सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने फ्री में राशन बांटने (Free Ration Distribution) को लेकर चिंता जताई है. अदालत का कहना है कि राज्यों के लिए केंद्र सरकार से फ्री राशन लेना बेहद आसान है. यह उनकी लोकप्रियता भले ही बढ़ाता हो लेकिन इसका बोझ टैक्सपेयर्स को उठाना पड़ता है. जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली बेंच ने बुधवार, 30 अप्रैल को यह टिप्पणी की.
'केंद्र से लेकर फ्री राशन बांटना आसान, लेकिन...' राज्य सरकारों को सुप्रीम कोर्ट की कड़ी फटकार
SC On Free Ration: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि रोज़गार पैदा करने और बुनियादी ढांचे का निर्माण जैसे काम भी मुफ्त राशन के बांटने जितने ही अहम हैं. जस्टिस कांत ने पूछा कि क्या देश 2025 में भी गरीबी के उसी स्तर पर अटका हुआ है, जिस पर 2011 में था, जब पिछली जनगणना हुई थी.

द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, अदालत का कहना था कि रोज़गार पैदा करने और बुनियादी ढांचे का निर्माण करने जैसे काम भी मुफ्त राशन के बांटने जितने ही अहम हैं. जस्टिस कांत ने टिप्पणी करते हुए कहा,
अब 2025 में क्या हम अभी भी ‘गरीबी’ का टैग ढो रहे हैं? राज्य कहते हैं कि हम राशन कार्ड, मुफ्त राशन जारी करने के लिए तैयार हैं, बशर्ते केंद्र इसे दे. केंद्र देगा, लेकिन किस कीमत पर? बोझ टैक्सपेयर्स पर है. हम बुनियादी ढांचे, रोजगार पैदा करने के लिए पैसा कहां से लाएंगे? यह भी ऐसे मुद्दे हैं जिस पर ध्यान दिया जाना चाहिए.
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जस्टिस कांत ने पूछा कि क्या देश 2025 में भी गरीबी के उसी स्तर पर अटका हुआ है, जिस पर 2011 में था, जब पिछली जनगणना हुई थी. इस पर याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि पिछले दशक में जनसंख्या में बढ़ोतरी के साथ ही ग़रीब लोगों की संख्या भी बढ़ी होगी. इससे पहले की सुनवाई में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि फूड सिक्योरिटी की दिक्कतों का लॉन्ग टर्म समाधान रोज़गार पैदा करना है.
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अदालत प्रवासी श्रमिकों के लिए फूड सिक्योरिटी से जुड़े एक मामले की सुनवाई कर रही थी. याचिका में केंद्र और राज्यों को कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान प्रवासी श्रमिकों के लिए फूड सिक्योरिटी, कैश ट्रांसफर और अन्य वेलफेयर वाले उपाय सुनिश्चित करने के निर्देश देने की मांग की गई थी.
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