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बधाई हो! 2020 आ गया, अब कुछ घंटों में इंडिया सुपरपावर बन जाएगा

हे शुभारंभ, हो शुभारंभ, मंगल बेला आई.

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जिस साल भारत के सुपरपावर बन्ने की उम्मीदें लगा रखी थीं लोगों ने, वो साल आ गया है. लेकिन सुपरपावर वाला टैग किधर है? (तस्वीर: ट्विटर)
डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम. भारत के ‘मिसाइल मैन’. 2002 से 2007 तक भारत के राष्ट्रपति. बच्चों में बड़े लोकप्रिय थे. एक जगह टॉक देने गए. वहां टॉक के बाद एक दस साल की बच्ची उनके पास आई. डॉक्टर कलाम ने उनसे पूछा, तुम क्या चाहती हो. तुम्हारा एम्बिशन क्या है. लड़की ने कहा,
मैं एक विकसित भारत में रहना चाहती हूं.
उसी दस साल की बच्ची को डेडीकेट करते हुए डॉक्टर कलाम ने किताब लिखी. इंडिया 2020. बात है 1998 की. उस समय 2020 आने में 22 साल बचे थे. और डॉक्टर कलाम की इस किताब में जो फैक्ट और फिगर दिए गए थे, उनकी मानें तो सचमुच भारत में 2020 तक एक सुपरपावर बनने की कूवत थी.
India 2020 वो किताब जिसने नई सदी में भारत के महत्त्व को डिफाइन किया. (तस्वीर: विकिमीडिया)

उसके बाद लगातार इस आइडिया को भुनाया गया. आज से 10 साल पहले तक भी नेताओं ने 2020 का गाजर दिखाकर गधे को दौड़ाया. अब हम 2020 की दहलीज पर खड़े हैं. जिन लोगों ने भी इतने सालों में दावे किए थे कि भारत कहां से कहां पहुंच जाएगा, उन सभी के दावों की पोल खोली जा रही है.
उदाहरण के तौर पर सुब्रमण्यम स्वामी का ये ट्वीट.
Swami Tweet New इस ट्वीट में डॉक्टर सुब्रमण्यम लिखते हैं, अगली दीपावली हम देशभक्तों के पास उत्सव मनाने के लिए बहुत कुछ होगा. 2020 तक भारत चीन से आगे निकल जाएगा और आर्थिक स्तर पर अमेरिका को चुनौती देने के लिए तैयार हो जाएगा. ये ट्वीट 2012 में किया गया था. (तस्वीर: ट्विटर)

या फिर प्रीति गांधी का ये ट्वीट:
Priti Tweet New 2012 में ही प्रीति गांधी ने ये ट्वीट किया. इसमें वो कहती हैं नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत एक सुपरपॉवर होगा(तस्वीर: ट्विटर)

वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक ‘cure-all’ के रूप में पेश करने वाले ये ट्वीट आठ साल बाद फिर से घूम रहे हैं. लोग सवाल पूछ रहे हैं. इन पर मीम्स की बाढ़ भी आ गई है. भारत के 2020 में सुपरपावर बनने की बात सिर्फ राजनीति का हिस्सा नहीं रही. स्कूल जाने वाले बच्चों तक की कल्पना उड़ान लेती थी इस विषय पर. परीक्षाओं में इस पर निबंध लिखने को देते थे. हम छोटे थे तब तो होता था. अब ना होता हो शायद.
सुपरपावर के पीछे की कहानी
राजनीति में सुपरपावर की परिभाषा के अनुसार:
कोई भी देश या नेशन स्टेट तब सुपरपावर कहा जा सकता है जब उसके भीतर वैश्विक स्तर पर प्रभाव डालने की क्षमता हो. ये प्रभाव कई फैक्टर्स से मिलजुलकर बनता है. राजनीतिक, आर्थिक, सैन्य, सांस्कृतिक. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका और सोवियत संघ दो केंद्र बने शक्ति के. पूरे विश्व को इन्होंने प्रभावित किया. सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिका इकलौती सुपरपावर रह गया. इसे हेजेमनी कहा गया. यानी एकछत्र साम्राज्य. इसे चुनौती दी चीन ने. भारत की भी बात छिड़ी. कि चीन के अलावा दक्षिण एशिया में अगर कोई ऐसा देश था, जो तरक्की में सबको पीछे छोड़ सकता था, तो वो भारत था.
भारत की जनसंख्या काफी थी. उसके भी एक बड़े हिस्से की उम्र कम थी. संसाधनों की कमी नहीं थी. आस-पास के देशों के साथ रिश्ते भी अच्छे थे, अगर पाकिस्तान को छोड़ दिया जाए तो. नेपाल और श्रीलंका के साथ चंद असहमतियां भले हों, लेकिन भारत के नेतृत्व से उन्हें कोई दिक्कत नहीं थी. सब कुछ भारत के फेवर में दिखाई दे रहा था. दुनिया में मल्टीपल सेंटर्स ऑफ पावर के उभरने की दास्तान शुरू हो चुकी थी. भारत उनमें आगे की कतार में खडा था. दक्षिण एशिया के एक महत्वपूर्ण लीडर के तौर पर. तब ऐसा नैरेटिव बनाया गया कि UPA सरकार ही भारत के विकास और सुपरपावर बनने के बीच रोड़ा बनकर खड़ी है.
ये ऑप्शन दिखाया गया कि जिस तरह गुजरात के विकास मॉडल पर उसके दिन बहुरे, वैसे ही सबके दिन बहुरेंगे. बस एक बार मोदी सरकार सत्ता में आ जाए. कांग्रेस बैकफुट पर आई और जनता ने मुकुट मोदी के सिर धर दिया. कहा, ले चलो हमें 2020 की ओर.
मोदी जी ने कहा, विकास आ रहा है. लोग खुश हो गए. मोदी जी ने कहा, अच्छे दिन आयेंगे. लोग दीदे फाड़ एकटक देखने में लग गए. उम्मीद अच्छी चीज है. इंसान को ज़िंदा रखती है. 2020 देहरी पर खड़ा है. खटखटा रहा है दरवाजा.
भित्तर चलल जाओ तब न मालूम चली केतना बड़का सुपरपावर हो गईलन हमार बुचवा. घर मा एसी लग गईल बा. पुताई भईल बा. जरूरे भीतर सब चकाचक होई.
अंदर से आवाज़ आती है, कृपया पीली रेखा से दूर हटकर खड़े हों. 2020 इधर उधर देखता है. पीली रेखा कहीं नहीं है. मुस्कुराता है. बुदबुदाता है, ‘सब चंगा सी’, और निकल जाता है.


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