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कानपुर में कुछ सवा सौ लड़के, पिछले छह आठ साल से उसके पीछे पड़े थे

निखिल सचान 'कानपुर की मनोहर कहानियों' की दूसरी किस्त ले आए इस बार 'कानपुर की दिव्या भारती'

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फोटो - thelallantop
निखिल सचान को एक सर्वे में भारत के आठ सबसे प्रभावी लौंडों में एक पाया गया था. ये और बात है कि उस सर्वे में उनका नाम चुनने वालों को उस रोज चावला स्वीट्स कार्नर पर शाम के दो समोसे, छोटी पेप्सी और कालाजाम के पैसे ख़ुद नहीं देने पड़े. निखिल सचान ने आईआईटी निकाला. आईआईएम भी. इन जैसे लड़कों के कारण ही जाने कितने रामबिहारी टेक्निकल कॉलेज में पढ़ने वालों को बाप घर से निकाल देते हैं. हम निखिल सचान को ऐसे जानते हैं कि वो किताबें लिखते हैं. हिंदी की किताबें, जिनके कवर की फोटो को फिल्टर लगाकर इंस्टाग्राम पर डालो तो कोई चूं नहीं करता. निखिल कानपुर के हैं. एक सीरीज लिखी है, जिसमें हचक के कानपुर है. सीरीज का नाम है. कानपुर की मनोहर कहानियां.
Nkhil कानपुर की मनोहर कहानियां  दूसरी किस्त- कानपुर की दिव्या भारती 

विवेक सिंह यादव को कतई अंदाज़ा नहीं था कि उसे शुभ्रा कपूर से प्रेम करना इतना भारी पड़ेगा. 

