खुशवंत सिंह चर्चित पत्रकार और लेखक. उन्होंने अपनी किताब ‘सिखों का इतिहास’ में लिखा है कि सिखों में हमेशा से ही ‘एक अलग राज्य’ की चाहत थी…आजादी मिलने से कुछ रसे पहले ही सिख नेताओं ने कहना शुरू कर दिया था कि अंग्रेज़ों के बाद पंजाब पर सिखों का हक है.’ लेकिन, आजादी के बाद हुए विभाजन के चलते सिख नेताओं की ‘अलग राज्य’ की उम्मीदें धुंधला गईं.
इंदिरा गांधी से नाराज सिख ने जब बिना हथियार प्लेन हाईजैक कर दिखा दिया
कृपाण पर रोक लगी तो बंदे ने प्लास्टिक की बॉल से प्लेन हाईजैक कर लिया

लेकिन, जब भाषा के आधार पर आंध्र प्रदेश का गठन हुआ तो अकाली दल ने भी पंजाबी भाषी इलाके को ‘पंजाब सूबा’ घोषित करवाने की मांग रख दी. यही वह वक्त भी था जब पंजाब में अकाली दल कांग्रेस का विकल्प बनकर उभर चुका था. इंदिरा गांधी ने इसके जवाब के तौर पर सरदार ज्ञानी जैल सिंह को पंजाब के मुख्यमंत्री के तौर पर खड़ा किया. जैल सिंह का बस एक ही मकसद था-शिरोमणि अकाली दल का सिखों की राजनीति में वर्चस्व कम करना.
साल 1972 में पंजाब के सीएम बने जैल सिंह ने अकालियों की काट निकालने के लिए सिख गुरुओं के जन्म और शहीदी दिवस पर कार्यक्रमों का आयोजन करना शुरू किया. प्रमुख सड़कों और शहरों का उनके नाम पर नामकरण किया जाने लगा.

इसी समय एक शख्स का उदय हुआ जिसका नाम था जरनैल सिंह भिंडरावाले. रामचंद्र गुहा 'इंडिया आफ्टर गांधी' में लिखते हैं कि तेज़ तर्रार भिंडरावाले को अकालियों की काट के लिए जैल सिंह ने आगे बढ़ाया और बाद में इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी ने उसकी पीठ पर अपना हाथ रखा. संजय ने उसे पंजाब का ‘अघोषित मुखिया’ बना दिया. वरिष्ट पत्रकार कुलदीप नैयर ने भी अपनी किताब ‘बियोंड द लाइंस एन ऑटोबायोग्राफी’ में इसका जिक्र किया है. इसके मुताबिक,
‘संजय गांधी को लगता था कि अकाली दल के तत्कालीन मुखिया संत हरचरण सिंह लोंगोवाल की काट के रूप में एक और संत को खड़ा किया जा सकता है. यह संत उन्हें सिखों की एक प्रभावशाली संस्था दमदमी टकसाल के संत भिंडरावाले के रूप में मिला.’
जरनैल सिंह 7 साल की उम्र में 'दमदमी टकसाल' आया था. यहीं पढ़ा और बड़ा हुआ. उसे 1977 में इसी दमदमी टकसाल का मुखिया बनाया गया. जरनैल सिंह भिंडरावाले की लोकप्रियता तब बहुत तेज़ी से बढ़ी जब उसने खालिस्तान की मांग की और हिंदुओं के ख़िलाफ़ बोलना शुरू कर दिया. भिंडरावाले अपने भाषणों में हिंदुओं को ‘टोपीवाले’, धोती वाले’ जैसे नामों से पुकाराता. वह इंदिरा गांधी को ‘पंडितां दी धी’ यानी पंडितों की बेटी कहकर बुलाता. अपनी किताब माइ ब्लीडिंग पंजाब में खुशवंत सिंह लिखते हैं कि उस समय हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियों का अपमान किया जाने लगा था. लेकिन किसी की हिम्मत नहीं थी कि जरनैल सिंह भिंडरावाले को रोक सके. हिंदुओं ने भी इसका विरोध शुरू किया. वे गुरु ग्रंथ साहिब को जलाने लगे. जब बात बढ़ने लगी तो भिंडरावाले को बढ़ावा देने वाले कांग्रेस नेता जैल सिंह और दरबारा सिंह ने उससे किनारा करना शुरू कर दिया था.
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भिंडरावाले के उभार के साथ पंजाब का माहौल तपने लगा था. हिंसा का बढ़ने लगी थी. अप्रैल 1980 में नई दिल्ली में निरंकारी नेता बाबा गुरचरण सिंह की गोली मारकर हत्या कर दी गई. भिंडरावाले को निरंकारी फूटी आँख नहीं सुहाते थे. ऐसे इस हत्या के पीछे भिंडरावाले का हाथ माना गया, लेकिन उसकी लोकप्रियता इतनी गजब की थी कि कोई कार्रवाई नहीं हुई. सितंबर 1981 में पंजाब केसरी अखबार निकालने वाले हिंद समाचार समूह के मुखिया लाला जगत नारायण सिंह की हत्या हो गई. आरोप भिंडरावाले पर लगे. इस बार पंजाब की कांग्रेस सरकार पर दबाव था. भिंडरावाले को हत्या में नामजद किया गया, लेकिन पंजाब पुलिस उसे पकड़ने की हिम्मत नहीं दिखा पायी. हालांकि, कुछ रोज बाद उसने अपनी कुछ शर्तों पर गिरफ्तारी दे दी. इस गिरफ्तारी के दौरान पंजाब में कई जगहों पर दंगे हुए. पुलिस गोली में कम से कम 12 लोगों की मौत हुई.

