10 फरवरी 2025. बेंगलुरु के येलहंका एयरबेस पर एयरो इंडिया (Aero India 2025) के आयोजन हुआ. यूं तो बहुत सारे विमानों ने इसमें हिस्सा लिया. लेकिन सबसे अधिक ध्यान खींचा रूस के विमान सुखोई Su-57 (Sukhoi Su-57) ने. इस विमान की मैनुवरिंग और डिजाइन के खूब तारीफ हुई. सोशल मीडिया पर इसकी तस्वीरों की बाढ़ आ गई. रूस ने भारत को यही विमान ऑफर किया. जॉइंट प्रोडक्शन और मेक इन इंडिया जैसे ऑफर्स की बात सामने आई. और अब खबर आई है कि रूस न सिर्फ भारत को अपना 5th जेनरेशन विमान देने को तैयार है, बल्कि इस विमान का सोर्स कोड तक भारत को देने पर राजी हो गया है.
Su-57 के साथ रूस दे रहा सोर्स कोड, रफाल के साथ भी नहीं मिला, भारत फिर भी क्यों नहीं खरीद रहा?
Russia न सिर्फ India को अपना 5th जेनरेशन Stealth Fighter Jet, बल्कि इस विमान का Source Code तक देने पर राजी हो गया है.

लेकिन भारत ने अब तक रूस को इस ऑफर पर कोई जवाब नहीं दिया है. जब पीएम मोदी अमेरिका की यात्रा पर थे, उसी दौरान प्रेसिडेंट ट्रंप ने कहा कि वो भारत को F-35 फाइटर जेट देंगे. यहां सवाल उठता है कि भारत के पास दो बड़े देशों से पांचवी पीढ़ी के विमान का ऑफर है. फिर भी भारत कोई फैसला क्यो नहीं ले रहा? खासकर तब जब एक देश विमान का सबसे क्रिटिकल कोड तक देने को तैयार है. तो समझते हैं कि Su-57 को लेकर भारत की हिचकिचाहट के क्या कारण हैं?

इस जेट में चीनी उपकरणों का इस्तेमाल भारत के लिए चिंता का कारण है. भारतीय वायुसेना के रिटायर्ड ग्रुप कैप्टन अजय अहलावत कहते हैं कि भारत को रूस से अच्छे संबंध रखने हैं. लेकिन साथ ही उन्होंने आगाह किया कि अगर चीन से जंग हुई तो मॉस्को शायद चीन के साथ खड़ा दिखाई देगा. Su-57 पर ग्रुप कैप्टन अहलावत कहते हैं-
Su-57 में इस्तेमाल होने वाले अधिकतर इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट्स चीन से आते हैं. लिहाजा भारत को संयम से काम लेना चाहिए. भारत के लिए Su-57 या F-35 के बीच चॉइस करने से अच्छा है कि वो अपने स्वदेशी 5th जेनरेशन विमान AMCA पर फोकस करे. हालांकि इसमें टाइमलाइन एक बहुत बड़ा चैलेंज है.
इसी तरह इंडियन एयरफोर्स के पूर्व चीफ आरकेएस भदौरिया ने भी कहा कि भारत को पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमानों का कोई अंतरिम आयात जैसा कुछ नहीं करना चाहिए. जब उनसे पूछा गया कि क्या भारत किसी दूसरे देश से कुछ जेट खरीदेगा? खासकर तब जब पाकिस्तान चीन से स्टेल्थ लड़ाकू विमान खरीद रहा है. इसपर पूर्व एयरफोर्स चीफ कहते हैं
मेरा जवाब है नहीं. अब, सरकार ने स्पष्ट रूप से AMCA पर अपना भरोसा जताया है, और अब हमें AMCA को रफ्तार देने के लिए एक राष्ट्र के रूप में सब कुछ करने की आवश्यकता है.
भदौरिया कहते हैं कि पाकिस्तान को चीन से क्या मिलने वाला है. चाहे वह J-20 हो या J-35, उन्हें ये मिलने दें. इसका अध्ययन किया जाएगा. जरूरी बात यह है कि इस बीच की अंतरिम अवधि में आप इन खतरों से कैसे निपटते हैं.
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अमेरिकन प्रतिबंधदुनिया में कोई भी देश हो, अगर उस पर अमेरिका किसी तरह के प्रतिबंध लगाता है तो निश्चित तौर पर उसे कई सारी समस्याओं का सामना करना पड़ता है. ऐसा नहीं है कि Su-57 एक बिल्कुल ही औसत फाइटर जेट हो. कई देशों की सामरिक जरूरतों को ये बखूबी पूरा करता है. कई देश इसे खरीदना भी चाहते हैं पर उन्हें डर है कि इस कारण उन्हें अमेरिका द्वारा कई तरह के प्रतिबंधों का सामना करना पड़ सकता है. ठीक यही चिंता भारत की भी है. रूस भारत का एक अहम और पुराना डिफेंस पार्टनर है. भारत के अमेरिका से भी अच्छे संबंध हैं. अगर भारत रूस से Su-57 की डील करता है तो उसे अमेरिका की नाराजगी का सामना करना पड़ सकता है. साथ ही भविष्य में पाकिस्तान और खालिस्तानी आतंकवाद जैसे मुद्दों पर भारत को अमेरिका का साथ जरूरी है. वहीं UN में पाकिस्तान को काउंटर करने में भी अमेरिकन सहयोग का अहम रोल रहता है. दूसरी तरफ रूस ने हर युद्ध में भारत की सहायता की है, तो भारत अपने पुराने दोस्त को भी नाराज नहीं कर सकता. ऐसे में भारत के लिए फिलहाल दोनों जेट्स के बीच असमंजस स्थिति बनी हुई है.
रूसी जेट्सभारत के बेड़े में पहले से रूसी फाइटर जेट्स मौजूद हैं. मिग सीरीज़ के जेट्स मसलन मिग-21, मिग-29 और इंडियन एयरफोर्स की बैकबोन माने जाने वाले सुखोई Su-30MKI फिलहाल इंडियन एयरफोर्स में अपनी सेवा दे रहे हैं. हालांकि आलोचक समय-समय पर सुखोई Su-30MKI के पुराने रडार सिस्टम की खामियां उठाते रहे हैं. और एक बड़ी दिक्कत जो रूसी जेट्स के साथ देखने को मिली, वो थी मेंटेनेंस में देरी और सप्लाई चेन का स्लो होना.

