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बिजली और प्रदूषण से जुड़े वो एक्ट और अध्यादेश, जिनसे किसानों को कम दिक्कत नहीं है

किसान सिर्फ़ कृषि सुधार क़ानूनों को लेकर आंदोलन नहीं कर रहे हैं.

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नए कृषि कानूनों के खिलाफ 'दिल्ली चलो' मार्च के दौरान सिंघू बॉर्डर को पार करने के प्रयास में एक सुरक्षाकर्मी और एक किसान की झड़प. शुक्रवार, 27 नवंबर, 2020. (पीटीआई/रवि चौधरी)
पंजाब से शुरू हुआ किसान आंदोलन जब दिल्ली पहुंचा, तब हर कोई समझ गया कि किसानों की नाराज़गी की असली वजह है इस साल संसद द्वारा 20 सितम्बर, 2020 को पारित किए गए तीन कृषि सुधार क़ानून. और ये तीन कानून हैं-
# The Farmers produce trade and commerce(Promotion and facilitation) Act, 2020
# The Farmers(empowerment and protection) agreement on price assurance and farm services act, 2020.
# The essential commodities(Amendment) Act, 2020
इन तीनों क़ानूनों के बारे में हम विस्तार से आपको अपनी स्टोरीज़, बुलेटिन और वीडियोज़ में बता चुके हैं. बता रहे हैं. और भविष्य में भी इनसे जुड़ा कोई अपडेट आएगा तो ज़रूर देंगे.
# तो फिर इस स्टोरी में क्या जानेंगे-
1 दिसंबर को सरकार और संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं की जो बैठक हुई थी, उसमें किसानों से लिखित में 3 कानूनों के खिलाफ आपत्तियां मांगी गई थी.
लेकिन, 03 दिसंबर को पता चला कि बात और मांग सिर्फ़ इन तीन क़ानूनों को लेकर ही नहीं हैं. गुरुवार की सुबह किसानों ने 10 पन्नों में अपनी आपत्तियां और मांगें लिखकर कृषि मंत्रालय के सचिव को भेजी. केंद्रीय कृषि मंत्रालय को संबोधित इस लेटर में किसानों ने 3 नहीं 5 कानूनों/बिलों को वापस लेने की सरकार से मांग की है. इस स्टोरी में हम बात करेंगे बाक़ी के दो क़ानूनों की और जानेंगे कि किसानों को इनके किस पॉईंट से आपत्ति है और क्यूं. दरअसल इन दोनों को क़ानून कहना सही नहीं होगा, क्यूंकि एक अभी बिल ही है और एक अध्यादेश.
# इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट) बिल 2020-
एक विधेयक असल में और कुछ नहीं बल्कि प्रस्तावित नए कानून का मसौदा होता है. इसको सरकार द्वारा संसद के दोनों सदनों में पारित कराये जाने और राष्ट्रपति के सिग्नेचर के बाद आधिकारिक कानून की मान्यता प्राप्त हो जाती है. यानी जिन तीन कृषि सुधार क़ानूनों की बात हमने शुरू में की, वो भी 20 सितम्बर, 2020 से पहले बिल (विधेयक) ही थे. और ऐसे ही 'इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट) बिल, 2020' अगर पारित हो गया तो क़ानून बन जाएगा.
'दिल्ली चलो' मार्च के दौरान सिंघू सीमा पर एक अस्थायी अवरोधक पार करवाने में एक महिला की मदद करता हुआ एक किसान. 29 नवंबर, 2020. (पीटीआई/अतुल यादव) 'दिल्ली चलो' मार्च के दौरान सिंघू सीमा पर एक अस्थायी अवरोधक पार करवाने में एक महिला की मदद करता हुआ एक किसान. 29 नवंबर, 2020. (पीटीआई/अतुल यादव)

और अगर किसी एक्ट या बिल के साथअमेंडमेंटलगा हो तो इसका मतलब इसी नाम का एक्ट पहले से अस्तित्व में है, बस उसमें कुछ मॉडिफ़िकेशन किया ज़ा रहा है, उसे भंग करके नया बिल या एक्ट नहीं लाया जा रहा. तोइलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट) बिल’, 2020 भी दरअसलइलेक्ट्रिसिटी एक्ट, 2013’ में किए गए संशोधन हैं.