भिंडरावाले के समर्थक उसे छुड़ाने के लिए कुछ भी करने को तैयार थे. 29 सितंबर, 1981 को भिंडरावाले के 5 समर्थक तजिंदर पाल सिंह, सतनाम सिंह, गजेंद्र सिंह, करन सिंह और जसबीर सिंह चीमा अमृतसर से श्रीनगर जाने वाली फ्लाइट IC 423 में चढ़े. पिछले एक हफ़्ते में ये पांचों इसी रूट पर तीसरी बार जा रहे थे. फ़्लाइट में कौन कहां है, इसका पूरा अंदाज़ा इन्हें हो चुका था. जैसे ही फ़्लाइट ने टेक ऑफ़ किया, गजेंद्र और जसबीर अपनी सीट से उठ गए. इसके बाद ये दोनों जाकर जबरदस्ती कॉकपिट के अंदर घुस गए. दोनों ने अपने कृपाण निकाले और पायलट, को-पायलट की गर्दन पर रख दिए.
गजेंद्र और जसबीर ने पायलट और को-पायलट को अपने कब्जे में कर लिया था. इधर केबिन में तज़िंदर, सतनाम और करन भी अपनी सीट से खड़े होकर बीच गलियारे में आ गए. इसके बाद इन तीनों ने भी अपने कृपाण निकाल लिए. सतनाम ने कृपाण अपनी कलाई पर दे मारा और खून से सना हुआ हाथ हवा में उठाया. ये लोग जताना चाह रहे थे कि मामला सच में सीरियस है, कोई उन्हें हल्के में ना ले.
इसके बावजूद कुछ लोग घबराहट के मारे शोर मचाने लगे. इस पर तज़िंदर ने एक कपड़े में लपेटे हुए तीन ग्रेनेड निकाले. और को-ऑपरेट ना करने पर प्लेन को उड़ा देने की धमकी दी. इसके बाद उन्होंने पायलट से कहा, प्लेन को लाहौर ले चलो. प्लेन लाहौर पहुंचा, जहां उसे लैंडिंग की इजाज़त मिल गई. हाइजैकर्स ने 2 प्रमुख मांगें थीं ‘भिंडरावाले’ की रिहाई और 5 लाख डॉलर की फिरौती. आज के हिसाब से लगभग 4 करोड़ रुपए.

उस समय भारत के राष्ट्रपति थे नीलम संजीव रेड्डी. इस दौरान उनके और पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल जिया-उल-हक़ के बीच दो बार फ़ोन पर बात हुई. अचरज की बात थी कि जिया ने रेड्डी को पाकिस्तान के पूर्ण सहयोग का आश्वासन दिया. प्लेन में कुछ विदेशी यात्री भी थे. मामला अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ना पहुंच जाए, शायद इस वजह से जिया ऐसा कह रहे थे. कारण चाहे जो भी हो, पर इस मामले में पाकिस्तान से भारत को पूरा सपोर्ट मिल रहा था.
उस समय पाकिस्तान स्थित भारतीय उच्चायोग में हाई कमिश्नर थे नटवर सिंह, जो आगे चलकर भारत के विदेश मंत्री नियुक्त किए गए. नटवर सिंह ने पाकिस्तान की तरफ़ से लाहौर एयरपोर्ट पर मोर्चा संभाले लेफ्टिनेंट जनरल लोधी से बात की. लोधी ने नटवर सिंह को बताया कि वो एक रेस्क्यू ऑपरेशन प्लान कर रहे हैं. इसके लिए SSG कमांडो की एक ख़ास टीम बुलाई गई थी. ये टीम वेस्ट जर्मनी से कुछ ही महीने पहले ट्रेनिंग लेकर लौटी थी.

