मुंबई में रहने वाली निधि गोयल, जेंडर और डिसेबिलिटी राइट्स की एक एक्टिविस्ट हैं. अब एक्टिविस्ट हैं तो लंबे कुर्ते पहनती होंगी. मोटा चश्मा लगाती होंगी. मोर्चा निकालती होंगी. नारे लगाती होंगी. लेकिन ये ऐसी बिलकुल नहीं हैं. ये एक कॉमेडियन हैं.

निधि चार साल की थीं, तब से ही पेंट किया करती थीं. उनका सपना था पोर्ट्रेट पेंटर बनने का. मगर उनकी आंखें चली गईं. 15 साल की थीं जब रेटिना पिगमेंटोसा नाम की बीमारी ने उन्हें जकड़ लिया. इस जेनेटिक बीमारी से धीरे-धीरे इंसान की आंखों की रोशनी जाती रहती है. ये बीमारी उनसे पहले उनके भाई आशीष को भी 8 साल की उम्र में हो गई थी.
तो निधि ने क्या किया?
कुछ स्पेशल नहीं. वही किया जो हर आम युवा करता है. जो आप सलामत आंखों वाले, इस स्टोरी को पढ़ने वाले लोग करते हैं. निधि ने ढेर सारी पढ़ाई की. हममें से कई लोगों से कहीं ज्यादा. उन्होंने बीकॉम, एमकॉम, डिपलोमा इन ह्यूमन रिसोर्स मैनेजमेंट, मास माडिया में पोस्ट ग्रेजुएशन और लंदन से डेवलेपमेंट स्टडी में मास्टर्स की पढ़ाई की. और बन गईं पत्रकार.

जब निधि फ्रीलांस जर्नलिस्ट के तौर पर काम कर रही थीं, औरतों के ऊपर काफी लिखती थीं. मगर वो संतुष्ट नहीं थी. क्योंकि उन्हें अपने काम से दूसरों की मदद करनी थी. जब उनकी आखों की रोशनी जानी शुरू हुई थी, उन्हें उनकी फैमली से बहुत सपोर्ट मिला था. लेकिन उन्हें ये भी मालूम होता है कि हर व्यक्ति उनकी तरह लकी नहीं है. तो निधि ने ऐसे लोगों की मदद करने की ठानी जिनके पास अपने परिवार वालों का सहारा नहीं होता. जर्नलिज़्म में कुछ साल काम करने के बाद उन्होंने जेंडर डिसएबिलिटी पर काम करने के बारे में सोचा. निधी ने एक वेबसाइट बतौर सह-लेखक जॉइन की.

मगर सीरियस काम करने वाली निधि असल लाइफ में बड़ी फनी थीं. वो आस पास हों, तो लोग हंसते ही रहते थे. निधी जब लोगों को अपने और दूसरे 'डिसएबल्ड' फ्रेंड्स की जिंदगी के किस्से-कहानियां सुनाती थीं, तो लोग हंस पड़ते थे. एक दिन एक सीनियर एक्टिविस्ट ने उनसे कहा,
'तुम वैसे भी हंसाती रहती हो. तुम कॉमेडी करो.' यूं तो निधि कई तरीकों से लोगों से जुड़ीं-- कॉमेडी, ट्रेनिंग, कैंपेन, एडवोकेसी, लेखन. लेकिन कॉमेडी से उन्हें सब्जे ज्यादा जाना गया. अब वो कहती हैं कि उन्हें अपने एक्टिविज़म से समाज में जेंडर को लेकर हो रहे भेदभाव और दिव्यांगों के साथ हो रहे अत्याचार को हटाना है.