विवेक सिंह की ग़लती बस इतनी सी थी कि शुभ्रा कपूर बेहद ख़ूबसूरत (कानपुर की भाषा में भौंतेइ मारू) लड़की थी और कानपुर में कुछ सवा सौ लड़के पिछले छह आठ साल से उसके पीछे पड़े हुए थे. शुभ्रा कपूर को कानपुर की दिव्या भारती भी कहा जाता था. क्योकि वो दिव्या भारती की तरह ही आज़ाद ख़याल लड़की थी. कुछ लोग आज़ाद ख़याली को मॉड होना भी कहते थे और कुछ लोग ‘ओपन’ होना. Kanpur Manohar Kahaniyan हमाए कानपुर में मॉड लड़कियों के बारे में तरह-तरह के किस्से होते हैं. जितने मुंह उतनी अफवाहें. शुभ्रा कपूर के चाल-चलन के बारे में जितनी दंतकथाएं चल निकली थीं. उतनी या तो जवाहरलाल नेहरू के चाल-चलन के बारे में थीं या फिर सुभाषचंद्र बोस के गुमनामी बाबा होने के बारे में. ख़ुदा गवाह है कि नवाबगंज के चार-पांच लड़के जो शुभ्रा कपूर के बारे में बिना नागा, सबसे अधिक हैरतअंगेज़ और मनोहर ख़बरें लाते थे, उन्हें आज तक चावला स्वीट्स कार्नर पर शाम के दो समोसे, छोटी पेप्सी और कालाजाम के पैसे ख़ुद नहीं देने पड़े.
शुभ्रा कपूर की निगरानी और निगहबानी ही इन लड़कों का ‘मनरेगा’ था. ये इतने चौकन्ने और जासूसी दिमाग लड़के थे कि किसी भी हरक़त को इस नज़र से देखते थे कि इसका शुभ्रा कपूर के चाल चलन से क्या नाता हो सकता है. वो लौकी या केला खरीदे तो ये चौकस हो जाएं, वो मेडिकल स्टोर के आसपास दिखे तो इनके तन बदन में मीठा-मीठा नशा दौड़ जाए. वो छंगामल की दुकान पे अंडरगारमेंट्स वाले सेक्शन के इधर-उधर दिखाई दे. तो ये ख़ुद को चूंटी काटते फिरें.
विवेक सिंह और शुभ्रा कपूर की सेटिंग कन्फर्म हो जाने के बाद से मार्केट में शुभ्रा कपूर के चाल-चलन के बारे में अफ़वाहों की संख्या में रिकॉर्ड तोड़ उछाल आया था. बेचारे विवेक सिंह को नींद आना बंद हो गई थी. नई अफ़वाह के मुताबिक विवेक सिंह, शुभ्रा कपूर का अकेला आशिक़ नहीं था. शुभ्रा कपूर ने छोटी गोल्ड पीना शुरू कर दिया था. उसके यहां लौकी और केले की खपत बढ़ गई थी. वो लाल लिपस्टिक लगा के, रजत बावेजा के साथ, संगम टाकीज़ में देखी गई थी. विवेक सिंह ने तय कर लिया था कि वो शुभ्रा कपूर से सब रिश्ता-नाता तोड़ लेगा. आजकल ऐसे गुमसुम रहता था जैसे मोहल्ले का ट्रांसफार्मर फेल हो गया हो.
“देखो हम तुम्हारे साथ नहीं रह पाएंगे. हमने तय कर लिया है. माना कि तुम कानपुर की दिव्या भारती हो लेकिन हम गोविंदा नहीं हैं. और न ही हमको अपनी जिंदगी को ‘शोला और शबनम’ बनाना है. हम सीधे साधे आदमी हैं. अधिक से अधिक नवीन निश्चल ही मान लो” “तुम इन लोफड़ लड़कों के चक्कर में हमको ठुकरा रहे हो”, शुभ्रा कपूर रुआंसी हो रही थी. “देखो हम छोटे आदमी हैं. हमाई जिंदगी में सबसे बड़ी खुशी ये होगी कि हम या तो बैंक पी.ओ. निकाल लें या फिर क्लास ‘बी' में कहीं क्लर्क लग जाएं. अब या तो हम यही कर लें या फिर तुम्हाए आशिक़ों से निपटते फिरें. चरस बो दी है सालों ने हमाई ज़िन्दगी में” “तो फिर ठीक है. यदि तुमसे गोविंदा नहीं बना जा रहा, तो हमको ही बिंदु बनना पड़ेगा” “बिंदु बनना पड़ेगा मतलब” ? “जा रहे हैं रजत बावेजा के साथ संगम टाकीज़.” शुभ्रा कपूर ने अपना मास्टर स्ट्रोक खेल दिया था.
वो गुस्से में वहां से उठ के चली गई. उसे पता था कि हमाए कानपुर में लौंडे ये तो बर्दाश्त कर लेते हैं कि उनकी माशूक़ अब उनकी नहीं रही. लेकिन इस ख़याल से उनको हैजा हो जाता है कि उनकी माशूक़ कल को किसी और की हो जाएगी. विवेक सिंह के तन-बदन में चपक के आग लग गई. रोज़ रात रजत बावेजा, विवेक सिंह के सपनों में आने लगा. सपने में शुभ्रा कपूर, लाल पल्सर पे उसके पीछे बैठ कर संगम टाकीज़ जाती थी. फ़िल्म शुरू होने से पहले उसके होठों पर लाल लिपस्टिक होती थी, जो फ़िल्म ख़तम होने के बाद रजत बावेजा के होठों पर ट्रांसफ़र हो गई होती थी. विवेक सिंह उठा. शुभ्रा कपूर को मोटरसाइकिल की बैक सीट पर बिठाया और सीधे चावला स्वीट्स कॉर्नर पर रुका. शुभ्रा कपूर की जासूसी में तैनात चारों लड़के और रजत बावेजा वहीँ खड़े रोज़ाना का समोसा, छोटी पेप्सी और कालाजाम खा रहे थे. जितना बन पड़ा, विवेक सिंह ने पांचों को ख़ूब धुना (कानपुर में इसे ‘हौंकना' कहते हैं). उसे पांचों के होठों पर लिपस्टिक लगी नज़र आ रही थी. उसने उन्हें तब तक हौंका, जब तक उनके होठों से लिपस्टिक की लाली न छूट गई.
“आइंदा से हमसे जादा औरंगजेब न बनना. नहीं वापस से काम पैंतिस कर देंगे तुम्हारा. आई समझ में.” विवेक सिंह ज़ोर से चिल्लाया.
उसने पलटकर शुभ्रा कपूर को देखा. वो मुस्कुरा रही थी. आज वो ख़ुशी-ख़ुशी कह सकती थी कि हां, मैं ही हूं कानपुर की दिव्या भारती क्योंकि मुझे मेरा गोविंदा मिल गया है.
निखिल की कहानियों की दो किताबें आ चुकी हैं. नमक स्वादानुसार और जिंदगी आइस पाइस. इनके अमेजन लिंक नीचे दिए गए हैं. पसंद आए तो जरूर खरीदें. किताबें हैं. काटती नहीं हैं.
    1. Namak Swadanusar
    2. Zindagi Aais Pais

कानपुर की मनोहर कहानियां की पहली किस्त में आपने पढ़ा था. बाप से पिटा, मां से लात खाई, तुमाई चुम्मी के लिए गुटखा छोड़ दें? नहीं पढ़ा तो पढ़िए न्हिंत्तो बहुत पछताएंगे.