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अमेरिका में अप्रवासियों की एक और मुसीबत, ट्रंप सरकार सबके सोशल मीडिया अकाउंट देखेगी, वजह यहूदी हैं

हालांकि ये प्रस्ताव प्राइवेसी और फ्री स्पीच को लेकर विवादों में भी घिर गया है. कुछ नागरिक अधिकार समूहों का कहना है कि ये व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन है और इससे आप्रवासियों के साथ भेदभाव बढ़ सकता है.

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नया नियम उन लोगों पर लागू किया जाएगा जो अमेरिका में वैध स्थायी निवासी का दर्जा चाहते हैं. (फोटो- AP)

अमेरिका में डॉनल्ड ट्रंप सरकार ने 9 अप्रैल को एक नई घोषणा की. इसके तहत अप्रवासियों और गैर-नागरिकों के सोशल मीडिया अकाउंट्स की जांच की जाएगी. इसका उद्देश्य ये सुनिश्चित करना है कि देश में प्रवेश करने वाले लोग यहूदी-विरोधी (एंटी-सेमिटिक) विचारधारा या ऐसी गतिविधियों से जुड़े न हों. ये कदम हाल के वर्षों में बढ़ती यहूदी-विरोधी घटनाओं को देखते हुए उठाया जा रहा है.

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अमेरिकी की सिटिजनशिप और इमिग्रेशन सर्विस (USCIS) ने कहा कि वो अब सोशल मीडिया पर "यहूदी विरोधी गतिविधि" पर नजर रखेगी. साथ ही यहूदी व्यक्तियों के शारीरिक उत्पीड़न को आधार मानते हुए इमिग्रेशन का लाभ देने से इनकार भी कर सकती है. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक डिपार्टमेंट ऑफ होमलैंड सिक्योरिटी ने एक बयान में कहा,

"आज से अमेरिकी सिटिजनशिप और इमिग्रेशन सर्विस (USCIS) सोशल मीडिया पर विदेशियों की यहूदी विरोधी गतिविधि पर नजर रखेगी. यही नहीं, यहूदी व्यक्तियों के शारीरिक उत्पीड़न को इमिग्रेशन लाभ अनुरोधों को अस्वीकार करने के आधार के रूप में विचार करना भी शुरू किया जाएगा."

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नया नियम उन लोगों पर लागू किया जाएगा जो अमेरिका में वैध स्थायी निवासी का दर्जा चाहते हैं. इसके साथ-साथ ये विदेशी छात्रों और यहूदी विरोधी गतिविधि से जुड़े एजुकेशनल इंस्टीट्यूट से जुड़े लोगों पर भी लागू होगा. एजेंसी ने कहा,

"बाकी दुनिया के आतंकवाद समर्थकों के लिए अमेरिका में कोई जगह नहीं है."

अमेरिका के इस नए कदम का मकसद ये पता लगाना है कि क्या कोई व्यक्ति घृणा फैलाने वाली विचारधारा का समर्थन करता है. या ऐसी गतिविधियों में शामिल है जो अमेरिकी मूल्यों के खिलाफ हो. खास तौर पर, यहूदी-विरोधी भावनाओं पर नजर रखी जाएगी. क्योंकि हाल के वर्षों में अमेरिका में यहूदी समुदाय के खिलाफ हिंसा और नफरत में वृद्धि देखी गई है.

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हालांकि, ये प्रस्ताव प्राइवेसी और फ्री स्पीच को लेकर विवादों में भी घिर गया है. कुछ नागरिक अधिकार समूहों का कहना है कि ये व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन है और इससे अप्रवासियों के साथ भेदभाव बढ़ सकता है. उनका तर्क है कि सोशल मीडिया पोस्ट को संदर्भ से बाहर समझा जा सकता है, जिस वजह से निर्दोष लोग भी निशाने पर आ सकते हैं. दूसरी ओर, समर्थकों का मानना है कि ये राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए जरूरी है, खासकर तब जब आतंकवाद और चरमपंथ एक बड़ी चुनौती बने हुए हैं.

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