बुधवार, 3 अप्रैल को ताइवान में 7.5 रिक्टर स्केल तीव्रता का भूकंप (Taiwan Earthquake) आया. बीते 25 सालों में सबसे तीव्र. इसके चलते जापान (Japan) में सुनामी के लिए हाई अलर्ट जारी किया गया. अगले दिन गुरुवार, 4 अप्रैल को जापान में 6.3 तीव्रता के भूकंप की खबर आई. जापान में एक हफ्ते में दूसरा भूकंप. इन खबरों के साथ कुछ शब्द और फ्रेज चर्चा में आए: ‘रिंग ऑफ फायर’(pacific ring of fire), प्लेट टेक्टोनिक्स (plate tectonics) और फॉल्ट लाइन (fault line). साथ ही आया एक सवाल, कि जापान के पास के इलाकों में इतने भूकंप क्यों आते हैं? भूकंप और सुनामी का क्या रिश्ता है? और, हमारे देश में किन जगहों में भूकंप का खतरा ज्यादा है?
जापान में बार-बार भूकंप लाने वाले 'रिंग ऑफ फायर' से भारत को कितना खतरा?
Japan दुनिया में सबसे ज्यादा भूकंप झेलने वाले देशों में से एक है. भारत में भी हिमालय के पास के इलाके भूकंप से अछूते नहीं हैं.

भूकंप को सरल शब्दों में धरती का कांपना कह सकते हैं. जैसे चिड़िया के उड़ जाने के बाद डाली कांपती रहती है. अब धरती किस चिड़िया के उड़ने की वजह से कांपती है? इस चिड़िया का नाम है, ‘ऊर्जा’. ऊर्जा, जो धरती के भीतर दो परतों से रिलीज होती है या बाहर निकलती है. ये ऊर्जा लहरों की तरह इन परतों को डोलने पर मजबूर कर देती है. फिर इसके झटके धरती के भीतर से होते हुए धरती की सतह तक पहुंच जाते हैं.
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धरती के भीतर ऐसा क्यों होता है? जिस एनर्जी के रिलीज होने की बात हम कर रहे हैं, वो ‘फॉल्ट’ की वजह से होती है. होता ये है कि धरती के अंदर जो चट्टानें हैं, उनकी दो परतें एक-दूसरे से विपरीत दिशा में रगड़ खाती हैं. जैसे चुटकी बजाते वक्त उंगली और अंगूठा आपस में रगड़ते हैं और जब छूटते हैं, तो एक एनर्जी रिलीज होती है. ऐसा ही कुछ धरती के भीतर की परतों के साथ भी होता है.
रगड़ने की वजह से धरती के भीतर जो एनर्जी रिलीज होती है, वो तरंगों की तरह चारों तरफ फैल जाती है. जिस खास जगह पर ये होता है, उसे भूकंप का ‘फोकस’ कहते हैं. तकनीकी जुबान में हाइपोसेंटर (hypocenter). ये तरंगें धरती की सतह तक पहुंचती हैं और जिस जगह मिलती हैं, उसे भूकंप का केंद्र या एपीसेंटर (epicenter) कहते हैं. ये फोकस के ठीक ऊपर होता है.
इसका एक कारण है, रिंग ऑफ फायर (Pacific Ring of Fire). सुनने में किसी हॉलीवुड फिल्म जैसा लगने वाला ये नाम, असल में एक खास जगह है. उत्तरी अमेरिका, दक्षिणी अमेरिका और आस्ट्रेलिया महाद्वीप तक फैली एक काल्पनिक रेखा, जिसमें कई टेक्टॉनिक प्लेट्स आपस में मिलती हैं.
टेक्टॉनिक प्लेट्स मल्लब क्या? धरती के भीतर की कुछ परतें. ऐसे समझिए: जैसे कोई चीनी मिट्टी की टूटी हुई प्लेट है और टूटने के बाद उसे बस जोड़कर रख दिया जाए. कल्पना कीजिये कि ये टुकड़े आपस में रगड़ खा कर धीरे-धीरे खिसक भी रहे हों. ऐसा ही कुछ धरती के भीतर होता है. धरती के भीतर की कोई परत एक पूरी सकल सतह नहीं है.
