बंगाल की खाड़ी का एक तटीय शहर. भारी हुज़ूम उमड़ा हुआ है. जय जगन्नाथ के जयकारे आसमान में गूंज रहे हैं. खींचे जा रहे हैं तीन रथ. ऐसे में एंट्री होती है एक शख्स की. बिखरे हुए बाल. अस्त-व्यस्त कपड़े. अपनी धुन में चूर. तीन में से एक रथ पर चढ़ने की कोशिश करता है. पुजारी न सिर्फ़ उसे धक्का देते हैं, उस पर अपशब्दों की बौछार कर देते हैं. झल्लाया हुआ वो शख्स समंदर की तरफ़ मुड़ता है. और बनाता है रेत के तीन रथ. इसका परिणाम क्या होता है? तीनों असली रथ जाम हो जाते हैं. हाथियों, घोड़ों से खींचने के बावजूद रथ टस से मस नहीं होते. कहते हैं, भगवान जगन्नाथ, अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ आए. और उन रेत के रथों में बैठ गए. ये रथ बनाये थे भक्त बलराम दास ने. इन्हीं के बुलावे पर भगवान को अपनी ही रथ यात्रा रोकने आना पड़ा. क्या है यह किस्सा, जानने के लिए देखें तारीख का ये पूरा एपिसोड.
तारीख: कहानी जगन्नाथ रथ यात्रा की जिनके नाम से पुरी की पहचान है
भगवान जगन्नाथ और उनकी रथ यात्रा पुरी की पहचान के साथ नत्थी है. यहां भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ भगवान लकड़ी की प्रतिमा में जगन्नाथ के रूप में विराजते हैं.
Advertisement
Advertisement
Advertisement