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# छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता भूपेश बघेल ने जून के महीने में ही केंद्रीय विद्युत राज्य मंत्री R.K. सिंह को लिखे अपने पत्र में कहा था-
प्रस्तावित बिजली (संशोधन) विधेयक 2020 समाज के निचले तबके के लिए हानिकारक है, विधेयक में प्रस्तावित ‘क्रॉस सब्सिडी’ का सुझाव अव्यवाहरिक और किसानो के हितों के खिलाफ है.
# पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह भी इस प्रस्तावित कानून का विरोध करते रहे हैं.
# सितंबर में तेलंगाना की विधानसभा में तो इस बिजली संशोधन विधेयक के खिलाफ एक मत से प्रस्ताव भी पारित कराया जा चुका है.
# दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल भी इस मसले पर किसानों के साथ खड़े दिख रहे हैं.
# राज्य सरकारों, किसानों और राजनेताओं को छोड़ दें तो एक पक्ष और है जो इस विधेयक से प्रभावित होगा और किसानों के साथ ही वे भी इस कानून का विरोध कर रहे हैं. और वो है ऑल इंडिया पावर इंजीनियर फेडरेशन(AIPEF).  

मंत्रालय ने इसी साल अप्रैल में इस बिल का नया मसौदा सार्वजनिक किया था. ‘नया मसौदा’ इसलिए क्यूंकि बीते छह वर्षों में ये इस तरह का चौथा मसौदा था और हर बार इसे किसी न किसी विरोध का सामना करना पड़ा. और अबकी भी ये विवादों से घिर गया है. किसानों की ‘रेड लिस्ट’ में तो ख़ैर ये है ही साथ ही- तो राज्य सरकारें तो इसका विरोध इसलिए कर रही हैं क्यूंकि उनका मानना है कि इस संशोधन से सब्सिडी वग़ैरह को लेकर उनकी स्वायत्ता ख़तरे में है और ये बिल बिजली सप्लाई के मामले में राज्यों के मुक़ाबले केंद्र को और ज़्यादा अधिकार दे देता है. रही बात बिजली सगठनों की तो उनकी दिक्कत वही है जो आम तौर पर किसी भी विभाग के कर्मचारियों को ऐसे बिलों से अतीत में होती है. निजीकरण. इस बिल को DISCOMs के निजीकरण के क्षेत्र में भी एक बड़ा कदम माना जा रहा है.
"attachment_293557" align="aligncenter" width="700""attachment_293560" align="aligncenter" width="700"'एंटी स्मॉग गन' से दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों का कितना की प्रदूषण नियंत्रण हो लेगा? (तस्वीर: पीटीआई/मानवेंद्र वशिष्ठ) 'एंटी स्मॉग गन' से दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों का कितना ही प्रदूषण नियंत्रण हो लेगा? (तस्वीर: पीटीआई/मानवेंद्र वशिष्ठ)


लेकिन फिर भी प्रदूषण तो एक बड़ा मुद्दा है ही. उसका हल कैसे निलकेगा? अधिकांश लोग कहेंगे की पराली से जब इतना ही नुक्सान है तो आखिर सरकार ने गलत क्या किया?
इस सवाल का उत्तर सवाल में ही छिपा है और इसी में छिपी है किसानों की नाराज़गी.
# पहले तो प्रदूषण और पराली जैसे संवेदनशील मसले पर सरकार ने बिना किसान सगठनों से सलाह मशवरा किये ये अध्यादेश उनके सामने ला खड़ा कर दिया. और तो और पूरी कमीशन के गठन में किसी किसान संघ या उसके प्रतिनिधियों के समायोजन का कोई सपष्ट प्रावधान नहीं है. जबकी वाणिज्य, व्यापार, ट्रेड से जुड़ी किसी भी नियामक यानी रेगुलेटरी संस्था में उस क्षेत्र के प्रतिनिधियों को भी सदस्यों के रूप में शामिल किया जाता है. जाता रहा है.
# साथ ही किसान और किसान संगठनों का ये भी कहना है कि ये कमीशन, इसके क़ानून और इसको दिए गए अधिकार भी EPCA से ज़्यादा शक्तिशाली जान पड़ते हैं. इसको लेकर भी किसानों का विरोध है. जैसे: अध्यादेश में प्रदूषण नियंत्रण कानूनों का पालन न करने वाले व्यक्ति के लिए 1 करोड़ तक का जुर्माना या/और 5 बरस तक के कारावास का प्रावधान है.
# इसके अलावा जहां EPCA का कार्यक्षेत्र सिर्फ़ दिल्ली-एनसीआर तक सीमित था, वहीं इस नए कमीशन का एरिया दिल्ली-NCR के अलावा इसके आस पास का इलाक़ा भी होगा.

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