पाकिस्तान पहुंचकर SSG टीम ने प्लान बनाया. रात 12.30 बजे जनरल लोधी ने एक SSG कमांडो को मेंटिनेंस स्टाफ़ बनाकर प्लेन में भेजा ताकि वो अंदर के हालत का मुआयना कर सके.
हाइजैकर्स के पास पिस्तौल नहीं थी. कृपाण भी कोई बड़ा ख़तरा नहीं थे. लेकिन हाइजैकर्स बार-बार ग्रेनेड से विस्फोट की धमकी दे रहे थे. डर था कि ऑपरेशन के दौरान अगर ग्रेनेड फट गया तो सबकी जान को ख़तरा हो सकता था. SSG कमांडो बहाने से सभी हाइजैकर्स के पास गया और उसने नज़दीक से उन ग्रेनेड्स को चेक किया. ग्रेनेड्स एक कपड़े में बांधे गए थे. SSG कमांडो ने चुपके से कपड़ा खोलकर देखा तो पता चला कि वो ग्रेनेड नहीं, अमरूद और संतरे थे. उसने बाहर खड़ी टीम को ग्रीन सिग्नल दिया. इसके बाद SSG की टीम प्लेन में घुसी, और उन्होंने पांचों हाइजैकर्स को कब्जे में ले लिया. बाक़ी बचे यात्रियों को आसानी से छुड़ा लिया गया.

हाईजैकर्स अपना मकसद पूरा करवाने में असफल हुए. लेकिन इस घटना के कुछ दिन बाद ही भिंडरावाले को सबूतों की कमी के चलते जमानत मिल गई. भारत में जब ये सब कुछ चल रहा था, उसी समय अमृतसर से 2 हजार किमी से ज्यादा दूरी पर बांग्लादेश में बैठा पंजाब का एक सिख गुरबख्श सिंह एक प्लेन को हाईजैक करने का प्लान बना रहा था. जिसे उसने करीब 10 महीने बाद अंजाम दिया.
बांग्लादेश के एक गुरुद्वारे में ग्रंथी गुरबख्श सिंह अगस्त, 1982 में भारत आया. आज ही के दिन 4 अगस्त, 1982 को करीब सुबह 10 बजे वह दिल्ली के पालम हवाई अड्डे पर पहुंच गया. यहां से उसने 11 बजे दिल्ली से अमृतसर होते हुए श्रीनगर जाने वाली फ्लाइट IC-423 पकड़ी. इस फ्लाइट में 6 क्रू मेंबर सहित कुल 135 लोग सवार थे. विमान लगभग 8 हजार फीट की ऊंचाई पर पहुंचा था. पायलट उसे ऑटोमेटिक मोड पर डालने वाले थे. तभी नीली पगड़ी और सफेद कुरता पैजामा पहने गुरबख्श सिंह अपनी सीट से उठा और टॉयलेट जाने के बहाने कॉकपिट के गेट पर जाकर खड़ा हो गया. उसने एक एयर होस्टेस को पकड़ा और पीले कपड़े से लिपटा हुआ एक बम दिखाकर कॉकपिट का दरवाजा खुलवा लिया.
अब 135 यात्रियों वाला पूरा प्लेन उसके कब्जे में था. गुरबख्श ने पायलट को विमान पाकिस्तान के लाहौर ले जाने को कहा. पायलट ने ऐसा करने से मना किया तो उसने बम के जरिए विमान में धमाका करने की धमकी दी. इसके बाद पायलट ने विमान को अमृतसर की जगह लाहौर की ओर मोड़ दिया. लेकिन, लाहौर में जो हुआ उसने पायलट और गुरबख्श दोनों को चौका दिया. पाकिस्तान एयरपोर्ट अथॉरिटी ने विमान की इमरजेंसी लैंडिंग कराने से इंकार कर दिया. बताते हैं कि इसके बाद भी गुरबख्श ने पायलट पर विमान को लाहौर एयरपोर्ट पर उतारने को कहा. विमान ने लाहौर के आसमान के कई चक्कर काटे, उसे नीचे आते देख लाहौर एयरपोर्ट अथॉरिटी ने रनवे पर तेल के टैंकर खड़े कर दिए. अब विमान का लाहौर में उतरना नामुमकिन था.