जब निधी इस फील्ड में आ रही थीं, कई लोग उन्हें पीछे खींचने के लिए खड़े थे. एक सीनियर ने कहा, 'इस फील्ड में मत घुसो, नहीं तो लोग कहेंगे तुम कुछ नहीं कर सकतीं. इसलिए एनजीओ के साथ मिल कर दिव्यांगों के लिए काम करो.' दूसरे ने कहा, ' ओह! तुम्हारी शादी नहीं हुई है, तो तुम्हें अपने सैक्शुअल राइट्स पर किए गए कामों के ज़रिए कोई लड़का ढूंढना.' एक ने तो अति कर दी. कहा- 'तुम सेक्स के अलावा किसी चीज़ के बारे में बात ही नहीं करती. सच बताऊं, बड़ी बुरी तरह से हारोगी.' इन सब बेहुदी बातों को निधि ने हमेशा हंसी में उड़ाया. निधी एक किस्सा बताती हैं:
लोग बड़े पोलाइट होते हैं. कभी लोग आकर ये नहीं पूछते कि आपको कोई डिसेबिलिटी है क्या? लोग पूछते हैं -डू यू हेव अ प्रॉब्लम( क्या आपको कोई परेशानी है)? जिस पर मैं उनसे पूछती हूं: नो, डू यू(नहीं, क्या आपको है)?
निधी खुद भी यही मानती हैं कि उनको कोई प्रॉब्लम नहीं है. ये उनकी पहचान है. जिसे वे स्वीकार कर चुकी हैं. और उसी के साथ अपनी लाइफ जी रही हैं. उनकी वेबसाइट पहली ऐसी वेबसाइट है जो दिव्यांग महिलाओं के यौन जीवन के बारे में बात करती है. इसमें काम करते हुए वो अलग-अलग डिसेबिलिटी, ऐज ग्रुप और सामाजिक-आर्थिक स्थिति वाली महिलाओं से मिलीं. उन कॉमन इशूज़ को जाना जिनसे दिव्यांग महिलाएं गुज़रती हैं. उन लोगों की जिस लेवल तक मदद की जा सकती थी, की. इस वेबसाइट से उन लोगों की मदद हो सकती है, जिनमें अपनी डिसेबिलिटी के कारण कुछ सैक्शुअल कॉम्प्लिकेशन आ जाते हैं.

निधि बताती हैं:
'तुम्हारी ज़िंदगी में क्या दिक्कत है? तुम तो पहले से ही ब्लाइंड हो, बाकी सब तो सही ही है.'- लोगों ने वाकई ऐसे सवाल मुझसे पूछे हैं. ऐसे लोगों ने, जो सिर्फ इसलिए रो जाते हैं कि वो मोटे हो रहे हैं, या उनका तीसरा बॉयफ्रेंड भी उन्हें छोड़ कर भाग गया.
15 साल की उम्र में जब निधी को रेटिना पिगमेंटोसा हुआ, उसके बाद से ही उन्हें धीरे-धीरे ये एहसास हुआ कि वो उन चीज़ों को लेकर हमेशा उदास नहीं रह सकती जो उनके पास नहीं है. फिर उन्होंने औरतों और लड़कियों की डिसएबिलिटी के बारे में लिखना शुरू किया. वो अपने आपको लकी समझती हैं कि उनको वो करने का मौका मिला जो सबको नहीं मिलता. काम के वक्त निधी को पता चला कि कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो किसी दिव्यांग के साथ मोलेस्टेशन होने पर कहते हैं- 'अरे वो विकलांग है, डेस्पेरेट होगी. उसी ने ही पहला कदम उठाया होगा.'

निधि हंसते-हंसाते ऐसे ही लोगों के खिलाफ लड़ रही हैं. हालांकि वो खुद हजारों दिव्यंगों के लिए प्रेरणा हैं. मगर अपने भाई को अपनी प्रेरणा बताती हैं. उनके भाई, जो खुद दृष्टिहीन हैं, राष्ट्रपति सम्मान पा चुके हैं. उनकी बहन नेहा एक डॉक्टर हैं. https://www.youtube.com/watch?v=9QBF23j0uT4
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