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विराट कोहली का वो किस्सा जो आपके रोयें खड़े कर देगा

ये लड़का यूं ही नहीं बना है सिरमौर.

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ESPN-Cric Info
विराट कोहली की बायोग्राफी आ रही है DRIVEN: The Virat Kohli Story . इसे विजय लोकापल्ली ने लिखा है. The Hindu से जुड़े विजय ने एक लम्बे समय से क्रिकेट पर लिखा है. किताब Bloomsburry पब्लिकेशन से आई है. विराट कोहली के शानदार करियर की इंसानी कहानी है इसमें. इसका एक अंश हम आपको पढ़वा रहे हैं:


 
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विराट कोहली का फर्स्ट क्लास डेब्यू कुछ ख़ास नहीं रहा था. दिल्ली और तमिलनाडु का मैच था. उस मैच में तमिलनाडु की तरफ से बदरीनाथ और मुरली विजय भी खेल रहे थे. दिल्ली की तरफ से शिखर धवन, दहिया और रजत भाटिया ने शतक बनाया था. विराट ने बस 10 रन बनाये. यो महेश की गेंद पर विक्रम मणि ने उनका कैच पकड़ लिया. विक्रम की उंगली टूटी हुयी थी. इसके बावजूद वो खेल रहे थे. शायद ये चीज आने वाले वक़्त की तरफ इशारा कर रही थी. क्योंकि अभी बहुत कुछ होने वाला था.
अगला मैच उत्तर प्रदेश के साथ था. विराट ने 42 रन बनाये. ज्यादा तो नहीं थे, पर अपनी बैटिंग से टीम को इम्प्रेस जरूर कर लिया. वो होता है ना, कि लड़के में कोई बात है. पर अभी खुल के आया नहीं ये सामने.
अगला मैच बड़ौदा के साथ था. ईशांत शर्मा ने 5 विकेट लिये थे. विराट ने 21 रन बनाये थे. पर जैसा कि किसी भी प्रोफेशन में होता है. विराट को कहा जाने लगा कि सिर्फ फेन नहीं, अब माल चाहिए. पोटाश दिखाओ अपना. ऐसे नहीं चलेगा. टीम में जगह बनाने के लिए अब साबित करना पड़ेगा. प्यार-दुलार हो गया. एक पचासा भी नहीं लगा तीन मैचों में.
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अगला मैच रणजी चैंपियन कर्नाटक से था. डोमेस्टिक क्रिकेट में इस टीम का ऑस्ट्रेलिया वाला रुतबा है. कर्नाटक ने 446 रन बनाये जिसमें रोबिन उथप्पा ने 161 बनाये थे. फिर वही हाल हुआ जो ऑस्ट्रेलिया अपने विपक्षियों का करती है. 103 रन पर दिल्ली के 5 विकेट गिर गए थे. विराट 40 रन बनाकर क्रीज़ पर थे. उस दिन का खेल ख़त्म हो गया था. विराट ने मन बना लिया था कि अगले दिन अपने आपको साबित कर देना है. विराट थके हुए थे. सो गए. अगले दिन के लिए तैयार जो होना था.
पर उस रात विराट की दुनिया बदल गई. 19 दिसम्बर 2006 को प्रेम कोहली की डेथ हो गयी. प्रेम विराट के पापा थे. सिर्फ इतना ही नहीं, वो विराट के दोस्त, गाइड और बचपन से ही कंधे पर लेकर घूमने वाले चाणक्य थे. विराट का सब कुछ. विराट को खुद को संभाल पाना मुश्किल हो रहा था. दिल्ली में जाड़े का मौसम बड़ा ही खतरनाक सा होता है. तो वो रात कट नहीं रही थी. पर सबको पता था कि विराट का जिंदगी भर का जुनून कल सामने आने वाला है. फिर जैसा कि परिवार में होता है, तय हुआ कि विराट कल खेलने जायेगा.
विराट ने अपने कोच राज कुमार को फोन किया. उस समय वो ऑस्ट्रेलिया में थे. सुन के स्तब्ध रह गए. विराट के पापा ने एक बार राज कुमार से कहा था कि मैं इसको आपकी केयर में छोड़ता हूं. बड़ी उम्मीद है. राज कुमार को समझ नहीं आ रहा था कि विराट को क्या सलाह दें. क्योंकि बात सिर्फ खेलने की ही नहीं थी. दिल्ली टीम की स्थिति खराब थी. और ग्राउंड में उतरने के बाद सिर्फ खेल देखा जाता है. ये नहीं देखा जाता कि आपकी जिंदगी में कौन सा खेल चल रहा है. राज कुमार ने फोन काट दिया. कहा बाद में बताता हूं. अपने दिल में तय किया. उनको पता था कि उनका लौंडा किस काबिल है. फिर फोन किया. कहा जाओ, खेलो. टीम को तुम्हारी जरूरत है.
विराट ने अपने पापा को याद किया और ग्राउंड पहुंच गए. खेलने. मिथुन मन्हास दिल्ली टीम के कप्तान थे. चिंतित थे कि कर्नाटक की लीड बहुत है. उतना तक तो नहीं पहुंच पाएंगे. इसी उधेड़बुन में वो सुबह-सुबह निर्धारित समय से 15 मिनट पहले ड्रेसिंग रूम में पहुंच गए. वहां विराट बैठे हुए थे. बेंच पर. सिर को हाथ से पकड़े हुए.