अब जिस पॉइंट या एरिया में ऐसे कई जोड़ हैं, उसे ही रिंग ऑफ फायर कहते हैं. इन खास इलाकोंं में ज्वालामुखी भी बहुत ज्यादा हैं, और भूकंप भी बहुत ज्यादा आते हैं. अब जापान को ही ले लीजिए. चार टेक्टॉनिक प्लेट्स के ऊपर बसा है देश. इनमें हलचल की वजह से ही जापान में इतने भूकंप आते हैं. और, कंपन की वजह से जो ऊंची लहरें समुद्र में उठती हैं, उसे सुनामी कहते हैं.

वैसे तो हमारा देश रिंग ऑफ फायर की जद से दूर है. लेकिन भूकंप का खतरा हमारे यहां भी है. कुछ दिन पहले पृथ्वी विज्ञान मंत्री किरेन रिजिजू ने भी लोकसभा में सूचना दी थी कि 2023 में देश में भूकंप की संख्या काफी बढ़ी है. 2022 में हिमालयी इलाकों में 41 भूकंप आए थे, 2023 में 97 आए. दोगुने से भी ज्यादा. उन्होंने बताया कि पश्चिमी नेपाल में अल्मोड़ा फॉल्ट (Almora fault) के सक्रिय होने की वजह से ऐसा हुआ है.
मगर ये कोई नई बात नहीं है. हिमालय के इलाकों में भूकंप का खासा खतरा रहता ही है. साल 1934 में आए बिहार-नेपाल भूकंप की तीव्रता 8.2 थी. इसमें करीब 10,000 लोगों ने अपनी जान गंवा दी थी. उत्तरकाशी में 1991 में 6.8 तीव्रता का भूकंप आया था. इसमें 800 लोगों की मौत हो गई थी. वहीं, 2005 में कश्मीर में भूकंप की वजह से करीब 80,000 लोगों ने अपनी जान गंवाई थी. इसकी तीव्रता 7.6 थी.
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इसके अलावा भी भारत के दूसरे हिस्सों में भूकंप का खतरा है. साल 2001 में गुजरात के भुज में 7.6 तीव्रता का भूकंप आया था. इसमें करीब 20,000 लोगों ने अपनी जान गंवाई थी. साथ ही दिल्ली समेत उत्तर भारत के कई इलाके सेसमिक जोन (seismic zone) IV और V में भी आते हैं. सेसमिक जोन माने किस इलाके में भूकंप का खतरा कितना हो सकता है. भारत को ऐसे चार जोन्स में बांटा गया है, जो हैं जोन 2,3,4, और 5. जोन 5 में भूकंप का खतरा सबसे ज्यादा हो सकता है.
हिमालयी इलाकों में भूकंप का खतरों क्यों?दरअसल, भारत जिस टेक्टानिक प्लेट के ऊपर है, वो भी धीरे-धीरे ऊपर की तरफ खिसक रही है. ये है इंडियन प्लेट, जो यूरेशियन प्लेट में हिमालय के पास के हिलाके में धंस रही है. धीरे-धीरे ऊपर की ओर बढ़ भी रही है. यही वजह है कि माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई आज भी बढ़ रही है. भले महज कुछ सेंटीमीटर की स्पीड से. इसी मूवमेंट की वजह से इन इलाकों में भूकंप का खतरा भी बना रहता है.
क्या हम भूकंप को रोकने के लिए कुछ कर सकते हैं? नहीं. भूकंप को रोक नहीं सकते. लेकिन हम-आप खतरों की पहचान कर सकते हैं, सुरक्षित संरचनाएं बना सकते हैं और लोगों को भूकंप सुरक्षा के बारे में सिखा-पढ़ा सकते हैं.
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