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सुप्रीम कोर्ट ने अरावली के अपने ही फैसले पर लगाई रोक, 21 जनवरी को होगी सुनवाई

Supreme Court on Aravalli: सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि ऑर्डर को लेकर और सरकार की भूमिका को लेकर कई गलतफहमियां थीं. जिसके बाद CJI Surya Kant की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यी पीठ ने अपने 20 नवंबर के फैसले पर रोक गया दी.

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चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा कि अरावली से जुड़े मुद्दों में अस्पष्टताओं को दूर करने और स्पष्ट, निर्णायक दिशानिर्देश देने के लिए एक स्वतंत्र एक्सपर्ट की राय की जरूरत थी. (फोटो- X)

सुप्रीम कोर्ट ने अरावली पहाड़ियों (Aravalli Hills) की परिभाषा और खनन से जुड़े विवाद पर बड़ा फैसला सुनाया है. कोर्ट ने 20 नवंबर 2025 में दिए गए अपने ही फैसले को फिलहाल स्थगित कर दिया है. साथ ही कोर्ट ने फैसले पर आधारित एक्सपर्ट कमेटी की सिफारिशों को भी होल्ड कर दिया है.

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CJI सूर्य कांत, जस्टिस जेके महेश्वरी और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा,

"हम निर्देश देते हैं कि कमेटी की सिफारिशें और उसके बाद सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई टिप्पणियां/निर्णय अगली सुनवाई तक स्थगित रहेगी. मामला अब 21 जनवरी 2026 को फिर से उठाया जाएगा."

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बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक कोर्ट का ये आदेश व्यापक विरोध-प्रदर्शनों और पर्यावरणविदों की चिंताओं के बीच आया है. सुप्रीम कोर्ट में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्र सरकार की तरफ से कहा,

"ऑर्डर को लेकर और सरकार की भूमिका को लेकर कई गलतफहमियां थीं. एक एक्सपर्ट कमिटी बनाई गई थी, जिसने अपनी रिपोर्ट दी और उस रिपोर्ट को कोर्ट ने स्वीकार कर लिया."

कोर्ट ने ये भी कहा कि पिछले महीने मंजूर की गई सख्त सीमांकन (restrictive demarcation) की जांच की जरूरत है. इसमें ये पता लगाना चाहिए कि क्या इससे उन इलाकों का दायरा बढ़ जाएगा, जहां माइनिंग जैसी गतिविधियों को इजाजत मिल सकती है.

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CJI सूर्य कांत ने कहा,

"नए निर्धारित अरावली क्षेत्र में सस्टेनेबल माइनिंग या रेगुलेटेड ओवरसाइट के साथ खनन करने से, चाहे कितनी भी सख्त निगरानी क्यों न हो, क्या कोई प्रतिकूल प्रभाव पड़ेंगे? इस पहलू की जांच की जा सकती है."

इसके बाद कोर्ट ने केंद्र सरकार के साथ-साथ संबंधित राज्य सरकारों (दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात) को नोटिस जारी किया. अंतरिम आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पहले दिए गए कोर्ट के निर्देश और पिछली कमेटी की सिफारिशें फिलहाल निलंबित (in abeyance) रहेंगी.

ये मामला सुप्रीम कोर्ट में सुओ मोटू (स्वत: संज्ञान) के तहत चल रहा है, जिसमें अरावली रेंज की परिभाषा को लेकर उठे सवालों पर सुनवाई हो रही है. मुख्य न्यायाधीश सूर्य कांत, जस्टिस जेके महेश्वरी और जस्टिस एजी मसीह की बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही है.

क्या था नवंबर 2025 का फैसला?

नवंबर 2025 में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की बेंच ने पर्यावरण मंत्रालय की कमेटी की सिफारिशों को स्वीकार किया था. कमेटी ने अरावली पहाड़ी को परिभाषित करते हुए कहा था कि आसपास की जमीन (लोकल रिलीफ) से 100 मीटर या उससे ज्यादा ऊंचाई वाली कोई भी भू-आकृति अरावली हिल मानी जाएगी. 500 मीटर के दायरे में दो या ज्यादा ऐसी पहाड़ियां होने पर उसे अरावली रेंज कहा जाएगा.

कोर्ट ने इस परिभाषा के आधार पर अरावली क्षेत्र में नए खनन पट्टों (mining leases) पर रोक लगाई थी. कोर्ट ने कहा था कि पूर्ण प्रतिबंध लगाने से अवैध खनन, माफिया और अपराध बढ़ सकते हैं. इसलिए केवल कोर में खनन पर रोक रहेगी, बाकी जगहों पर सतत (सस्टेनेबल) खनन की इजाजत संभव होगी.

नई परिभाषा पर क्यों उठे सवाल?

ये परिभाषा लागू होने के बाद पर्यावरणविदों, कार्यकर्ताओं और जनता में बड़ा आक्रोश फैला. दावा किया गया कि इससे अरावली के 90% से ज्यादा हिस्से (जो 100 मीटर से कम ऊंचाई वाले हैं) संरक्षण से बाहर हो सकते हैं. इससे खनन और निर्माण गतिविधियां बढ़ सकती हैं, जिससे भूजल स्तर और गिर सकता है. रेगिस्तान का विस्तार तेज हो सकता है, और वायु प्रदूषण बढ़ने की आशंका भी है.

वीडियो: राजस्थान में अवैध खनन के खिलाफ FIR, सबसे ज्यादा अरावली वाले इलाकों में उल्लंघन

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