दरअसल भारत के बेड़े में मौजूद मिग विमान तब के हैं जब रूस की जगह सोवियत संघ हुआ करता था. फाइटर जेट्स बनाने वाले कारखाने देश के अलग-अलग हिस्सों में फैले थे. सोवियत संघ के विघटन के बाद ये कारखाने रूस से बाहर हो गए. इसलिए इनके मेंटेनेंस को वापस पटरी पर लाने में रूस को काफी समय लग गया.

रूस ने भारत को Su-57 के साथ उसका सोर्स कोड ऑफर किया है जो अपने आप में यूनिक है. लेकिन ये होता क्या है? नाम से तो लगता है कि ये कोई कोड होगा जिससे विमान चलता है. लेकिन ये एक ऐसा कोड है जिसे विमान का दिमाग कहा जाता है. जब भारत ने फ्रांस की कंपनी दसॉ एविएशन से रफाल खरीदा, तब दसॉ ने भारत को सोर्स कोड नहीं दिया था. इस वजह से भारत रफाल में अपने मनचाहे हथियार नहीं लगा सका. आज भी भारत को अगर रफाल में अपनी जरूरत के अनुसार कोई बदलाव करना होता है तो इसके लिए उसकी निर्भरता फ्रांस पर है.
आधुनिक फाइटर जेट्स में सोर्स कोड सिर्फ प्रोग्रामिंग नहीं बल्कि उससे कहीं ज्यादा है. एक तरह से यह विमान का दिमाग है. सोर्स कोड ये तय करता है कि जेट कैसे उड़ता है और युद्ध में कैसे ढलता है. सबसे जरूरी बात कि विमान में किसी भी तरह का बदलाव बिना सोर्स कोड के नहीं हो सकता.
कुलजमा बात ये है कि भारत के पास तीन रास्ते हैं. या तो वो अमेरिका से F-35 खरीदे, या रूस से Su-57. एक तीसरा रास्ता भी है कि इन दोनों की जगह भारत अपने 5th जेनरेशन एयरक्राफ्ट प्रोजेक्ट AMCA में निवेश करे. अब भारत कौन सा रास्ता लेता है, ये आने वाले वक्त में पता चलेगा पर एक बात तो तय है कि डॉनल्ड ट्रंप के F-35 ऑफर, और रूस के Su-57 सोर्स कोड ऑफर ने भारत को ऊहापोह में जरूर डाल दिया है.
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