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राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में BJP की जीत की असली वजह पता चल गई

तेलंगाना में जीत हासिल करने वाली कांग्रेस बाकी तीन राज्यों में किन वजहों से हार गई?

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BJP नेता वसुंधरा राजे, शिवराज सिंह चौहान और रमन सिंह

जनादेश. ये शब्द अपने बहुत सारे मतलब लेकर आता है. जैसे मतलब ये कि राजनीतिक जानकारी रखने का दावा करने वाले धराशायी हो जाते हैं. मतलब ये भी कि ग्राउंड-ग्राउंड चप्पे-चप्पे घूमने वाले पत्रकार भी गलत हो जाते हैं. और मतलब ये भी कि एग्जिट पोल भी धरे के धरे रह जाते हैं जब देश का जन अपना आदेश दर्ज कराता है. आज यानी 3 दिसंबर को आए 4 राज्यों के चुनावी नतीजे आए, तो जनादेश की ये व्याख्याएं एकदम साफ हो गई. और ये साफ हो गया कि देश के तीन बड़े राज्यों यानी राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी का मुख्यमंत्री बैठेगा, और एक राज्य तेलंगाना में बनेगी कांग्रेस की सरकार. 

सबसे पहले बात राजस्थान की. राजस्थान में कुल 200  विधानसभा सीटें हैं. लेकिन चुनाव नतीजे आए 199 के. दरअसल श्रीगंगानगर की श्रीकरणपुर विधानसभा सीट पर मतदान नहीं हुआ था. क्योंकि इस सीट के सिटिंग एमएलए और कांग्रेस के प्रत्याशी गुरमीत सिंह कुन्नर का 15 नवंबर को निधन हो गया. तो नियमों के मुताबिक चुनाव आयोग ने इस सीट पर मतदान स्थगित कर दिया.

तो 199 सीटों पर क्या स्थिति रही?

भाजपा - 115 सीटें

कांग्रेस  - 69 सीटें

भारत आदिवासी पार्टी - 3 सीटें

बहुजन समाज पार्टी - 2

राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी  - 1

राष्ट्रीय लोकदल - 1 सीट

निर्दलीय - 8 सीटें

अगर सूबे की दो प्रमुख पार्टियों की बात करें तो वोट प्रतिशत में क्या स्थिति रही?

भाजपा 41.7 प्रतिशत

कांग्रेस 39.53 प्रतिशत

बाकी में अन्य

ये तो ट्रेंड हो गए. अब आपको वो नाम बताते हैं, जिनके नतीजों ने हैरान कर दिया  -

- सीपी जोशी नाथद्वारा(राजसमंद ) से हारे (सामने भाजपा के विश्वराज सिंह मेवाड़)

- राम लाल जाट मंडल(भिलवाड़ा) से हारे (सामने भाजपा के उदय लाल भड़ाना)

- प्रताप सिंह खाचरीयावास जयपुर की सिविल लाइंस से हारे (सामने भाजपा के गोपाल शर्मा)

- रघु शर्मा केकरी से हारे (सामने भाजपा के शत्रुघ्न गौतम)

- ज्योति मिर्धा नागौर से हारे (सामने भाजपा के हरेंद्र मिर्धा)

-राजेन्द्र सिंह राठोर तारानगर (चुरू) से हारे (सामने कांग्रेस के नरेंद्र बुदानिया)


बाकी जीते हुए दिग्गजों की बात करें तो

वसुंधरा राजे  (झालावाड़) जीतीं ( सामने कांग्रेस के राम लाल)

सचिन पायलट टोंक से जीते (सामने कांग्रेस के अजीत सिंह मेहता)

अशोक गहलोत सरदारपुरा (जोधपुर) से जीते ( सामने भाजपा के Dr. महेंद्र राठौर)

गोविंद सिंह डोटासरा लछमनगढ़ (सीकर डिस्ट्रिक्ट) से जीते (सामने भाजपा के सुभाष महारिया)

ये दिग्गज जीत गए.

अब चुनावी नतीजे आने के बाद दोनों खेमों की ओर से प्रतिक्रियाएं आईं. जीतने वाले खेमे की ओर से भी, हारने वाले खेमे की ओर से भी. आपने जीत-हार के आंकड़े देखे और नेताओं को सुना. अब बात करते हैं उन फ़ैक्टर्स की, जिनकी वजह से कांग्रेस को राजस्थान में ऐसी हार का सामना करना पड़ा.

