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गोरखा राइफल्स के 233 जवानों को आतंकियों से कैसे छुड़ाया?

UN पीस कीपिंग फ़ोर्स के तहत सिएरा लियॉन पहुंचे भारतीय सैनिकों को आतंकियों की कैद से छुड़ाने के लिए ऑपरेशन खुकरी को अंजाम दिया गया था.

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Operation Khukri
साल 2000 में संयुक्त राष्ट्र पीस कीपिंग मिशन के तहत भारतीय फौज ने अपनी कुछ कपनियां सिएरा लियॉन में तैनात की थीं (तस्वीर: getty)
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कमल
15 जुलाई 2022 (Updated: 14 जुलाई 2022, 08:05 AM IST) कॉमेंट्स
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साल 2000, 2 मई की तारीख थी. मेजर जनरल राजपाल पुनिया की नींद टूटती है. सामने ‘सिस्टर’ खड़ी थीं, स्थानीय कबीले की एक लड़की, जिसे पुनिया अपनी बहन जैसा मानते थे. 
सिस्टर मेजर पुनिया को कर्नल मार्टिन का भेजा एक सन्देश देती हैं. कर्नल मार्टिन विद्रोही गुट, रेवोलुशनरी यूनाइटेड फ्रंट, RUF के लीडर थे. उन्होंने संदेश भेजा था कि 9 बजे टाउन हॉल में RUF के विद्रोही समर्पण करेंगे. कई दिनों से इस आत्मसमर्पण की तैयारी चल थी.

पुनिया तैयार होकर टाउन हॉल की तरफ बढ़ते हैं. वहां उनकी मुलाक़ात RUF के एक दूसरे लीडर मेजर कुपोइ से होती है. कुपोइ मेजर पुनिया से बैठने को कहते हैं. सबको कर्नल मार्टिन के आने का इंतज़ार था, ताकि समर्पण की प्रक्रिया शुरू हो सके. मख़मली सोफे पर बैठते ही मेजर पुनिया को एक जोर की आवाज सुनाई देती है. लोहा, लोहे से टकराने की. टाउन हॉल का बड़ा सा लोहे का गेट बंद कर दिया गया था. कुछ देर पहले तक मुस्कुरा रहे मेजर कुपोइ का चेहरा एकदम गंभीर हो जाता है. उनके साथ आए 10 -12 लड़के पीठ से पीछे से बन्दूक निकालते हैं और सारी बंदूकें मेजर पुनिया की तरफ तन जाती हैं.

मेजर कुपोइ का चेहरा चमकने लगा था. मानों उन्होंने किसी फरार अपराधी को धर पकड़ा हो. मेजर पुनिया को अब तक कुछ समझ नहीं आया था, वो विद्रोहियों का समर्पण कराने आए थे और अब खुद ही बंधक बन गए थे. पुनिया, मेजर कुपोइ को समझाने की कोशिश करते हैं. कुपोइ उनके पास आकर उनके कंधे की तरफ इशारा करते हैं. वहां इंडिया लिखा हुआ था. इसके बाद कुपोइ चिल्लाते हैं, “खून का बदला खून”.

तिरंगे की इज्जत

कुछ देर बाद दरवाजा खुलता है और एक जाना पहचाना चेहरा इंटर करता है. सिस्टर को देखकर मेजर पुनिया को कुछ तसल्ली होती है. तभी उनकी नजर सिस्टर के दाएं तरफ लटके रॉकेट लांचर पर जाती है. और मन में एक आवाज उठती है,

”मेजर तुम इन्हें अपनी सिस्टर बनाकर आग से खेल रहे थे, बिना ये जाने कि वो असल में RUF की सिस्टर थीं”

मेजर जनरल राजपाल पुनिया (तस्वीर: PTI)

दोपहर होते-होते पुनिया और उनके साथ आए लोगों को एक बैरेक में बंद कर दिया जाता है. खाने का कोई इंतज़ाम नहीं था. इसलिए पुनिया, मेजर कुपोइ से दरख्वास्त करते हैं कि उनके कैम्प से कुछ खाने का सामान मंगा लें. कुपोइ मेजर पुनिया के साथ आए ड्राइवर को आर्मी कैंप की तरफ भेज देते हैं. वहां का नजारा भी कमोबेश ऐसा ही था. RUF विद्रोहियों ने कैम्प को चारों तरफ से घेर लिया था.

