रिच स्क्रेंटा और उनका कोड किया हुआ वायरस.
वायरस की दो किस्में होती है. एक जो इंसान को बीमार करते हैं, और दूसरे जो इंसान के बनाए कंप्यूटर की सेहत खराब करते हैं. आज बात इस दूसरी किस्म की. इस किस्म के पहले नमूने की टू बी प्रिसाइज़.
दुनिया का पहला कंप्यूटर वायरस माना जाता है 1982 में आए 'एल्क क्लोनर' को. ऐसा नहीं था कि इससे पहले भी कई वायरस कोड नहीं किए गए. लेकिन वो अपने असर में बहुत सीमित थे. एल्क क्लोनर ही पहला ऐसा वायरस था, जिसकी चपेट में बड़े पैमाने पर आम लोगों के कंप्यूटर आए. लेकिन ये वायरस आजकल के कंप्यूटर वायरस की तरह आपके कंप्यूटर से डाटा नहीं चुराता था. वो बस थोड़ू सा तंग करता था. एक कविता सुनाकर.
दुनिया का पहला वायरस कहने से लगता है कि इसे बनाने वाला ज़रूर कोई साइबर एक्सपर्ट रहा होगा, जो किसी खूफिया ठिकाने पर बैठकर काम करता होगा. लेकिन जब रिच स्क्रेंटा ने एल्क क्लोनर का कोड लिखा, तब उनकी उम्र महज़ 15 साल थी और वो नवीं जमात में पढ़ते थे. रिच अपने दोस्तों के साथ एक प्रैंक करना चाहते थे. इसी चक्कर में दुनिया के पहले वायरल कंप्यूटर वायरस का जन्म हो गया.
एप्पल - 2. एप्पल 1 की ही तरह ये भी खूब कामयाब हुआ था. (फोटोःविकिपीडिया कॉमन्स)रिच स्क्रैंटा अमरीका के पेंसलवेनिया में पैदा हुए थे, 1967 में. इसके 10 साल बाद स्टीव जॉब्स की शुरू की एप्पल कंप्यूटर कंपनी ने अपना डेस्कटॉप एप्पल - 2 बाज़ार में उतारा. ये बहुत कामयाब रहा. साल 1981 में रिच के माता-पिता ने एक एप्पल - 2 बतौर क्रिसमस गिफ्ट रिच को दिया. उस दौर में लोग लोग आपस में कंप्यूटर गेम और प्रोग्राम खूब शेयर किए करते थे. और यहीं रिच कंप्यूटर प्रोग्रामिंग से खेल कर देते थे. वो किसी को गेम देने से पहले उसके कोड में ऐसे बदलाव कर देते थे कि वो कुछ दफे चलने के बाद शुरू ही न होता. गेम की जगह रिच का लिखा कोई मैसेज स्क्रीन पर आ जाता.
जब सब रिच की बदमाशी को समझ गए, तो उन्होंने रिच से कंप्यूटर गेम का लेनदेन बंद कर दिया. अब रिच ने खुराफात सोची. उन्होंने एक ऐसा कोड लिखा जो अपने-आप कंप्यूटर और फ्लॉपी पर कॉपी हो जाता था. इसे रिच ने अपने स्कूल के कंप्यूटर में कॉपी कर दिया. अब जब भी कोई स्कूल के कंप्यूटर से गेम वगैरह कॉपी करता, उसकी फ्लॉपी में वायरस अपने-आप कॉपी हो जाता. जब इस फ्लॉपी को ड्राइव में डालकर कोई दूसरा कंप्यूटर शुरू किया जाता, तो ये कंप्यूटर की मेमोरी में भी कॉपी हो जाता. इस तरह ये वायरस अपने-आप पसरता था.
कुछ दिन सब ठीक रहता. लेकिन जब ये डिस्क 50वीं बार इस्तेमाल की जाती, गेम या प्रोग्राम शुरू होने के बजाय स्क्रीन पर एक कविता लिख कर आ जाती -
''Elk Cloner: The program with a personality
It will get on all your disks
It will infiltrate your chips
Yes it's Cloner!
It will stick to you like glue
It will modify RAM too
Send in the Cloner!''
हार्ड ड्राइव के आने से पहले गेम और प्रोग्राम फ्लॉपी से ही चलाए जाते थे.ये देखकर कुछ लोगों को शक तो हुआ कि ये रिच की बदमाशी है, लेकिन किसी को ये समझ नहीं आता था कि रिच ने ये किया तो कैसे? क्योंकि अपने-आप कॉपी होकर कंप्यूटर में छुप जाने वाले वायरस के बारे में ज़्यादा लोगों ने सोचा नहीं था. आज रिच के बनाए वायरस की किस्म लिए एक नाम है - बूट सेक्टर वायरस. रिच का ये वायरस खालिस एप्पल के कंप्यूटर को चपेट में लेता था.
रिच ने जिस साल एल्क क्लोनर लिखा था, उसी साल साइबर सिक्योरिटी में काम करने वाली सेमैंटिक भी शुरू हुई. लेकिन एप्पल कंप्यूटर के लिए सेमैंटिक का बनाया पहला एंटी वायरस आने में 7 साल और लग गए.
रिच सक्रैंटा ने कोडिंग की दुनिया में ही करियर बनाया. कुछ साल पहले ब्लेको नाम से एक सर्च इंजन बनाया, जिसे आईबीएम ने खरीदा.रिच का बनाया वायरस लोगों को तंग बस करता था. उनका कोई माली नुकसान नहीं होता था. इसलिए पहले वायरस ब्रेक के लिए ज़िम्मेदार होने के बावजूद उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई. उन्होंने प्रोग्रामिंग की दुनिया में बड़ी कंपनियों के साथ काम किया. उनके लिखे कोड आईबीएम जैसी प्रतिष्ठित कंपनियों ने खरीदे. लेकिन उनके अंदर का बदमाश बच्चा कभी मरा नहीं. अपने 'कारनामे' के बारे में वो कहते हैं,
''अगर पूरी तरह गुमनाम रहने और इस तरह (वायरस का कोड लिखकर) मशहूर होने में से कोई एक चीज़ चुननी हो, तो मैं मशहूर होना चुनूंगा.''
**रिच का लिखा कोड एप्पल के डेस्कटॉप कंप्यूटर पर असर करता था. माइक्रोसॉफ्ट ऑपरेटिंग सिस्टम पर हमला करने वाला पहला वायरस माना जाता है 'ब्रेन' को. पाकिस्तान में रहने वाले दो भाइयों - बसित और अमजद अल्वी ने इसका कोड पायरेटेड सॉफ्टवेयर बेचने वालों को मज़ा चखाने के लिए लिखा था. एल्क क्लोनर की तरह ही ये वायरस भी गंभीर नुकसान नहीं करता था. ये वायरस कंप्यूटर स्क्रीन पर इन भाइयों की दुकान का नंबर दिखाता था, ताकि लोग कंप्यूटर सुधारने वहां पहुंचें.
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