आप याद करिए राहुल गांधी का वो ट्वीट जो उन्होंने साल 2018 में किया था. इस ट्वीट में एक फ़ोटो थी. राहुल गांधी के एक तरफ थे अशोक गहलोत और एक तरफ थे सचिन पायलट. राहुल गांधी ने लिखा - The united colours of Rajasthan! वो अपनी पार्टी की कथित एकता का प्रदर्शन कर रहे थे.

लेकिन राहुल गांधी के दावे का फ़ैक्ट चेक आप सचिन पायलट के उस वीडियो से कर सकते हैं, जो हमने कुछ ही मिनट पहले आपको दिखाया. वीडियो देखकर आप समझ गए होंगे कि पांच साल के दरम्यान कांग्रेस पार्टी के कद्दावर नेता सचिन पायलट का स्टैंड बदल गया था. 2018 के विधानसभा चुनाव में वो वसुंधरा राजे का विरोध कर रहे थे. वो सत्ता उनके हाथ से छीनना चाह रहे थे. लेकिन सत्ता में आने के बाद उनकी प्राथमिकताऐं बदल गईं. वो अपने ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का विरोध करने लगे. बगावत करने लगे. गुस्सा दिखाने लगे कि उनको सीएम की कुर्सी पर क्यों नहीं बिठाया गया?

जब पायलट गहलोत के खिलाफ खड़े हुए, तो बहुत सारे नाटकीय दृश्य भी दिखाई दिए. पायलट अपने खेमे के विधायकों को बटोरकर दिल्ली में कैंप करने लगते. और गहलोत मंच से ही पायलट पर तीखी टिप्पणियां करते. 5 साल तक राहुल गांधी के दावे और सपने की दोनों नेता मिलकर धज्जियां उड़ाते रहे.

और राहुल गांधी के ट्वीट की भाषा में ही बात करें तो राजस्थान में रंग बहुत था, रंगबाज़ी भी बहुत थी, लेकिन उसमें कुछ ऐसा नहीं था, जिसे यूनाइटेड कहा जा सके. भले ही कितने ही दावे क्यों न किये गए हों?

कांग्रेस में एकता का भ्रंश बस गहलोत बनाम पायलट के स्तर पर ही नहीं था. ये विधायकों के स्तर पर भी था. जब हमारी टीमें ग्राउंड पर पहुंचीं, तो एक बात साफ तौर पर दिखी. वोटरों को बाई एंड लार्ज अशोक गहलोत से बड़ी दिक्कत नहीं थी, लेकिन वो स्थानीय विधायकों से असन्तुष्ट थे. ये असंतुष्टि तब ज्यादा बढ़ी, जब उन्हीं विधायकों को विधानसभा चुनाव में फिर टिकट पकड़ा दिया गया. नतीजा क्या हुआ? उन्हें वोट नहीं मिले. और भाजपा को मिला बहुमत.

अब इस चुनाव नतीजे से जुड़ा एक और फैक्टर देखिए. जब कांग्रेस इतनी ज्यादा झंझट में पड़ी हुई थी, तो भाजपा एक बेहतर विकल्प की तरह सूबे के वोटरों को दिख रहीं थी. वोटरों को भाजपा में अलग-अलग गुट नहीं दिख रहे थे. वहां एक ही गुट था  - नरेंद्र मोदी का गुट. भाजपा एकजुट और फोकस्ड विकल्प की तरह दिखाई दे रही थी. भाजपा ने एकजुटता का प्रचार करने का भी कोई मौका नहीं चूका. पोस्टर-होर्डिंग पूरे राजस्थान में लगाए गए. पोस्टर में मोदी के अलावा अमित शाह, नड्डा, राजेन्द्र राठोर, सीपी जोशी और वसुंधरा राजे समेत सारे नेता थे. जो नाराज था वो भी, जो चुनाव हारने वाला था, वो भी.