लल्लनटॉप को और करीब से जानें

दोपहर से तनाव की स्थिति बनी हुई थी. RUF के विद्रोहियों ने कैप्टन सुनील को बंधक बना लिया था और वो भारतीय जवानों से हथियार डालने को कह रहे थे. लेकिन भारतीय जवान इसके लिए तैयार नहीं थे. कैप्टन सुनील की जान खतरे में थी लेकिन वो चिल्लाते हुए कह रहे थे,

“कोई भी हथियार नहीं डालेगा, चाहे ये मुझे गोली ही क्यों न मार दें. किसी भी हाल में हमारे तिरंगे की इज्जत कम नहीं होनी चाहिए”

साल 2000 में ये घटनाक्रम तब हो रहा था जब कारगिल युद्ध खत्म हुए एक साल भी नहीं हुआ था. लेकिन पूरे देश को इसकी जरा भी खबर नहीं थी कि भारत के 233 जवानों को एक रिबेल आर्मी ने बंधक बना लिया था. क्यों?

इसलिए क्योंकि ये सब भारत की जमीन पर नहीं बल्कि यहां से लगभग 10 हजार किलोमीटर दूर अफ्रीका की धरती पर हो रहा था. पश्चिमी अफ्रीका का एक देश है, सिएरा लियॉन. साल 2000 में UN पीस कीपिंग फ़ोर्स के तहत भारत के जवान सिएरा लियॉन में तैनात थे. और देश में शांति बनाने की कोशिश कर रहे थे. लेकिन हुआ कुछ यूं कि रिबेल आर्मी ने भारत के जवानों को बंधक बना लिया. इन जवानों को छुड़ाने के लिए तब एक मिलिटरी ऑपरेशन को अंजाम दिया गया था. विदेशी जमीन पर किया गया भारतीय सेना का सबसे बड़ा रेस्क्यू ऑपरेशन.

बच्चों को युद्ध में धकेला 

ऑपरेशन खुकरी (Operation Khukri) के बारे में में जानने से पहले थोड़ा भूगोल और इतिहास को समझते हैं. नक़्शे पर नजर डालिए. अफ्रीका के अफ्रीका के पश्चिमी तट पर बसा एक देश है, सिएरा लियॉन. जिसकी राजधानी है फ्रीटाउन. इसकी सीमा अटलांटिक महासागर से लगती है. और पड़ोस में जो देश हैं उनका नाम है, रिपब्लिक ऑफ गिनी और रिपब्लिक ऑफ लिबेरिया.

RUF युद्ध के लिए बच्चों का इस्तेमाल करता है (तस्वीर: AP)

1961 तक सिएरा लियॉन ब्रिटिश कॉलोनी हुआ करता था. अंग्रेज़ गए तो सिएरा लियॉन के कबीलों में सत्ता के लिए आपसी खींचतान शुरू हो गई. 1991 आते-आते हालात ऐसे बने कि देश में गृह युद्ध छिड़ गया. विद्रोही गुटों से सबसे बड़ा गुट था RUF. जिसने सिएरा लियॉन के पूर्वी इलाकों पर कब्ज़ा कर रखा था. RUF छोटे-छोटे बच्चों को नशे का आदि बनाकर उन्हें युद्ध में इस्तेमाल करता था. 

साल 1999 में RUF ने सिएरा लियॉन की राजधानी फ्रीटाउन को अपने कब्ज़े में ले लिया. RUF ने फ्रीटाउन में भयंकर तबाही मचाई. परिवारों को मौत के घाट उतारा गया, घर जला डाले गए. RUF ने छोटे-छोटे बच्चों को भी नहीं छोड़ा. हजारों बच्चों के हाथ काट डाले. ये सब ख़बरें जब दुनिया के सामने आई तो ये मसला संयुक्त राष्ट्र में उठा. तय हुआ कि सिएरा लियॉन में शांति बनाने के लिए UN अपनी पीस कीपिंग फोर्सेस भेजेगा. इस पीस कीपिंग फ़ोर्स का नाम था, यूनाइटेड नेशंस असिस्टेंस इन सिएरा लियॉन (UNAMSIL). इसमें चार देशों के सेनाएं शामिल थीं. इंडिया, घाना, ब्रिटेन और नाइजीरिया.

भारत की तरफ से 5/8 गोरखा राइफल, 14th और 23rd मैकेनाइज़्ड इन्फेंट्री, UNAMSIL का हिस्सा थीं. इसके अलावा दो राइफल कंपनी को मिलाकर एक क्विक रिएक्शन फ़ोर्स और स्पेशल फोर्ड 9th पैरा के कमांडो भी इस मिशन में शामिल थे. इंडियन धड़े का नाम था, INDBATT-1.

