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दादरा और नगर हवेली भारत का हिस्सा कैसे बना?

कौन बना दादरा और नगर हवेली का 1 दिन का पीएम?

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दादरा और नगर हवेली की आजादी के लिए भारतीय सेना की जरूरत ही नहीं पड़ी | फाइल फोटो: इंडिया टुडे
1 अगस्त 2022 (Updated: 1 अगस्त 2022, 08:19 IST)
Updated: 1 अगस्त 2022 08:19 IST
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वास्को डी गामा जब भारत आया तो उसे कालीकट के राजा से ज्यादा घास नहीं मिली. लेकिन, उसने अपनी कोशिश जारी रखी. और कुछ ही समय में पुर्तगाली भारत में पैर जमाने वाले पहले यूरोपियन बन गए. कालीकट से शुरुआत कर पुर्तगाली गोवा पहुंचे. और इसके बाद दमन दीव से होते हुए उन्होंने दादरा और नगर हवेली पर भी कब्ज़ा जमा लिया. दादरा और नगर हवेली पर जब पुर्तगालियों ने कब्ज़ा किया तो वहां मराठा साम्राज्य का राज था. इसके बाद दादरा नगर हवेली एक लम्बे इतिहास से गुजरते हुए 1947 में पहुंचा. भारत को आजादी मिलने के वक्त भी यहाँ पुर्तगालियों का ही कब्ज़ा था. दादरा नगर हवेली को पुर्तगालियों के कब्जे से कैसे आजादी मिली? आधिकारिक रूप से भारत का हिस्सा बनने के लिए दादरा नगर हवेली को एक दशक का समय क्यों लग गया? साथ ही जानेंगे कि कौन था दादरा नगर हवेली का एक दिन का प्रधानमंत्री.

'दादरा नगर हवेली' कैसे पुर्तगालियों के कब्जे में आया?  

सन 1200 के आसपास 'दादरा नगर हवेली' पर वहां के कोली सरदारों का राज था. 1262 में राजस्थान के राजपूत राजकुमार रामसिंह ने कोली सरदारों को हराकर इस पर कब्जा कर लिया. रामसिंह ने खुद को रामनगर के शासक के रूप में स्थापित किया, रामनगर इस समय दादरा नगर हवेली में धरमपुर नाम से जाना जाता है. रामसिंह ने रामनगर में 8 गांवों को जोड़ा. जिनमें से एक 'नगर हवेली' भी था. रामनगर की राजधानी सिलवासा बनाई गई. इस पूरे क्षेत्र में राजपूतों ने करीब 400 साल राज किया.

फाइल फोटो: आजतक

17 वीं सदी की शुरुआत में रामनगर पर मराठाओं का राज हो गया गया, लेकिन राजपूत राजा रामसिंह के वंशज सोमशाह राणा ने 1690 में इस पर फिर से कब्जा कर लिया. इसी दौर में पुर्तगाली भारत में लगातार अपना प्रभाव बढ़ाते जा रहा था. सन 1510 में उन्होंने बीजापुर के आदिल शाह से गोवा जीत लिया था. इसके बाद वो दमन, बॉम्बे, वसई और दीव में भी अपने पैर फैलाते चले गए. 1739 में पुर्तगालियों और मराठाओं की लड़ाई हुई. इस जंग में जीतने के बाद मराठाओं ने वसई और बॉम्बे के कई इलाके जीत लिए. पुर्तगालियों के पास सिर्फ गोवा और दमन दीव रह गया था.    

सन 1772 में मराठा नौसेना के कमांडर जानोजी धुलप ने संताना नाम के पुर्तगाली युद्धपोत को ज़ब्त कर उसे डुबा दिया था. इससे नाराज़ होकर पुर्तगालियों ने पुणे में पेशवा के दरबार में अपना राजदूत भेजा और मुआवजे की मांग की. इसी समय मराठाओं को अंग्रेजों से चुनौती मिल रही थी. पहला एंग्लो-मराठा युद्ध शुरू हो चुका था. जो 1782 में खत्म हुआ. ऐसे में मराठा अब पुर्तगालियों से जंग से बचना चाहते थे. इसीलिए 1783 में उन्होंने पुर्तगालियों को मुआवजे के तौर पर नगर हवेली के 72 गांवों से राजस्व वसूलने की पेशकश की. सौदा ये था कि पुर्तगाली संताना युद्धपोत की भरपाई पूरी होने के बाद दादरा और नगर हवेली वापस मराठाओं को दे देंगे.