राजस्थान के बाद बात करते हैं मध्य प्रदेश की. मध्य प्रदेश का आंकड़ा कुछ इस तरह है-

भाजपा 165 सीट

कांग्रेस 64 सीट

भारत आदिवासी पार्टी (BAP) - 1 सीट

वोट प्रतिशत की भाषा में बात करें तो

भाजपा  - 48.76 प्रतिशत

कांग्रेस - 40.39 प्रतिशत

बसपा - 3.28 प्रतिशत

बाकि में अन्य

अब आपको वो नाम बताते हैं जिनके चुनाव नतीजे चौंकाने वाले थे. वो नेता जो अपना चुनाव हार गए. उनके नाम है  -

फग्गन सिंह कुलस्ते मंडला जिले की निवास विधान सभा से हारे ( चैन सिंह वरकड़े)

नरोत्तम मिश्रा दतिया से हारे ( भारती राजेंद्र)

जीतू पटवारी इंदौर जिले की राऊ विधान सभा ( मधु वर्मा)

सज्जन वर्मा देवास जिले की सोनकच्छ सीट से हारे( डॉ राजेश सोनकर)

इसके अलावा जो दिग्गज जीत गए  -

कमलनाथ छिंदवाड़ा से जीते (विवेक बंटी साहू)

जयवर्धन सिंह गुना की राघोगढ़ सीट से जीते (हीरेंद्र सिंह बंटी)

शिवराज सिंह चौहान सीहोर की बुदनी सीट से जीते (विक्रम शर्मा)

कैलाश विजयवर्गीय इंदौर -1 से जीते (संजय शुक्ला)  

परिणाम के बाद अब बात कारणों की. कांग्रेस की हार और भाजपा के जीत के कारण. हमने कुछ देर पहले ही आपको शिवराज सिंह चौहान का वीडियो दिखाया था. आपको पता है उस वीडियो का संदर्भ? दरअसल 4 नवंबर को शिवराज सिंह चौहान टीकमगढ़ में एक कार्यक्रम में शिरकत कर पहुंचे. हालात ऐसे बने कि महिलाओं ने उन्हें घेर लिया. उनके गले लगकर रोने लगीं. शिवराज स्टेज तक नहीं पहुंच पाए. महिलाओं ने ऐसा क्यों किया? क्योंकि बीते ही महीनों में शिवराज ने महिलाओं के बीच जगह बनाई है. उनके बीच वो ज्यादा लोकप्रिय हुए हैं. और शिवराज को ये लोकप्रियता दिलाने में सबसे बड़ा हाथ है उनकी सरकार द्वारा शुरू की गई लाडली बहना स्कीम. क्या है ये स्कीम?

>5 मार्च 2023 को अपने जन्मदिन के दिन शिवराज ने इस स्कीम की घोषणा की.

> इसके तहत राज्य की 23 से 60 साल की महिलाओं को हर महीने एक हजार रुपये देने का वादा किया गया

> ये भी ऐलान कर किया गया कि इस बार के बजट में 8 हजार करोड़ रुपए इस योजना के लिए आवंटित कर दिए जाएंगे

> इसका लाभ सिर्फ उसी महिला को मिलेगा जो मध्य प्रदेश की निवासी हों.

> उनकी आमदनी इनटैक्स के दायरे में न आती हो और जिनके परिवार की आमदनी 2.5 लाख से ज्यादा न हो.

> योजना का लाभ पाने के लिए महिला का विवाहित होना अनिवार्य है.

10 जून को शाम 6 बजे जबलपुर शहर में आयोजित किये गए एक भव्य कार्यक्रम में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कम्प्यूटर का माउस क्लिक किया जिसके बाद लाभार्थियों के बैंक के खातों में एक हज़ार रूपए की रक़म पहुंचनी होनी शुरू हो गयी. पहली राशि खाते में गए अभी तीन महीने भी नहीं बीते थे और शिवराज ने ऐलान कर दिया कि अब एक हजार नहीं साढ़े बारह सौ रुपये दिए जाएंगे. शिवराज की ये योजना पोपुलर हो गई.

बीजेपी के बड़े नेता इस योजना को गेम चेंजर मानने लगे थे. राज्य में प्रचार करने कोई भी 'लाडली बहना योजना' का जिक्र जरूर किया. प्रधान मंत्री मोदी और अमित शाह ने भी इस योजना का प्रचार किया. सीएम शिवराज ने तो यहां तक कह दिया था कि अगर राज्य में उनकी सरकार फिर से बनती है तो लाडली बहना योजना की रकम 1250 रुपये से बढ़ाकर रु. 3000 कर दिया जाएगा

ये योजना कांग्रेस के लिए चुनौती थी. उन्होंने भी एक काउंटर स्कीम लगाई. ऐलान किया कि सत्ता में आए तो 'नारी सम्मान योजना' लाएंगे. वादा किया गया कि इस योजना के तहत हर उम्र की महिलाओं को रु.1500 प्रति माह दिए जाएंगे. कांग्रेस ने ऐलान तो कर दिया, लेकिन शायद महिलाओं का भरोसा जीत पाने में कांग्रेस नाकाम रही.

