‘घर बनाना लोगों के सामाजिक और आर्थिक अधिकारों से जुड़ा एक पहलू है. ये बरसों की मेहनत, सपनों और आकांक्षाओं का फल होता है. इसे सिर्फ़ एक प्रॉपर्टी के तौर पर नहीं देखा जा सकता. ये स्टेबिलिटी और सुरक्षा का प्रतीक है. एक परिवार या व्यक्ति की सामूहिक उम्मीदों का प्रतीक है.’ भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने ‘बुलडोज़र जस्टिस’ को लेकर ये बयान इटली में दिया (CJI BR Gavai On Bulldozer Justice).
'कोर्ट ने बुलडोजर एक्शन रोका, सरकारें नहीं बन सकतीं जज, जूरी और जल्लाद... ' बोले चीफ जस्टिस
CJI BR Gavai On Bulldozer Justice: CJI बीआर गवई ने आगे कहा कि संविधान के मूल ढांचे में बदलाव नहीं किया जा सकता. उन्होंने सामाजिक-आर्थिक अधिकारों को लागू करने की कोशिशों के दौरान न्यायपालिका और संसद के बीच शुरुआती तनाव को भी याद किया.

‘सामाजिक आर्थिक न्याय देने में संविधान की भूमिका: भारत के 75 सालों के अनुभव.’ इस नाम से आयोजित एक कार्यक्रम में CJI अपनी बात रख रहे थे. इसे इटली की ‘मिलान कोर्ट ऑफ़ अपील’ में आयोजित किया गया था. इस दौरान CJI ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने ‘बुलडोज़र जस्टिस’ पर रोक लगा दी. उन्होंने आगे कहा कि कार्यपालिका एक साथ जज, जूरी और जल्लाद नहीं बन सकती है.
दरअसल, CJI सुप्रीम कोर्ट के साल 2024 में दिए गए फ़ैसले का ज़िक्र कर रहे थे. जिसमें ‘कानूनी प्रक्रिया को दरकिनार कर आरोपियों के घरों को मनमाने ढंग से ना गिराने’ का आदेश दिया गया था. तब कोर्ट ने कहा था कि इस तरह के एक्शन संविधान के अनुच्छेद 21 यानी जीवन के अधिकार का उल्लंघन करते हैं.
CJI बीआर गवई ने आगे कहा कि संविधान के मूल ढांचे में बदलाव नहीं किया जा सकता. उन्होंने सामाजिक-आर्थिक अधिकारों को लागू करने की कोशिशों के दौरान न्यायपालिका और संसद के बीच शुरुआती तनाव को याद किया. जिसका नतीजा केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य के फैसले के रूप में निकला. CJI आगे बोले,
समाज के बड़े हिस्से को हाशिए पर रखने वाली संरचनात्मक असमानताओं पर बात किए बिना, कोई भी देश असल में प्रगतिशील या लोकतांत्रिक होने का दावा नहीं कर सकता.
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CJI बीआर गवई ने कहा,
जब हम इन 75 वर्षों पर नज़र डालते हैं, तो इसमें कोई संदेह नहीं कि भारतीय संविधान ने आम लोगों के जीवन में बदलाव लाने का प्रयास किया है. जहां संसद ने कानून और संवैधानिक संशोधनों के ज़रिए अग्रणी भूमिका निभाई. वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षा से लेकर आजीविका तक के सामाजिक-आर्थिक अधिकारों को मौलिक अधिकारों में बदलने के लिए लगातार काम किया. जिन्हें बाद में संसद द्वारा प्रभावी बनाया गया.
CJI बीआर गवई ने कहा कि भारत का संविधान सिर्फ शासन के लिए एक दस्तावेज नहीं है, बल्कि ये एक क्रांतिकारी बयान है.
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