फाइल फोटो: आजतक

लेकिन, हुआ इससे एकदम उल्टा. पुर्तगालियों की नियत में खोट थी. 2 साल बाद ही यानी 1785 में पुर्तगालियों ने दादरा इलाके पर भी अपना अधिकार जमा लिया. उधर, मराठा साम्राज्य में सत्ता-संघर्ष के लिए उठापटक शुरू हो गई. वे आपसी लड़ाई में ही इतने व्यस्त हो गए कि किसी को पुर्तगालियों से नगर हवेली वापस लेने का होश ही नहीं रहा. पुर्तगालियों का भाग्य और चमका और 1818 में तीसरा एंग्लो-मराठा युद्ध शुरू हो गया. इसके बाद मराठा साम्राज्य का पतन हो गया और इस तरह पुर्तगाली दादरा और नगर हवेली के पूर्ण शासक बन गए.

1 हफ्ते में पूरा दादरा और नगर हवेली कब्जा में आ गया

1947 में जब भारत ब्रिटिश शासन से मुक्त हुआ तो दादरा और नगर हवेली का सवाल उठा. यहां पुर्तगाली शासन कर रहे थे लेकिन जनता भारत के पक्ष में थी. भारत की ओर कूटनीतिक प्रयास किए गए और पुर्तगाल की सरकार से शांतिपूर्ण तरीके से गोवा और दादरा नगर हवेली सौंपने की मांग की गई. लेकिन, पुर्तगाल की सरकार ने इन इलाकों को पुर्तगाल का अभिन्न अंग बताते हुए भारत की मांग को खारिज कर दिया. इसके बाद गोवा और दादरा नगर हवेली के लोगों ने आजादी के लिए कमान अपने हाथ में ली.

फाइल फोटो: आजतक

आत्माराम नरसिंह करमालकर एक पुर्तगाली बैंक में अधिकारी थे, जिन्हें अप्पासाहेब करमलकर के नाम से भी जाना जाता था. वो गोवा की आजादी के लिए संघर्षरत थे. इसी दौरान उन्होंने महसूस किया कि गोवा की आजादी के साथ-साथ दादरा नगर हवेली को भी आजाद कराना होगा. फिर उन्होंने दादरा नगर हवेली के स्थानीय नेताओं से मुलाकात की और यहां पर भी संघर्ष जोर पकड़ने लगा.

दादरा और नगर हवेली के लोगों ने यूनाइटेड फ्रंट ऑफ गोवांस, नेशनल मूवमेंट लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन और आजाद गोमांतक दल जैसे संगठन बनाए जिन्होंने आजादी के लिए आवाज बुलंद की.

18 जून, 1954 को दादर नागर हवेली की आजादी में जुटे संगठनों की लवासा में मुलाकात हुई. यहां तय हुआ कि कोई बड़ा कदम उठाना जरूरी है. 22 जुलाई की रात यूनाइटेड फ्रंट ऑफ गोवांस के नेता फ्रांसिस मासेरिनहास और वामन देसाई के नेतृत्व में 15 स्वयंसेवकों ने दादरा क्षेत्र में घुसकर पुलिस स्टेशन पर हमला कर दिया. थाने पर महज तीन पुलिसकर्मी मौजूद थे. उसे आसानी से कब्जे में ले लिया गया. इसके बाद इन लोगों ने वहां तिरंगा फहराया और भारतीय राष्ट्रगान गाया. दादरा को 'दादरा का मुक्त क्षेत्र' घोषित कर दिया गया.

फाइल फोटो: आजतक

इसी तरह 28 जुलाई को एक दूसरे पुलिस स्टेशन पर हमला हुआ. इस तरह एक ही हफ्ते में दादरा और उसके आसपास के कई पुलिस स्टेशनों पर कब्ज़ा कर लिया गया. लेकिन इस सब के बाद भी पुर्तगालियों के गढ़ कहे जाने वाले सिलवासा पर कब्जा करना बाकी था. बताते हैं कि इसके लिए विशेष योजना बनाई गयी थी. आज की तारीख यानी 1 अगस्त, 1954 की रात क्रांतिकारियों ने सिलवासा पर कब्जा करने के लिए 3 गुट बनाए और रात में ही सिलवासा पुलिस स्टेशन पर पहुंच गए. पुलिस स्टेशन पर तीन ओर से निगरानी की जा रही थी. अचानक हमला हुआ और पुलिसकर्मियों को आत्मसमर्पण करना पड़ा. रातभर क्रांतिकारी पुलिस चौकी पर ही बने रहे. सुबह होते ही नगर हवेली को भी आजाद घोषित कर दिया गया.

