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दिल्ली में प्राइवेट स्कूलों की मनमानी फीस को लेकर नया कानून लागू, लेकिन एक पेच है

नई व्यवस्था में तीन स्तर की कमेटी है. स्कूल लेवल फीस रेगुलेशन कमेटी. डिस्ट्रिक्ट फीस अपीलेट कमेटी. और रिवीजन कमेटी. दूसरी कमेटी से जुड़े एक नियम को लेकर पेरेंट्स की आपत्ति रही है.

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एक्ट में टर्म फीस, एनुअल चार्जेस और डेवलपमेंट फीस को भी अलग-अलग डिफाइन किया गया है. (फोटो- PTI)

दिल्ली में प्राइवेट स्कूलों की फीस पर रोक लगाने के लिए नया कानून आ गया है. लेफ्टिनेंट गवर्नर (LG) द्वारा जारी गैजेट नोटिफिकेशन के बाद ये कानून प्रभावी हो गया, जो राजधानी के 1,500 से अधिक प्राइवेट स्कूलों पर लागू होगा. सालों से पेरेंट्स के विरोध प्रदर्शनों के बीच सरकार का ये कदम एक ‘राहत’ जैसा बताया जा रहा है, जो मनमानी फीस वृद्धि और अनियमितताओं पर रोक लगाने के लिए उठाया गया है.

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नए कानून के तहत निजी गैर-सहायता प्राप्त मान्यता प्राप्त स्कूल परिभाषित फीस के अलावा कोई भी फीस नहीं वसूल सकते. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक नई व्यवस्था में तीन स्तर की कमेटी है. स्कूल लेवल फीस रेगुलेशन कमेटी. डिस्ट्रिक्ट फीस अपीलेट कमेटी. और रिवीजन कमेटी. दूसरी कमेटी से जुड़े एक नियम को लेकर पेरेंट्स की आपत्ति रही है.

दरअसल, फीस बढ़ोतरी के खिलाफ जिला-स्तरीय कमेटी में शिकायत करने के लिए कम से कम 15% प्रभावित पेरेंट्स को एक साथ आना होगा. यानी अगर एक स्कूल में 100 बच्चे पढ़ते हैं, तो फीस बढ़ोतरी की शिकायत करने के लिए कम से कम 15 बच्चों के पेरेंट्स को सामने आना होगा. इससे आशंका पैदा होती है कि अगर फीस बढ़ोतरी से नाराज (या प्रभावित) पेरेंट्स के पास 15 पर्सेंट सपोर्ट नहीं है तो उनकी शिकायत को नहीं सुना जाएगा. पेरेंट्स एसोसिएशन पहले ही 15% की इस सीमा पर आपत्ति जता चुकी हैं. उनका कहना था कि इतने पेरेंट्स को एकजुट करना मुश्किल हो सकता है.

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एक्ट के चैप्टर-2 में बताया गया है कि फीस को अलग-अलग कंपोनेंट्स में दिखाना जरूरी होगा. एक्स्ट्रा फीस या एक्सेस फीस वसूलना पूरी तरह बैन है. फीस के तहत सिर्फ एडमिशन चार्ज, रजिस्ट्रेशन चार्ज और सिक्योरिटी डिपॉजिट शामिल हैं. ये सब नॉन-रिकरिंग (एक बार वाले) चार्ज हैं.

ट्यूशन फीस की परिभाषा में स्टैंडर्ड एस्टेब्लिशमेंट कॉस्ट और करिकुलर एक्टिविटीज से सीधे जुड़े खर्चे ही शामिल होंगे. इसे कैपिटल एक्सपेंडिचर (इंफ्रा डेवलपमेंट, बिल्डिंग, नॉन-रेवेन्यू एसेट्स आदि) रिकवर करने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकेगा. इसके अलावा एक्ट में टर्म फीस, एनुअल चार्ज और डेवलपमेंट फीस को भी अलग-अलग डिफाइन किया गया है.

समितियों का गठन

एक्ट के अनुसार, स्कूल लेवल फीस रेगुलेशन कमेटी में पांच पेरेंट्स का प्रतिनिधित्व होने चाहिए. जिनमें महिलाओं तथा वंचित वर्गों का प्रतिनिधित्व अनिवार्य है. इसके अलावा तीन टीचर्स भी होंगे, जिनका चयन वीडियो-रिकॉर्डेड लॉटरी प्रक्रिया के बाद किया जाएगा. कमेटी के अध्यक्ष के रूप में स्कूल प्रबंधन का एक प्रतिनिधि होगा, जबकि प्रिंसिपल को सदस्य-सचिव नियुक्त किया जाएगा.

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दिल्ली शिक्षा विभाग एक पर्यवेक्षक (ऑब्जर्वर) भी नामित करेगा, जो सरकारी स्कूल के प्रिंसिपल से नीचे के रैंक का नहीं होगा. एक्ट के अनुसार इस पर्यवेक्षक का काम कमेटी की कार्यवाही पर स्वतंत्र निगरानी रखना है. ये कमेटी स्कूल मैनेजमेंट द्वारा प्रस्तावित फीस स्ट्रक्चर को तीन सालों के लिए लागू करेगी.

DOE को हर जिले के लिए 15 जुलाई तक District Fee Appellate Committee का गठन करना होगा. यही कमेटी जिले के सभी मान्यता प्राप्त निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों (Private Unaided Schools) के लिए अपीलेट अथॉरिटी होगी. कोई भी फीस संबंधी विवाद या आपत्ति पहले इसी कमेटी के पास जाएगी. इस कमेटी का अध्यक्ष सर्विंग या रिटायर्ड सरकारी अधिकारी होगा. सदस्यों में एक चार्टर्ड अकाउंटेंट और पेरेंट्स की तरफ से एक अभिभावक होगा.

जिला स्तर पर समीक्षा 30 जुलाई तक पूरी करनी होगी. जिला कमेटी के आदेश के खिलाफ 30 दिन के अंदर (उचित कारण होने पर अधिकतम 45 दिन तक) संशोधन समिति (Revision Committee) में अपील दायर की जा सकती है. संशोधन समिति को हर केस को 45 दिन के अंदर निपटाना होगा. यदि 45 दिन में भी कोई फैसला नहीं होता, तो मामला Appellate Committee के पास चला जाएगा.

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