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BJP सांसद, जिसने घोटाले का खुलासा करने वाले को कोर्ट में मरवा डाला!

क्या है अनिल जेठवा मर्डर केस की कहानी, जिसमें कल फैसला आया

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अमित जेठवा (बाएं) जिनकी हत्या के जुर्म में कोर्ट ने दीनू सोलंकी (दाहिने) को सज़ा सुनाई है.
अमित जेठवा. गुजरात का रहने वाला सामाजिक कार्यकर्ता, प्रमुख काम था आरटीआई, यानी सूचना का अधिकार, के तहत तमाम जानकारियां इकट्ठी करना. अमित जेठवा को जानकारियां मिलती थीं, और उन जानकारियों के आधार पर वह अदालत में केस दर्ज कर देते थे. इन अधिकतर केसों में भाजपा के एक सांसद और विधायक का नाम आता था. सांसद का नाम दीनू सोलंकी. 2010 में गुजरात हाईकोर्ट के परिसर में अमित जेठवा को गोली मार दी गयी. गोली मारने का ठेका दिया दीनू सोलंकी ने.
कल यानी 11 जुलाई को स्पेशल सीबीआई अदालत ने फैसला दिया. घटना के दस सालों बाद. दीनू सोलंकी को सुनाई उम्रकैद की सज़ा. उनके साथ सजा मिली है उनके भतीजे शिवा सोलंकी, संजय चौहान, शैलेश पंड्या, पचान देसाई, उदयजी ठाकोर, और पुलिस अधिकारी बहादुरसिंह वाडेर को. क्या है पूरा मामला? क्यों और कैसे हुआ था सब? हम बताते हैं.
पहले जानिए कि कौन हैं दीनू सोलंकी
गुजरात के सबसे ताकतवर सांसदों में गिना जाने वाला नाम. गिर के जंगलों के पास मौजूद कोडीनार में रहने वाले. जहां से थोड़ी ही दूरी पर है सोमनाथ मंदिर. सोलंकी एक व्यवसायी थे. लोगों में जाना पहचाना नाम. 80 के दशक में नाम और पैसा दोनों कमाया. फिर 1997 में इस इलाके में आई एक सीमेंट फैक्ट्री. पहले गुजरात हाईटेक सीमेंट की, फिर अम्बुजा सीमेंट.
दीनू सोलंकी, गुजरात का वो नेता जिसने सीमेंट फैक्ट्री को मदद पहुंचाकर नरेंद्र मोदी तक जगह बनायी.
दीनू सोलंकी, गुजरात का वो नेता जिसने सीमेंट फैक्ट्री को मदद पहुंचाकर नरेंद्र मोदी तक जगह बनायी.

'इन्डियन एक्सप्रेस' ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि इन सीमेंट फैक्टरियों की वजह से सोलंकी का ओहदा बढ़ा. ये वही समय था जब भाजपा गुजरात में अपने पैर जमाना चाह रही थी. अब तक सोलंकी कोडीनार से कांग्रेस विधायक धीरसिंह बराड़ के समर्थक थे. 1995 में विधानसभा चुनाव हुए . इस समय सोलंकी ने अपना समर्थन भाजपा की ओर कर लिया. कोडीनार सीट पर भाजपा प्रत्याशी लक्ष्मण परमार के समर्थक हो गए और लक्ष्मण परमार ने जीत दर्ज की.
तब केशूभाई पटेल की सरकार थी. और शंकरसिंह वाघेला भितरघात कर रहे थे. कोडीनार के विधायक लक्ष्मण परमार वाघेला की साइड हो लिए और सरकार गिर गयी. फिर से चुनाव हुए 1998 में. इस बार भाजपा ने कोडीनार से सीधे सोलंकी को ही टिकट दे दिया. और ठीक इस समय से सोलंकी का ओहदा रातोंरात बढ़ गया. सोलंकी चुनाव जीते, फिर से 2002 में और फिर 2007 में. प्रदेश में सरकार थी भाजपा की और खुद विधायक भी थे भाजपा से ही.
दीनू सोलंकी अमित जेठवा की आरटीआई से परेशान थे.
दीनू सोलंकी अमित जेठवा की आरटीआई से परेशान थे.

