रेजिडेंट को पिक स्लिप दे रहे हैं सोशल मिडिया के लोग
अमेरिका में बड़ा फेमस(कुख्यात) है पिंक स्लिप. एक मीम जिसमें प्रेजिडेंट को पिक स्लिप दे रहे हैं सोशल मिडिया के लोग

पिंक स्लिप वैसे तो एक ‘संज्ञा’ है लेकिन इसे क्रिया की तरह भी यूज़ किया जाता है – ‘भाई कोई जॉब दिलवा न, मैं अपनी पिछली कंपनी द्वारा ‘पिंक स्लिप्ड’ हो गया.’
‘फोर्ड’ हर दिन अपने कर्मचारियों को एक स्लिप दिया करती थी, उनके आज के कार्य के आधार पर. यदि उस स्लिप का रंग सफ़ेद हुआ तो कर्मचारी कल (आने वाले) भी काम पर आ सकते थे, लेकिन यदि स्लिप का रंग पिंक यानी गुलाबी हुआ तो उनकी सर्विसेस समाप्त! तभी से बर्खास्तगी के लैटर या पूरी प्रक्रिया को ‘पिंक स्लिप’ कह दिया जाता है.
लेकिन रुकिए! ये कहानी पहले कुछ लोगों को सच लगी, मगर धीरे धीरे पता चला कि उस दौर में जब व्हाट्सएप नहीं होते थे तब भी ‘फ़ेक न्यूज़’ सर्वाइव करती थी.
कहने का मतलब ये कि ‘पिंक स्लिप’ का नाम पिंक स्लिप कैसे पड़ा और क्यूं पड़ा इसके ऊपर निश्चित तौर पर कोई कुछ नहीं जानता. इस शब्द का सबसे पुराना रेफरेंस ढूंढा जाए तो वो 1915 में मिलता है. दिलचस्प बात ये है कि जर्मनी में सेवा समाप्ति के नोटिस नीले और फ्रांस में पीले रंग के साथ जुड़े हुए हैं.
तो मित्रों ये ‘पिंक स्लिप’ ऐसी चीज़ है जिसे मिलने पर ‘पिंक’ फील नहीं आती.



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