मिथुन ने पूछा: क्या हुआ बेटा? विराट ने कहा: मेरे पापा नहीं रहे.

मन्हास को कुछ समझ नहीं आया कि क्या कहें. कॉरिडोर में सिर्फ यही दो लोग थे. मन्हास ने इधर-उधर नज़र घुमाई. कोई नहीं मिला जिससे कहते कि बच्चे को कुछ समझाया जाये. ये मौके आसान नहीं होते. जिंदगी के हर धर्म-कर्म निल हो जाते हैं इस वक़्त. मन्हास ने हिम्मत जुटाकर कहा: बेटा, तुम घर जाओ. पर विराट का जवाब आया: नहीं, मुझे खेलना है. घर से इसीलिए मुझे भेजा गया है. घर पर तो अभी बड़ा ही अजीब सा माहौल है. मन्हास एकदम शॉक में रह गए. पर विराट की लगन देखकर हैरान थे.
कुछ और मिनट गुजरे. ड्रेसिंग रूम भरने लगा. अंपायर भी आ गए. पर खेलने से पहले सबको पता चल गया था कि विराट के साथ क्या हुआ है.
जब विराट क्रीज़ पर स्ट्राइक लेने पहुंचे तो ग्राउंड में मौजूद लोग बड़ी मुश्किल से अपने आंसू रोक पाए. दूसरे छोर के बैट्समैन बिष्ट ने भी विराट के साथ ही डेब्यू किया था. वो एकदम चुप थे. बात भी नहीं कर पा रहे थे. कोई क्या करता. विराट जैसा खिलंदड़ लड़का एकदम सीरियस था. जैसे कुछ हुआ ही ना हो. दोनों खेलने लगे. रन बनते गए. कर्नाटक के कोच वेंकटेश प्रसाद विराट का खेल देखकर हैरान थे. उसके सिर पर हाथ फेर जाते. टी-ब्रेक हुआ. कर्नाटक के खिलाड़ी भी विराट से मिलने आये. सबको इस बात से बहुत उत्तेजना थी. किसी ने ऐसा अपने सामने नहीं देखा था. ये तो 17 साल का बच्चा था.
वेंकटेश प्रसाद के लिए ऐसा दूसरा मौका था. 1999 वर्ल्ड कप में सचिन ने यही काम किया था. ज़िम्बाब्वे से टीम हार गई थी. सचिन अपने पापा के फ्यूनरल से वापस आये थे. केन्या के खिलाफ शतक बनाया.
उस मैच में शतक पूरा करने के बाद सचिन
उस मैच में शतक पूरा करने के बाद सचिन
विराट 90 पर थे कि कैच आउट की अपील हुई. उनके बैट ने बॉल को टच नहीं किया था. पर खेल तो खेल होता है. अपील हुई और इशारा हो गया. विराट कुछ देर खड़े रहे क्रीज़ पर और फिर वापस चल पड़े. किसी ने उन्हें बुलाया नहीं. यहां डिसीजन रिव्यू तो होता नहीं था. घर पर विराट खूब रोए थे. ड्रेसिंग रूम में भी रोने का मौका मिला. खूब रोये. फिर चले गए क्रिमेटोरियम. पापा से मिलने.
बिष्ट एक तरफ से विराट को देखते रहे. साथ ही रन भी बनाते रहे. 156 बनाये थे मैच में. शायद ये उनकी विराट के दुःख में भागीदारी थी. पर उस दिन शतकवीर बिष्ट को समझ नहीं आ रहा था कि हंसे या रोयें. पहला शतक था, साथ ही विराट के साथ हुई चीजों ने स्तब्ध कर दिया था. शाम को उनके पास एक फोन आया. सेंचुरी के लिए बधाई. विराट थे दूसरी तरफ.
तीन दिन बाद विराट अपनी टीम के साथ राजकोट गए. सौराष्ट्र के साथ मैच था. दिल्ली पारी से हारी. विराट ने दोनों पारियों में 4 और 35 रन बनाए थे. रणजी का वो सीजन ख़त्म हो गया. पर विराट अपने रास्ते चल पड़े थे. सबको खेल के अलावा विराट की दूसरी साइड का भी पता चल गया था.
U-19 World Cup Win
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