2001 में जब नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्री बने तो कहा जाता है कि सौराष्ट्र के क्षेत्र में काफी विरोध का सामना करना पड़ा था. ये विरोध केशुभाई पटेल की वजह से, जिन्हें हटाकर मोदी मुख्यमंत्री बने थे. कहानियां हैं कि मोदी को अपना सिक्का जमाना था और कुछ मजबूत लोगों की ज़रुरत थी. इस मजबूत लिस्ट में सोलंकी का नाम सबसे ऊपर था. 2017 में गुजरात विधानसभा चुनाव में कोडीनार से सोलंकी खुद तो नहीं लड़ रहे थे, लेकिन उनके समर्थित प्रत्याशी के लिए अमित शाह खुद प्रचार करने आए थे.
कौन अमित जेठवा? क्या करते थे?
भीखू बटवाला के बेटे अमित जेठवा. अमित जेठवा का घर कोदिनार तालुका के हर्मदिया गांव में था. कोदिनार, यानी वही इलाका जहां दीनू सोलंकी का भी पैतृक निवास था. कोडीनार में सोलंकी के पास इफरात ज़मीन थी और एक भारी-भरकम फ़ार्म हाउस. किस्से और कहानियां हैं कि जेठवा और सोलंकी में संबंध काफी सहज थे. जेठवा जब भी गांधीनगर जाते थे, तो सोलंकी को मिले विधायक आवास में रहते थे.
लेकिन दूरी बढ़ी 2007 में. इस साल हुए विधानसभा चुनाव में कोडीनार विधानसभा सीट से सोलंकी के सामने चुनाव लड़ गए. निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर. हार गए. लेकिन इसके पहले भी जेठवा गुजरात में अच्छा-ख़ासा हल्ला कर चुके थे. 2006 में सलमान खान पर जब चिंकारा मारने का आरोप लगा था, इस मामले में भी जेठवा ने शिकायत की थी. इसके पहले भी गुजरात के कई सारे पर्यावरण के मसलों में जेठवा आवाज़ उठाते रहे थे.
"attachment_191113" align="aligncenter" width="533"अमित जेठवा, जिनकी शिकायत पर सलमान खान भी फंस गए थे.
अमित जेठवा, जिनकी शिकायत पर सलमान खान भी फंस गए थे.

इसी बीच जेठवा को दीनू सोलंकी की ओर से धमकियां मिलनी शुरू हुईं. कई बारे सोलंकी के लोगों ने धमकी दी, कुछेक बार तो खुद सोलंकी ने खुद ही दी. लेकिन जेठवा ने अपना काम जारी रखा. धीरे-धीरे उनके निशाने पर तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी आ गए. कई बार खबरों में बात करते और लिखते समय जेठवा ने कहा कि प्रदेश में हो रहे अवैध खनन के मसले पर भाजपा सरकार पर भरोसा नहीं कर सकते हैं, इसलिए अवैध खनन के मामले की जांच लोकायुक्त से करानी चाहिए.
उस समय गुजरात में लोकायुक्त की नियुक्ति नहीं हुई थी. इसके लिए जेठवा ने एक याचिका दायर की. उनकी याचिका पर लोकायुक्त की नियुक्ति हुई और गुजरात को दो सूचना आयुक्त भी मिले.
हत्याकांड और जांच
लोकायुक्त की नियुक्ति के एक महीने बाद ही, यानी 20 जुलाई 2010 को गुजरात हाईकोर्ट के परिसर में ही दो लोगों ने अमित जेठवा को गोली मारी. गोली चलने के तुरंत बाद जेठवा की मौत नहीं हुई, बल्कि उन्हें एक हमलावर का कुर्ता पकड़ लिया. हमलावर तो भाग गए. लेकिन हमलावर के कुरते का एक हिस्सा जेठवा के हाथ में रह ही गया. इस कुर्ते पर जूनागढ़ के एक दर्जी का टैग था, और कहते हैं कि इसी टैग के आधार पर हमलावरों की पहचान हो सकी.
मामले की शुरुआती जांच में दीनू सोलंकी का नाम चार्जशीट में शामिल नहीं था. खबरें बताती हैं कि जॉइंट कमिश्नर मोहन झा ने दीनू सोलंकी को क्लीन चिट भी दे दी. लेकिन जेठवा के पिता पहुंचे गुजरात हाईकोर्ट और मामले की फिर से जांच कराने की मांग की. जस्टिस पर्दीवाला ने 26 गवाहों के साथ फिर से केस चलाने की अनुमति मांगी. साथ ही साथ, हाईकोर्ट ने सीबीआई जज दिनेश पटेल को हटाकर जस्टिस के.एम. दवे को नियुक्त किया. जिन्होंने सुनवाई के समय खुद के लिए पुलिस सुरक्षा भी मांगी थी.


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