उधर, पायलट ने गुरबख्श से कहा कि विमान में ईंधन कम हो गया है, आसपास केवल अमृतसर ही ऐसी जगह है जहाँ इसे उतारा जा सकता है. पायलटों के कहने पर आखिरकार गुरबख्श विमान को अमृतसर में उतरने देने पर तैयार हो गया. विमान दिन के करीब डेढ़ बजे अमृतसर में उतरा.
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उतरते ही हाईजैकर गुरबख्श सिंह ने अपनी मांगों की लिस्ट क्रू के जरिये सरकार तक पहुंचाई. इसमें पहली शर्त थी कि वह अकाली दल के तत्कालीन मुखिया संत हरचरण सिंह लोंगोवाल और जरनैल सिंह भिंडरावाले के प्रतिनिधियों की मौजूदगी में ही सरकार से बात करेगा. उसकी अन्य प्रमुख मांगे थीं कि पंजाब विधानसभा को तुरंत भंग किया जाए, 1981 में विमान हाईजैक करने वाले गजेंद्र सिंह को रिहा किया जाए, 50 लाख रुपए उसे अमेरिकी डॉलर में दिए जाएँ, साथ ही ऑल इंडिया रेडियो पर उसका संबोधन करवाया जाए. तब जाकर वो यात्रियों को छोड़ेगा.

इधर दिल्ली में इंदिरा गांधी सरकार कमांडो कार्रवाई पर विचार करने लगी. उधर, अमृतसर में हरचरण सिंह लोंगोवाल ने सरकार को भरोसे में लेकर तुरंत अकाली दल के तत्कालीन महासचिव और विधायक प्रकाश सिंह मजीठा को गुरबख्श सिंह से मिलने एयरपोर्ट भेजा. मजीठा ने 2 घंटे तक गुरबख्श को समझाया, उसे कुछ शर्तें मान लिए जाने का भरोसा भी दिलाया. गुरबख्श ने मजीठा की बात मान ली और समर्पण कर दिया. लेकिन, समर्पण के दौरान जब कपड़े में लिपटे हुए बम के ऊपर से कपड़ा हटाया गया तो सभी हैरान रह गए. उस कपड़े के अंदर पिलास्टिक की बॉल थी. यानी एक प्लास्टिक की बॉल की दम पर गुरबख्श ने प्लेन हाईजैक कर लिया था. गुरबख्श सिंह को विमान हाईजैक मामले में करीब ढाई साल की सजा हुई.
क्यों किया था विमान हाईजैक? गुरबख्श ने 23 साल बाद बतायाहर घटना के पीछे कोई न कोई वजह होती है. हिंद समाचार समूह के मुखिया लाला जगत नारायण सिंह की हत्या की वजह से भिंडरावाले को गिरफ्तार किया गया था. भिंडरावाले की गिरफ्तारी वजह बनी प्लेन हाईजैक की. और प्लेन हाईजैक के चलते इंदिरा गांधी सरकार ने वो फैसला लिया जिसके कारण गुरबख्श सिंह ने 04 अगस्त, 1982 को प्लेन हाईजैक कर लिया.
साल 2005 में यानी 23 साल बाद गुरबख्श सिंह मीडिया के सामने आए. और उन्होंने बताया कि क्यों प्लेन हाईजैक किया था. ट्रिब्यून इंडिया के मुताबिक गुरबख्श ने बताया,
सितंबर 1981 में जब 5 लोगों ने कृपाण की दम प्लेन हाईजैक कर लिया था. उसके बाद इंदिरा गांधी की सरकार ने प्लेन में कृपाण ले जाने पर बैन लगा दिया था. यह सिख धर्म का अपमान था. इस फैसले के विरोध में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमिटी के तत्कालीन मुखिया गुरचरण सिंह तोहरा ने कहा था कि एक खिलौने से भी प्लेन हाईजैक किया जा सकता है. मैंने उनकी बात को सच साबित करने के लिए विमान को हाईजैक करने जैसा बड़ा कदम उठाया.
नोट : बता दें कि सिखों को डोमेस्टिक फ्लाइट में कृपाण ले जाने की अनुमति थी, लेकिन केवल चेक इन बैगेज में. ‘इन पर्सन’ या ‘हैंड बैगेज’ में ले जाना अलाउड नहीं था. हालांकि, मार्च 2022 में केंद्र सरकार ने सिखों को यात्रा के दौरान भी कृपाण रखने की अनुमति दे दी.
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