फोटो: भारतीय सर्वेक्षण विभाग
आरएसएस की भूमिका 

बताया जाता है कि दादरा और नगर हवेली को आजाद कराने में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का बड़ा योगदान था. लेखक रतन शारदा ने अपनी पुस्तक ‘संघ और स्वराज’ में इसका ब्यौरा दिया है. उन्होंने लिखा है,

1954 की शुरुआत में दादरा नगर हवेली में आजादी की मांग चरम पर थी. इन्हीं दिनों में संघ के स्वयंसेवक राजा वाकणकर और नाना कजरेकर, दादरा नगर हवेली तथा दमन के आसपास के क्षेत्रों में वहां की स्थिति का जायजा लेने कई बार गए, स्थानीय लोगों से मिले जो चाहते थे कि उनका क्षेत्र भारत का हिस्सा बने.अप्रैल 1954 में आरएसएस ने नेशनल मूवमेंट लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन तथा आजाद गोमांतक दल के साथ दादरा नगर हवेली की आजादी के लिए गठबंधन किया.

फाइल फोटो: आजतक

वह आगे लिखते हैं,

1 अगस्त 1954 को पुणे के संघचालक विनायक राव आप्टे के नेतृत्व में 100 से ज्यादा स्वयंसेवकों की एक टोली ने दादरा और नगर हवेली पर धावा बोल दिया. फिर उन्होंने सिलवासा पर हमला किया और 175 पुर्तगाली सैनिकों को आत्मसमर्पण करने पर मजबूर कर दिया.

केजी बदलानी बने 1 दिन के प्रधानमंत्री

एक लंबे संघर्ष के बाद दादरा और नगर हवेली 2 अगस्त 1954 को पुर्तगाली शासन से आजाद हो गया. लेकिन, 1961 तक यहां जनता ने अपना शासन चलाया. 1954 से लेकर 1961 तक इस क्षेत्र पर लोकल लोगों द्वारा बनाई गई सिटीजन काउंसिल ने शासन किया. इसके पीछे बड़ी वजह थी कि पुर्तगाल की सरकार इस क्षेत्र से अपना अधिकार छोड़ने को तैयार नहीं थी. उसने कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर ये मामला उठाया.

पुर्तगाल इस मामले को लेकर अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) में गया. अप्रैल 1960 में ICJ ने फैसला सुनाया कि दादरा और नगर हवेली क्षेत्र पर पुर्तगाल का संप्रभु अधिकार था. इस फैसले के बाद दादरा और नगर हवेली के नेताओं ने भारत से मदद मांगी और जल्द विलय के लिए कोई कदम उठाने को कहा. तब तत्कालीन प्रधानमंत्री ने गुजरात कैडर के IAS अधिकारी केजी बदलानी को जिम्मेदारी सौंपते हुए दादरा और नगर हवेली भेजा. दादरा नगर हवेली की लोकल काउंसिल पहले ही भारत में विलय को लेकर फैसला ले चुकी थी. लेकिन, दादरा और नगर हवेली भारत में विलय हो कैसे? बड़ा सवाल था. एक गजब तरकीब निकाली गई.

प्रतीकात्मक फोटो: आजतक

लोकल काउंसिल ने केजी बदलानी को एक दिन के लिए अपना प्रधानमंत्री चुना. 11 अगस्त, 1961 को दादरा और नगर हवेली के प्रधानमंत्री केजी बदलानी ने भारतीय पीएम जवाहरलाल नेहरू के साथ एक दस्तावेज पर हस्ताक्षर किये. इस दस्तावेज में लिखा था कि आज से दादरा और नगर हवेली क्षेत्र भारत का हिस्सा होगा. इसके बाद संसद ने दादरा नगर हवेली एक्ट 1961 पास कर इसे भारत का एक केंद्र शासित प्रदेश घोषित कर दिया. हालांकि, इस फैसले से दादरा नगर हवेली के साथ-साथ पंडित नेहरू के चेहरे पर भी खुशी थी. लेकिन, अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस फैसले से काफी समय तक नाखुश रहा. उसने दादरा और नगर हवेली के भारत में विलय को 13 साल बाद 1974 में मान्यता दी. साल 2019 में दादरा नगर हवेली और दमन दीव को भारत सरकार ने संयुक्त रूप से एक केंद्र शासित प्रदेश बना दिया.

वीडियो देखें : जब जिम कॉर्बेट और सुल्ताना डाकू का आमना-सामना हुआ?

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