गोरखा राइफल के जवानों को बनाया बंधक 

पीस कीपिंग फ़ोर्स ने सिएरा लियॉन पहुंचकर मध्यस्थता की शुरुआत की. ब्रिज, स्कूलों का निर्माण कर वहां की जनता में विश्वास जगाया. धीरे-धीरे RUF से वार्ता कर उनके आत्मसमर्पण की तैयारियां भी शुरू कर दीं. फिर 2000 के मई महीने में कुछ ऐसा हुआ कि बात पटरी से उतर गई.

सिएरा लियॉन में डिस्पैच किया गया MI-८ हेलीकॉप्टर (तस्वीर: armedforces.nic.in)

नक्शा देखकर जगहों पर ध्यान देते चलिए. इंडियन आर्मी की दो कंपनियां कैलाहुन में तैनात थी. इसके अलावा दारु नाम की एक जगह पर बाकी भारतीय फोर्सेस जुटी हुई थीं. ये दो इलाके RUF के गढ़ थे. और यहीं उनके आत्मसमर्पण की बात चल रही थी. 2 मई को कैलाहुन में मेजर राजपाल पुनिया और RUF लीडर कर्नल मार्टिन की एक मुलाक़ात तय थी. जिसके बाद आत्मसमर्पण होना था.

लेकिन उससे एक दिन पहले एक और घटना हुई. 1 मई की बात है. एक दूसरी जगह मकेनी में UNAMSIL की केन्याई फोर्सेस और RUF के बीच एक झड़प हुई और इसमें RUF के 20 के करीब लड़के मारे गए. भारतीय धड़े को मकेनी में हुई घटना के बारे में कुछ पता नहीं था, इसलिए वो जब आत्मसमर्पण कराने पहुंचे तो RUF के ट्रैप में फंस गए.

इसके बाद हालात लगातार बिगड़ते गए. अगले 10 दिनों में RUF ने केन्याई फोर्सेस के 500 जवानों को हथियार डालने पर मजबूर कर दिया. और अब वो राजधानी फ्रीटाउन की और बढ़ने लगे थे. UNAMSIL ने उन्हें पीछे हटने पर मजबूर कर तो दिया लेकिन कैलाहुन में गोरखा राइफल्स की दो कंपनियां अभी भी बंधक बनी हुई थी. RUF उनसे आत्मसमर्पण करने के लिए कह रही थी और गोरखा जवान हथियार डालने को तैयार नहीं थे. इसी के चलते अगले एक दो महीनों तक स्टेलमेट की स्थिति बनी रही.

ऑपरेशन खुकरी 

अंत में कैलाहुन से भारतीय जवानों को छुड़ाने के लिए एक ऑपरेशन तैयार किया गया, जिसका नाम था ऑपरेशन खुकरी. 13 जुलाई को ऑपरेशन की शुरुआत हुई. पहले फेज में UNAMSIL की फोर्सेस को दारु और केनेवा में इकठ्ठा किया गया. इस काम में इंडियन एयर फ़ोर्स और रॉयल एयर फ़ोर्स ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की. क्योंकि ये दोनों इलाके UN के नियंत्रण में नहीं आते थे. इसलिए यहां जमीन के रास्ते फ़ोर्स भेजना बहुत मुश्किल था. 14 जुलाई की रात तक ये काम पूरा कर लिया गया.

सिएरा लियॉन का नक्शा जिसमें कैलाहुन और दारु का रास्ता देख सकते हैं (तस्वीर: Wikimedia Commons) 

मिशन को कंडक्ट करने के लिए जो रणनीति अपनाई गयी. उसके लिए एक शार्ट फॉर्म समझिए, VUCA यानी वोलैटिलिटी, अनसरटेनिटी, कम्प्लेक्सिटी और अम्बिगुइटी. VUCA का आईडिया 1987 के आसपास US आर्मी वॉर कॉलेज से निकला था. और इसका इस्तेमाल ऐसी जगहों पर होता है जहां के भूगोल या भाषा के बारे में बहुत कम जानकारी हो. ऑपरेशन खुकरी के लिए भी इसी रणनीति को अपनाया गया था. रास्तों की जानकारी के लिए टूरिस्ट मैप्स का उपयोग किया गया. साथ ही पड़ोसी देशों लिबेरिया और गिनी से जो जानकारी मिल सकती थी, उसे भी इस्तेमाल में लाया गया. ऑपरेशन की शुरुआत से पहले 2 पैरा के कमांडोज़ को जानकारी जुटाने के लिए भेजा गया. ये लोग भेष बदलकर 7 दिन तक RUF के इलाके में रहे.

