सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि धार्मिक आधार पर रिजर्वेशन नहीं दिया जा सकता. शीर्ष अदालत ने 9 दिसंबर को कोलकाता हाई कोर्ट के एक फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए यह अहम टिप्पणी की. ये याचिका पश्चिम बंगाल सरकार की तरफ से दायर की गई थी.
"धर्म के आधार पर आरक्षण नहीं मिल सकता", OBC सर्टिफिकेट से जुड़े मामले में SC की टिप्पणी
इसी साल 22 मई को कोलकाता हाई कोर्ट ने साल 2010 के बाद जारी किए गए OBC सर्टिफिकेट रद्द कर दिए थे. इसके खिलाफ पश्चिम बंगाल सरकार की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी.

दरअसल 22 मई, 2024 को कोलकाता हाई कोर्ट ने 2010 के बाद से लागू सभी OBC प्रमाणपत्र रद्द कर दिए थे. हाई कोर्ट ने कई जातियों, मुख्य रूप से मुस्लिम समुदायों को राज्य की अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) सूची में शामिल करने की राज्य की नीति को खारिज कर दिया था. दी हिंदू में छपी रिपोर्ट के मुताबिक हाई कोर्ट ने कहा था,
"धर्म ही इन समुदायों को ओबीसी घोषित करने का एकमात्र क्राइटेरिया है. मुसलमानों के 77 वर्गों को पिछड़ा वर्ग के रूप में चुनना मुस्लिम समुदाय का अपमान है."
कोलकाता हाई कोर्ट के इसी फैसले के खिलाफ पश्चिम बंगाल सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी. मामले की सुनवाई जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस के वी विश्वनाथन की बेंच कर रही थी. सुप्रीम कोर्ट में राज्य सरकार की तरफ से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल और एडवोकेट आस्था शर्मा ने दलीलें दीं. सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल ने कहा,
“पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग (अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के अलावा) (सेवाओं और पदों में रिक्तियों का आरक्षण) अधिनियम, 2012 के प्रावधानों को रद्द करने के लिए कोलकाता हाई कोर्ट ने आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट के फैसले का तर्क दिया था. उस फैसले में 4% मुस्लिम OBC आरक्षण को रद्द कर दिया गया था.”
सिब्बल ने आगे बताया कि आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट के उस फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी. मामले में अंतिम निर्णय आना अभी बाकी है. इसके बाद बंगाल सरकार के फैसले को सही ठहराते हुए सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट से सवाल किया,
"क्या सैद्धांतिक रूप से मुसलमान आरक्षण के हकदार नहीं हैं?"
सिब्बल का सवाल सुनकर जस्टिस गवई बोले,
"आरक्षण धर्म के आधार पर नहीं दिया जा सकता."
जिसके बाद सिब्बल ने कहा,
"पश्चिम बंगाल सरकार का फैसला धर्म नहीं बल्कि पिछड़ेपन पर आधारित था. इसे पहले कोर्ट का भी समर्थन भी मिला था. पिछड़ापन हर समुदाय में होता है."
सिब्बल का दावा है कि पश्चिम बंगाल में अल्पसंख्यक आबादी 27-28% है. बंगाल सरकार के पक्ष में आए कपिल सिब्बल ने रंगनाथ कमिशन का भी ज़िक्र किया. यहां जानकारी के लिए बता दें कि 2007 में आई रंगनाथ कमीशन की रिपोर्ट में मुसलमानों को 10% आरक्षण दिए जाने की बात कही गई थी.
सिब्बल ने कोर्ट को बताया कि कोलकाता हाई कोर्ट के फैसले के बाद लाखों लोगों के प्रमाणपत्र रद्द कर दिए गए हैं, जिससे उनका नुकसान हो रहा है. उन्होेंने कहा,
“हमारे पास डेटा है. कोर्ट के फैसले का असर बड़ी संख्या में लोगों पर पड़ेगा. इसमें स्टूडेंट्स का भी नुकसान है.”
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक सिब्बल ने कोर्ट को बताया कि हाई कोर्ट के आदेश के कारण लाभार्थियों को जारी किए गए 12 लाख प्रमाण-पत्र रद्द कर दिए गए हैं. उन्होंने बताया कि राज्य की 28 प्रतिशत अल्पसंख्यक आबादी में से 27 प्रतिशत मुसलमान हैं.
वहीं सिब्बल की डेटा वाली बात को काटते हुए कोर्ट में सीनियर एडवोकेट पी एस पटवालिया ने कहा,
"कोलकाता हाई कोर्ट को किसी सर्वे के बारे में नहीं बताया गया था और ना ही कोई डेटा दिखाया गया था. साल 2010 में उस वक्त के मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य के एक बयान के बाद आरक्षण लागू कर दिया गया था. हाई कोर्ट का कहना है कि राज्य को आरक्षण लागू करने का अधिकार है, लेकिन उचित प्रक्रिया का पालन करने के बाद ही."
सर्वे रिपोर्ट को लेकर पक्ष और विपक्ष में काफी देर तक बहस होती रही. इसके बाद जस्टिस गवई ने कहा कि धर्म के नाम पर आरक्षण नहीं दिया जा सकता.
कोलकाता हाई कोर्ट ने क्या कहा था?यहां कोलकाता हाई कोर्ट के उस फैसले को भी समझना जरूरी है, जिसका पश्चिम बंगाल सरकार विरोध कर रही है. दी हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक 22 मई को कोलकाता हाई कोर्ट ने साल 2010 के बाद जारी किए गए OBC सर्टिफिकेट रद्द कर दिए थे. इस फैसले से ओबीसी प्रमाण पत्र पाए पांच लाख लोग प्रभावित हुए थे. हालांकि, हाई कोर्ट ने ये भी स्पष्ट किया था कि उसके फैसले का उन व्यक्तियों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, जिन्होंने 2010 से जारी ओबीसी प्रमाण पत्रों का उपयोग करके पहले ही रोजगार हासिल कर लिया है.
कोर्ट ने पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग (अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के अलावा) (सेवाओं और पदों में रिक्तियों का आरक्षण) अधिनियम, 2012 के कुछ हिस्सों को रद्द किया था. रद्द की गई धाराओं में धारा 16, धारा 2(h) का दूसरा भाग और धारा 5(a) शामिल हैं. इनके तहत सब-क्लासिफाई की गई कैटेगरी को 10% और 7% का आरक्षण दिया गया था. साथ ही सब-क्लासिफाई की गई कैटेगरी OBC-A और OBC-B को अधिनियम की अनुसूची 1 से हटा दिया गया था.
इस पूरे मामले की अगली सुनवाई 7 जनवरी 2025 को रखी गई है. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को पिछड़ेपन के आंकड़े सब्मिट करने का आदेश दिया है.
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