लेकिन शिवराज की सफलता के पीछे दूसरे कारण भी थे. जैसे जब भाजपा ने एमपी में कैंपेन करना शुरू किया, तो नरेंद्र मोदी समेत तमाम बड़े नेता फील्ड पर उतर गए. अग्रेसिव प्रचार किया. शिवराज सिंह चौहान की पहुंच और उनकी जरूरत को किसी भी हाल में नकारा नहीं गया. दिल्ली और भोपाल के भाजपा प्रकोष्ठ तमाम मोर्चों पर साथ खड़े थे. लेकिन ऐसा नहीं है कि किसी मौके पर गतिरोध नहीं हुआ. हुआ. स्थानीय स्तर पर बहुत सारे नेता नाराज भी हुए. लेकिन भाजपा के पास इस नाराजगी को लेकर भी प्लानिंग थी. भाजपा ने अपने दो सीनियर कैबिनेट मंत्री जमीन पर उतारे- भूपेन्द्र यादव और अश्विन वैष्णव. इन दो मंत्रियों की ज़िम्मेदारियां और काम स्पष्ट थे- गतिरोध खत्म करना. नतीजा शिवराज की मजबूती के रूप में सामने आया.  

लेकिन शिवराज की मजबूती ही नहीं. कांग्रेस के खेमे से गलतियां भी हुईं. जैसे पूर्वी कमलनाथ पर ये ठप्पा लग जाना कि वो बस छिंदवाड़ा के नेता हैं. मध्य प्रदेश में उनका संगठन किस स्थिति में है, इस फिक्र को लेकर उनका ग्राउंड पर नदारद रहना.

इसके अलावा कांग्रेस से एक और निर्णायक चूक हुई,. जानकार बताते हैं कि कांग्रेस पटवारी भर्ती घोटाले पर भाजपा को अच्छे से घेर सकती थी. ऐसा होता तो भाजपा साल 2018 की तरह बैकफुट पर चली गई होती, जब व्यापम घोटाले की वजह से तत्कालीन शिवराज सरकार की किरकिरी हुई थी. लेकिन कांग्रेस इस मौके को भुनाने से चूक गई. उसने बस इतना आश्वासन दिया - जब हम सरकार बनाएंगे, घोटाले की जांच कराएंगे. एक मजबूत आवाज नदारद. नतीजा सामने.

आपने मध्य प्रदेश की नतीजा तजबीज लिया. अब चलते हैं छत्तीसगढ़.  

भाजपा - 55 सीटें

कांग्रेस - 35 सीटें

अगर वोट परसेंट की भाषा पर बात करें तो -

भाजपा - 46.37 प्रतिशत

कांग्रेस  - 42.11 प्रतिशत

अन्य - 12 प्रतिशत

अब बारी उन नेताओं की, जिन्होंने अपने चुनाव परिणाम से चौंका दिया. मतलब उनकी हार अप्रत्याशित थी.

टीएस सिंह देव, अम्बिकापुर- हराया बीजेपी राजेश अग्रवाल ने

विजय बघेल, पाटन - हराया भूपेश बघेल ने

अमित अजीत जोगी, पाटन - हराया भूपेश बघेल ने

ताम्रध्वज साहू, दुर्ग ग्रामीण - हराया भाजपा के ललित चंद्राकार ने  

ये सभी नेता अपनी-अपनी सीटों पर चुनाव हार गए. बाकी रमन सिंह, भूपेश बघेल, ओपी चौधरी, बृजमोहन अग्रवाल जैसे सभी बड़े नेता अपनी-अपनी सीट बचाने में सफल रहे.

अब कारण पर आते हैं. भाजपा की सफलता प्रमुख रूप से इस राज्य में भी महिलाओं पर टिकी रही. और ऐसा करने के लिए भाजपा ने एक स्कीम लॉन्च की. सत्ता में आने से पहले ही. इस स्कीम का नाम था महतारी वंदन योजना. इस योजना के तहत भाजपा ने विवाहित महिलाओं को हर महीने 1 हजार रुपये बांटने का वादा किया. और कहा कि वो चुनाव जीत गए, तो वो स्कीम लागू करेंगे.