इसके बाद कैलाहुन में फंसी कंपनी तक मिशन की सूचना पहुंचाई गयी. इसके लिए सैटेलाइट फोन का इस्तेमाल किया गया. सारी बातचीत मलयालम भाषा में की जाती थी, ताकि RUF इसे मॉनिटर न कर सके. मिशन एक ऑब्जेक्टिव समझने के लिए मैप पर नजर डालिए. कैलाहुन से 233 लोगों को निकालना था. और उन्हें वापिस दारु तक पहुंचाना था. इन दोनों के बीच में एक जगह पड़ती है, पेंदेंबु. इस पूरे इलाके में जगह-जगह पर RUF की टुकड़ियां थीं. इसलिए पैरा कमांडोज़ कैलाहुन में उतरकर गोरखा राइफल्स के जवानों को बचाते, और दारु से एक कॉलम मूव करते हुए पूरे रास्ते की देखरेख करता. इसके बाद ये दोनों कॉलम पेंदेंबु में मिलते और वहां से सबको एयर लिफ्ट कर लिया जाता. इस पूरे दौरान इन लोगों को IAF और RAF से सपोर्ट मिलता रहता.

मिशन को अंजाम कैसे दिया गया?

15 जुलाई, आज की तारीख. सुबह के 6 बजे थे. 2 पैरा के 80 कमांडो हेलीकॉप्टर की मदद से RUF के इलाके में उतरे. शुरुआती हमले में 2 पैरा के 40 कमांडो कैलाहुन तक पहुंचे और उन्होंने टाउन सेंटर को अपने कब्ज़े में ले लिया. इन लोगों ने फंसे हुए जवानों को अपने साथ लिया और वापस चल पड़े. अचानक हुए हमले ने RUF को चौंका दिया था. लेकिन कुछ देर बाद संभलते हुए इन्होंने रेस्क्यू टुकड़ी का पीछा करना शुरू किया. आगे और पीछे दोनों तरफ से खतरा था. इसलिए पैरा कमांडोज़ की एक टुकड़ी आगे और एक दूसरी टुकड़ी पीछे से चल रही थी. कैलाहुन से कुछ पांच किलोमीटर निकलने के बाद पैरा टुकड़ी ने रास्ते में माइंस बिछा दीं. जिसके चलते RUF को काफी नुक्सान हुआ और उन्होंने पीछा करना छोड़ दिया.

ऑपरेशन खुकरी में शामिल एयर फ़ोर्स दल (तस्वीर: bharat-rakshak.com)

लेकिन ये RUF की सिर्फ एक टुकड़ी थी. उनके बाकी साथी जगह-जगह पर डेरा डाले हुए थे. मौसम ख़राब था. लगातार बारिश हो रही थी. इसलिए एयर सपोर्ट मिलने में दिक्कत हो रही थी. और खतरा था कि ये लोग जंगल में ही न फंसकर रह जाएं. सुबह साढ़े नौ बजे मौसम साफ़ हुआ तो हेलिकॉप्टर्स ने एयर सपोर्ट देना शुरू किया.

RUF को जंगली रास्तों का पूरा ज्ञान था. इसलिए वो जगह जगह पर स्नाइपर लेकर बैठे हुए थे. जिसके चलते रेस्क्यू टुकड़ी बहुत धीरे-धीरे मूव कर पा रही थी. इन लोगों को जल्द से जल्द पेंदेंबु पहुंचना था. लेकिन इनके सामने एक और बड़ी मुश्किल थी. रास्ते में एक 8 फ़ीट की खाई थी जिसे दूसरी तरफ से RUF के लड़ाकों ने घेर रखा था. सामने आते ही ये लोग सीधा निशाना बनते. यहां एक बार दोबारा मिलिट्री के MI -8 हेलीकॉप्टर काम आए. उन्होंने ऊपर से गोलाबारी कर न सिर्फ RUF का सफाया किया, बल्कि पुल बनाने का सामान गिराकर रास्ता बनाने में भी मदद की.

दो तरफ से आई फौज़

याद कीजिए ये लोग जब आगे बढ़ रहे थे, तब एक कॉलम दारु से पेंदेंबु तक आ रहा था. ताकि वहां पहुंचकर पेंदेंबु पर कब्ज़ा कर सके. इनके बिना एयरलिफ्ट संभव नहीं था. इस कॉलम में शामिल थे, QRC यानी क्विक रिएक्शन कम्पनी, मैकेनाइज़्ड इन्फेंट्री, और गोरखा राइफल्स के वो जवान जो दारु में पहले से तैनात थे. ये लोग सुबह 6.20 पर रवाना हुए. रास्ते में इन लोगों को भी भारी गोलाबारी का सामना करना पड़ा.

सिएरा लियोन में IAF बेस पर Mi-35 गनशिप (तस्वीर: bharat-rakshak.com)

दोपहर डेढ़ बजे इन लोगों ने दारू पहुंचकर सभी पुलों और रास्तों को अपने कब्ज़े में ले लिया. पुलों को इसलिए क्योंकि RUF अगर उन्हें उड़ा देते तो कैलाहुन से जो रेस्क्यू टुकड़ी वापस आ रही थी, वो पेंदेंबु तक नहीं पहुंच पाती. पेंदेंबु पर कंट्रोल कर इन्होंने डिफेंसिव पोजीशन ले ली. कैलाहुन से आ रही टुकड़ी को पहुंचने में शाम तक का समय लग सकता था. इसलिए पेंदेंबु को डिफेंड करना जरूरी था.

साढ़े चार बजे पेंदेंबु में तैनात लोगों में से एक टुकड़ी कैलाहुन की ओर बढ़ी. ताकि कैलाहुन से आ रहे जवानों से लिंक स्थापित कर सकें. 5.30 पर दोनों टुकड़ियों की मुलाकात हुई. और 7 बजे तक सब पेंदेंबु पहुंच गए. रात हो चुकी थी. अंधेरे में इतने लोगों को एयरलिफ्ट करना खतरे से खाली नहीं था. इसलिए तय हुआ कि सुबह तक पेंदेंबु में ही रुकेंगे. रात भर RUF की तरफ से हमले की कई बार कोशिश हुई लेकिन सेना ने डिफेंसिव पोजीशन अच्छे से तैयार की थी. जिसके चलते RUF लड़ाके सफल नहीं हो पाए.

सुबह 7 बजे एयरलिफ्ट की शुरुआत हुई. और 10 बजे तक बंधक जवानों को पेंदेंबु से एयरलिफ्ट कर लिया गया. इसके बाद बाकी बचे कॉलम ने वापिस दारु का रुख किया, रास्ते में कई बार उनकी RUF से मुठभेड़ हुई लेकिन 16 जुलाई शाम साढ़े पांच बजे ये लोग वापिस दारू पहुंच गए.

ऑपरेशन खुकरी का असर 

इस पूरे ऑपरेशन में सिर्फ एक जवान की जान गई थी. लेकिन इस मिशन की सफलता का पैमान ये नहीं था. अपने देश में लड़ना और बात है और एक अनजाने देश में जाकर इतने खतरनाक मिशन को सफलता पूर्वक पूरा करना और बात है. इस मिशन के चलते RUF को अब तक की सबसे बड़ी हार मिली थी. जिसने न सिर्फ UNAMSIL फोर्सेस का हौंसला बढ़ाया बल्कि UN की गरिमा को एक बार फिर से स्थापित किया. 

ऑपरेशन खुकरी में भाग लेने वाले भारतीय जवान (तस्वीर: IAF)

कई लोगों का मानना था कि UN बिना दांत की संस्था है, जिसकी पीस कीपिंग फ़ोर्स सिर्फ नाम की है. इस मिशन ने दिखाया कि चार देशों की फौज मिलकर कितने अच्छे से काम कर सकती हैं, अगर इरादा शांति का हो तो. सेना की बात हो तो इंडियन पीस कीपिंग फ़ोर्स का जिक्र कम ही आता है. लेकिन ब्लू बैरे के नाम से जाने जाने वाले इन जवानों के लिए इस मिशन का सबसे बड़ा हासिल था, वो स्वागत जो दारु पहुंचने पर इन लोगों को मिला. भुखमरी और गरीबी से पीड़ित, सिएरा लियॉन के नागरिकों को पहली बार लगा कि वो इस दुनिया का हिस्सा हैं. और कोई है इस दुनिया में जो उनके लिए अपना खून बहाने के लिए तैयार है. 

इस मिशन के बारे में और जानना चाहते हैं तो मेजर जनरल राजपाल पुनिया और दामिनी पुनिया की किताब ऑपरेशन खुकरी पढ़ सकते हैं. इसके अलावा सिएरा लियॉन के बारे में जानना चाहते हैं तो लियनार्डो डी कैप्रियो की एक फिल्म देख सकते हैं. नाम है “द ब्लड डायमंड”.

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