महिलाओं का भरोसा जीतने के लिए भाजपा ने एक और कदम आगे बढ़ा दिया. भाजपा ने इस योजना में शामिल होने के लिए फॉर्म भी भरवाए. और ये फॉर्म भरने सौ सवा सौ लोग नहीं आए. औसतन हर विधानसभा में 50 हजार से अधिक फॉर्म भरवाए गए. महिलाओं को हर महीने एक हजार का शुद्ध लाभ दिखाई देने लगा था. जानकार बताते हैं कि महिलाओं ने वोट से इसका जवाब दिया. इसके अलावा भाजपा ने एक और वादा किया. भूमिहीन किसानों को 10 हजार रुपये का बोनस देने का.

इसके अलावा भाजपा ने नेतृत्व के स्तर पर प्रदेश में एक बड़ा कदम उठाया. उन्होंने पुराने नेताओं के सामने युवा नेताओं की नई खेप खड़ी की. ओपी चौधरी जैसे IAS को  सेवा से निकालकर पार्टी में आए और प्रदेश के महासचिव बने. नए रीशफल से नेताओं को जो दिक्कत हुई, भाजपा ने उस दिक्कत का शमन करने के लिए  पवन साई, ओम माथुर और मनसुख मंडाविया को दिल्ली से रायपुर भेजा, जिससे स्थितियां दुरुस्त रह सकें.

इसके अलावा कांग्रेस के पास भी अपनी दिक्कतें थीं. वो बस्तर संभाग में धर्म परिवर्तन जैसी समस्याओं को काउंटर नहीं कर सकी, जिसका लाभ केदार कश्यप जैसे भाजपा नेताओं को हुआ, जिन्होंने नारायणपुर जैसी आदिवासी बहुल सीट बस ये नैरेटिव बनाकर निकाल ली कि कांग्रेस आदिवासियों को ईसाई बना रही है. इसके अलावा कांग्रेस धान को लेकर अपनी स्थिति का भरपूर प्रचार भी नहीं कर सकी. रमन सिंह की 2013 से 18 वाली सरकार इसलिए ही अपदस्थ हो गई थी क्योंकि सरकार धान खरीद का दाम बढ़ाने में असफल रही. 2018 में भूपेश बघेल ने धान का दाम बढ़ाने का वादा किया और वो सरकार में आ गए. पांच सालों तक उन्होंने लगातार धान खरीद का दाम बढ़ाया, और किसानों को अपनी फसल का अच्छा पैसा मिला. फिर 2023 में ऐसा क्या हुआ कि वो अपनी ही उपलब्धि नहीं गिना सके?

ये वो तीन राज्य हो गए, जो भाजपा ने स्पष्ट बहुमत से जीते. अब बारी आती है तेलंगाना की, जहां कांग्रेस ने जीत दर्ज की. अब बात करते हैं वोट शेयर की.

कांग्रेस 39.45 प्रतिशत

बीआरएस - 37.88 प्रतिशत

भाजपा - 13.92 प्रतिशत

AIMIM - 2.03 प्रतिशत

CPI - 0.35 प्रतिशत

सबसे पहले बात सीएम केसीआर की. वो दो जगह से चुनाव लड़ रहे थे - गजवेल और कामारेड्डी. गजवेल जीत गए, लेकिन कामारेड्डी भाजपा के कतिपल्ली वेंकटरमण रेड्डी से हार गए. उनके बेटे केटी रामा राव सिरसिल्ला सीट से जीत गए. रेवंत रेड्डी भी कामारेड्डी से खड़े हुए थे, जहां ज़ाहिर है कि वो हार गए. लेकिन अपनी दूसरी सीट कोडंगल से जीत गए. टी राजा सिंह गोशामहल से जीत गए. AIMIM के नेता अकबरुद्दीन ओवैसी चंद्रायनगुट्टा से जीत गए.

नतीजों के बाद अब कारण. सबसे पहला कारण सीएम केसीआर के प्रति एंटी-इन्कम्बन्सी. जानकार बताते हैं कि लंबे समय से KCR की सरकार के खिलाफ ये भावना वोटर में घर की हुई थी. वहीं लंबे समय तक kCR इन आरोपों का भी सामना करते रहे कि वो एक फार्म हाउस सीएम हैं. वो जनता से क्या, वो विधायकों से भी नहीं मिलते हैं. मंत्रियों तक से नहीं. उन पर भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार के आरोप लगे. कांग्रेस ने सारे फ़ैक्टर्स को भुनाया. नतीजा सामने.  

ये हो गई आज की बात. कल भी ये सरगर्मी बनी रहेगी. जब आएंगे मिजोरम विधानसभा चुनाव के नतीजे. कल भी हम यहीं होंगे. चुनाव के नतीजों को थोड़ा और डीकोड करते हुए.